सत्संग नामक वायरस जिसे लग गया उसका उद्धार होना सुनिश्चित है : पाठक जी महाराज

अकोड़ा में चल रही है नौ दिवसीय श्रीराम कथा

भिण्ड, 29 सितम्बर। अकोड़ा नगर परिषद के वार्ड क्र.पांच में बड़ी जग्गा मन्दिर पर चल रही नौ दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन संत श्री अनिल पाठक जी महाराज ने कहा कि सत्संग नामक वायरस जिसे लग गया, उसका उद्धार होना सुनिश्चित है। यदि गुरू उपदेश करें और भक्त उसे नहीं जान पाता है, तो वह जिज्ञासु नहीं है, जो गुरु के वचनों को जानना चाहे तो उस पहले जिज्ञासु बनना होता है गुरू के वचन वही जान सकता है। संसारी मनुष्य चौपाई गाकर परमात्मा के ऊपर डाल देते है कि उनकी कृपा होगी, तभी हम समझ पाएंगे। परंतु शास्त्र यह कहता है कि जब तुम जानना चाहोगे तब ही जान जाओगे। यदि जिज्ञासु भक्त है तो संत स्वत: ही उसके प्रश्नों का हल कर देंगे।
पाठक जी महाराज ने कहा कि स्वामी गोस्वामी तुलसी दासजी ने लिखा है कि कबहुंक करि करुणा नर देहि, देत ईश बिनु हेतु सनेही। मनुष्य शरीर ही ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है, परंतु अज्ञानी मनुष्य कहता है कि यह जन्म तो हमने अच्छे कर्म किए हैं, इसलिए हमें यह मिला है, ये ऐसे मनुष्य हैं जिन्हें मनुष्य देह तो मिली परंतु कभी भगवान का नाम नहीं लिया, जिनके कान होते हुए भी कभी किसी की बड़ाई व सत्संग सुन्ना पसंद नहीं, बल्कि केवल दूसरों की बुराई और संसारी बातों में ही लगे रहते हैं, वे कान नहीं सर्प के बिल हैं, जिनके आंखे होते हुए कभी संत दर्शन नहीं किया वे आंखें मोर पंख पर छपी आंखें सी है, परंतु आंखे नहीं, मुख होते हुए भी जिसने कभी भगवान नाम न लिया हो वह तो मेडक के समान है, जो सुबह-शाम टर्र-टर्र करता है, जिनके हृदय में भगवान के प्रति प्रेम नहीं आया वह कितना भी किसी से प्रेम कर ले परंतु संत कहते हैं कि वह मुर्दे के समान है। स्वामी जी ने कहा कि जो व्यक्ति सत्संग से धीरे-धीरे से जुड़ता है वह परमात्मा की ओर बढ़ता रहता है। कथा के अंत में बड़ी हर्षोल्लास के साथ राम जन्मोत्सव मनाया गया। जिसमें भगवान की दिव्य झांकी के दर्शन कराए गए।