गर मेरे मत पै आंच आएगी

– राकेश अचल


गर मेरे मत पै आंच आएगी
तो हुकूमत पै आंच आएगी
झोपडी को जलाओ मत वरना
बाद में छत पै आंच आएगी

खेल अस्मत का खेलना छोडो
बचना, इज्जत पै आंच आएगी
गलतियां तुम करोगे बदले में
मां बदौलत पै आंच आएगी

नफरतों को हवा न दो फिर से
फिर मोहब्बत पै आंच आएगी
कोई दीवार से नहीं लडता
बस इबारत पै आंच आएगी

मुंह छुपाओगे कैसे बतलाओ
जब तिजारत पै आंच आएगी
हम तो बच जाएंगे, हमारा क्या
सिर्फ हजरत पै आंच आएगी