धर्मतंत्र में तब्दील होता गणतंत्र

– राकेश अचल


26 जनवरी 2024 को भारतीय गणतंत्र स्थापना की 75वीं सालगिरह है। लेकिन इसका कोई अमृत महोत्सव नहीं मनाया जा रहा, सरकार का शायद इस गणतंत्र में कोई यकीन नहीं है, होता तो जैसा अमृत महोत्सव आजादी का मनाया गया था वैसा ही गणतंत्र दिवस का भी मनाया जाता। अब गणतंत्र दिवस से बडा उत्सव राम मन्दिर की स्थापना का मनाया जाने लगा है। इस दिन खुद प्रधानमंत्री आवास पर दीपवाली मनाई गई, अच्छी बात है। लेकिन और अच्छा होता यदि हमारे प्रधानमंत्री जी गणतंत्र दिवस को भी दीपावली की ही तरह मनाने का आव्हान देश से करते। आज-कल उनकी हर बात देशवासी पूरी निष्ठा से उन्हें विष्णु का अवतार मानकर कर रहे हैं।
भारतीय गणतंत्र पिछले 75 साल में कितना मजबूत या कितना कमजोर हुआ है इसका आंकलन बहुत आसानी से किया जा सकता है। मुश्किल ये है कि सार्वजनिक रूप से इस बारे में न कोई विमर्श करने को राजी है और न सच बोलने का साहस किसी में हैं। दुनिया के बाहर के लोग तो भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में मानते और जानते थे किन्तु 22 जनवरी 2024 के बाद देश की ये पहचान बदलने की कोशिश की गई और सुनियोजित तरीके से की गई। भगवान राम को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत नया मन्दिर बनाकर देना और मन्दिर में रामलला की नई प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करना ये साबित करता है कि अब देश गणतंत्र को नहीं, धर्मतंत्र को मजबूत करने में जुट गया है। देश को भविष्य में संविधान नहीं बल्कि धर्म और धर्मग्रंथ चलाएंगे।
गंभीर चिंता का विषय ये है कि पिछले एक दशक में गणतंत्र के साथ इतनी ज्यादती की गई जितनी की पिछले 65 साल में नहीं की गया। देश का गणतांत्रिक ढांचा कमजोर करने के लिए केन्द्र और राज्य संबंधों में एक अजीब किस्म का खिंचाव पैदा किया गया। दलीय आधार पर राज्यों की मदद, कर्ज या और दूसरे फैसले किए गए। कोई रोकने-टोकने वाला नहीं। यही सब 1975 के जून महीने में हुआ था, लेकिन तब विपक्ष सडकों पर नहीं जेलों के भीतर था। आज स्थितियां विपरीत हैं, क्योंकि आज विपक्ष सडकों पर है, किन्तु उसे सडकों पर भी बाधित किया जा रहा है। संसद को बाधित किया जा रहा है। केन्द्रीय चुनाव आयोग को पालतू बना दिया गया है। प्रवर्तन निदेशालय केन्द्र के इशारे पर कत्थक कली करते हुए दिखाई दे रहा है। अदालतें कानून की मंशा के मुताबिक नहीं चल रहीं। वे मोहताज हैं या बनाई जा रही हैं। सरकार चाहती है कि भारत का ‘गण’ और ‘तंत्र’ उसके इशारे पर उखडू बैठा रहे। संसद से लेकर राम मन्दिर तक में नागपुर की आत्मा प्रविष्ट की जा चुकी है और धीरे-धीरे जनमानस को धर्म का ‘हिस्टीरया’ पैदा किया जा रहा है।
भारत की स्वतंत्रता और आजादी के बाद देश में गणतंत्र की स्थापना में आज सत्ता में बैठी या बाहर खडी पीढी का कोई सक्रिय योगदान नहीं है, 75 साल पहले जब देश में गणतंत्र को स्थापित किया गया तब उस समय आज के अवतार पुरुष और उनकी पूरी खल मण्डली या तो किसी गर्भ में रही होगी या किसी गली में कंचे खेल रही होगी। दुर्भाग्य ये है कि आज की पीढी अपने पूर्वजों के तमाम संघर्षों को सिरे से खारिज करते हुए हर चीज को अपने ढंग से परिभाषित कर रही है। सत्ता को ये शक्तियां और अधिकार प्राप्त होते हैं कि वो जो चाहे सो करें। इसलिए आज मनमानी हो रही है।
आज जरूरत केवल गणतंत्र दिवस मनाने या इस दिन राजपथ पर अपने शक्ति प्रदर्शन की नहीं है, अपितु आवश्यकता आज के दिन गणतंत्र को बचाने के लिए अपने आपको और तथाकथित अमृत पीढी को जागरुक करने की है। ये बताने की आवश्यकता है कि भारत की आजादी के बाद देश में कोई धर्मतंत्र नहीं अपनाया गया था, बल्कि गणतंत्र अपनाया गया था और हमें उसी का सम्मान करना है, ना कि किसी धर्मतंत्र को पल्लिवत-पुष्पित करना है। गेहूं के साथ बथुए को पानी अपने-आप लग जाता है। यदि गणतंत्र मजबूत होगा तो धर्मतंत्र तो अपने आप सुदृढ हो जाएगा। धर्म से देश का उन्नयन नहीं हो सकत। धर्म व्यक्ति के उत्थान का जरिया है। बहरहाल समय हो इस मुद्दे पर चिंतन-मनन किया जाए। सवैधानिक संस्थाओं के कामकाज में हस्तक्षेप कम से कम किया जाए। यदि ऐसा न किया गया तो सबसे पहले गण और तंत्र ही समाप्त होगा। अब मर्जी है आपकी, क्योंकि गणतंत्र है आपका।