भिण्ड, 08 अगस्त। बद्रीप्रसाद की बगिया हाउसिंग कॉलोनी के विराग मण्डप में चातुर्मास कर रहे मेडिटेशन गुरू उपाध्याय विहसंत सागर महाराज ने शुक्रवार को धर्मसभा में कहा कि जैन धर्म में रक्षाबंधन का पर्व विष्णु कुमार मुनि द्वारा 700 जैन मुनियों की रक्षा की स्मृति में मनाया जाता है, यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जब विष्णु कुमार मुनि ने नमुचि नामक राक्षस से मुनियों की रक्षा की थी। इस दिन जैन धर्म लंबियों ने केवल भाई बहन के रिश्ते को मनाते हैं बल्कि देश और धर्म की रक्षा का संकल्प भी लेते हैं।
विहसंत सागर मुनिराज ने कहा कि जैन समुदाय की मान्यताओं में रक्षाबंधन की कथा कुछ अलग है, यह कथा एक मुनि द्वारा 700 मुनियों की रक्षा करने पर आधारित है ,इस दिन को याद रखने के लिए रक्षा का संकल्प लेकर लोगों ने हाथ में रक्षा सूत्र यानी सूत के डोरे बांधे थे, तभी से जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा यह दिन रक्षाबंधन पर्व के रूप में मनाया जाने लगा है। उन्होंने कहा कि रक्षाबंधन के त्यौहार का आधार इस कथा के अनुसार जैन धर्म के 19वें तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ स्वामी के समय में हस्तिनापुर के राजा महा पदम ने अपने बडे पुत्र पदमराज को राजभार सोप बैराग्य धारण किया था, उनके साथ उनका पुत्र विष्णु कुमार भी अपने पिता के साथ अविनाशी मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग पर चल दिए उधर उज्जैनी नगरी के राजा वर्मा के मंत्री बाली नमुचि बृहस्पति और प्रहलाद थे, चारों जैन धर्म के कट्टर विरोधी थे, एक बार यहां अकल्पनाचार्य मुनि अपने 700 शिष्यों के साथ पधारे, नगर के बाहर उद्यान में ठहरे आचार्य को जब ज्ञात हुआ कि राजा के चारों मंत्री अभिमानी हैं और जैन धर्म के विरोधी हैं, आचार्य ने शिष्यों को बुलाकर आज्ञा दी कि जब राजा और मंत्री आएं तो सभी मुनिराज मोन धारण करके ध्यान मग्न बैठे, इसके दो इस वर्ष विवाद नहीं होगा और विवाद उत्पन्न नहीं हो सकेगा, सभी ने गुरु की आज्ञा के पालन की हामी भर दी उसे समय सूरुत सागर नामक मुनि मौजूद नहीं थे। इस कारण उन्हें इसका पता नहीं चला जब राजा मंत्रियों सहित वन में मुनि के दर्शनों को पधारे तो मुनि संघ मोन था, उसे देखकर एक मंत्री ने कहा कि देखिए राजा यह मुनि बोल रहे हैं, क्योंकि इनमें किसी प्रकार की विद्या नहीं है, कहानी आगे बडी है, लेकिन अंत में विष्णु कुमार मुनि ने 700 मुनि राजो का उपसर्ग रक्षाबंधन के दिन ही दूर किया था।
विहसंत सागर महाराज ने किया केश लोच
मेडिटेशन गुरु उपाध्याय विहसंत सागर महाराज ने शुक्रवार को सुबह अपने हाथों से सिर एवं दाढी के बालों को उखाड कर केश लोच व्रत का पालन किया। उन्होंने कहा कि कैसे लोचन जैन धर्म में एक तपस्या है, जिसमें साधु और साध्वी अपने सर और दाढी के बाल हाथों से उखडते हैं, यह दीक्षा के समय और बाद में हर चार माह बाद किया जाता है, इसका उद्देश्य सांसारिक आकर्षक और अहंकार का त्याग करना है। जैन मुनि शरीर की सुंदरता को नष्ट करने और अहिंसा धर्म का पालन करने के लिए के सो करते हैं, वे बालों को उखडते समय यह भावना रखते हैं कि इस कष्ट के साथ उसके पाप कर्म भी निकल रहे हैं, इसमें संयम की परीक्षा और पालन भी होता है, जिस दिन की सुलोचन करते हैं उसे दिन उपवास भी करते हैं।