– अशोक सोनी ‘निडर’
अगर आज हम निराला, पंत, दिनकर, जैसे कवियों को याद करें तो गर्व की अनुभूति होती है। लेकिन क्या आपने कभी चिंतन किया है कि वर्तमान साहित्य आज किस दिशा में जा रहा है। साहित्य के नाम पर क्या रचा और क्या परोसा जा रहा है? पकी-अधपकी खिचड़ी जिसका समाज पर कितना गलत प्रभाव पड़ रहा है कभी सोचा है आपने। आज साहित्य दो गुटों में बंटा हुआ है, पहला गुट मंचीय कवियों का है, जिस पर साहित्य के नाम पर अश्लील संवादों से भरे लतीफे चुटकुले गला फाड़-फाड़ कर हमारे कानों तक जबरदस्ती ठूंसे जा रहे है। मंच पर जो कवि जितना गला फाड़कर चिल्ला सकता है, वही कवि सफल कहलाता है। कह कहकर तालियां भी खूब बजबाई जाती हैं, भले ही साहित्य से उसका दूर-दूर का भी नाता न हो। जनता का मनोरंजन करना उसे हंसाना और माल बटोर कर चले जाना, बस यही एक उद्देश्य रह गया है। रही सही कसर कवियित्रियों को बुलाकर पूरी की जाती है, लोग उनका साहित्य नहीं सौंदर्य दर्शन करके अपनी आंखे सेंक कर धन्य हो जाते हैं। लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह साहित्य के नाम पर क्या सुना रही है, वह तो सिर्फ उस मनमोहनी अप्सरा के दर्शन करके खुश होकर तालियों की बरसात कर देते हैं। साहित्य संगठन के नाम पर चलने बाली दुकानों पर चंदा तो सबसे बसूला जाता है लेकिन हर कवि को समान सम्मान न देकर मंच पर अपने चहेते कवियों को ही प्रस्तुत किया जाता है।
दूसरी ओर कई संगठन सम्मान देने के नाम पर मोटी रकम वसूल कर एक दिन का सेमिनार करके लोगों को शील्ड और सम्मान पत्र बांट देते हैं। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन योग्य है, कौन अयोग्य। उन्हें तो सिर्फ अपनी रकम से मतलब है। प्रिंट एवं टीवी चैनल के अधिकांश पत्रकार जो मां वीणा वादिनी के वरद पुत्र कहे जाते हैं चंद पैसों के लालच में अपनी लेखनी रूपी तलवार से जनता की रक्षा करने के बजाय उसके विश्वास का गला काटने का निकृष्ट कार्य करके भी खुशी महसूस करते हैं। कई प्रकाशक किताब छापने के नाम पर निश्चित राशि लेकर कुछ भी छापने का धंधा कर रहे हैं। उन्हें कोई मतलब नहीं कि उस किताब में साहित्य के नाम पर क्या लिखा गया है, या उसका समाज पर क्या गलत प्रभाव पड़ेगा। वर्तमान साहित्य अब मंथन चिंतन का विषय नहीं रह गया है, अब ये सिर्फ जेबें भरने का धंधा रह गया है। सच्चे कवि, पत्रकार, साहित्य कार की असल भावना होनी चाहिए कि
राजनीति को शीश झुकाकर में सत्कार नहीं करता,
सुविधाओं के दरवाजे पर कभी गुहार नहीं करता।
तुमको लाखों मिल जाएंगे इस शौहरत की मण्डी में,
माफ करो मुझको मैं कलम बेचने का व्यापार नहीं करता।।