(05 मार्च जन्मदिन पर विशेष)
– राकेश अचल
अमूमन मै किसी के जन्मदिन पर कोई आलेख नहीं लिखता, क्योंकि ऐसे मौके पर लिखने का मतलब कसीदाकारी माना जाता है, लेकिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के जन्मदिन (5 मार्च) पर लिखने से मैं अपने आपको रोक नहीं पा रहा। शिवराज सिंह चौहान भाजपा के इकलौते ऐसे नेता हैं जो किस्मत के धनी हैं और सियासत में रिश्तेदारी को औजार के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
फिल्मों में ‘मै हूं न कहना आसान काम है लेकिन सियासत में नहीं, शिवराज सिंह चौहान ने सियासत में ‘मै हूं न’ कहकर जिस हिकमत अमली से काम लिया है उसकी कोई और मिसाल नजर नहीं आती। 13 साल की उम्र में संघ दक्ष करने वाले शिवराज सिंह ने 31 साल की उम्र में पहला विधानसभा चुनाव लड़ा था। तब से अब तक वे लोकसभा के पांच, विधानसभा के चार चुनाव लड़े और जीते। वे अभी तक अजेय हैं, हालांकि उनकी अगुवाई में भाजपा 2018 का विधानसभा चुनाव हार चुकी है। शिवराज सिंह चौहान की हस्तरेखा में ‘राज योग’ शायद प्रबल ही है क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में सत्ताच्युत होने के 15 माह बाद ही बिना कोई चुनाव लड़े वे फिर मुख्यमंत्री बन गए और एक बार फिर कुछ महीने बाद चुनावी अग्निपरीक्षा में उतरने वाले हैं। शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी राजनीति में 32 साल पूरे कर लिए हैं, लेकिन सक्रिय राजनीति में उनके 45 साल हो चुके हैं। इन साढ़े चार दशकों में शिवराज सिंह चौहान ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपना 64वां जन्मदिन मनाने वाले शिवराज सिंह चौहान तमाम झंझावातों के आज भी पार्टी और प्रदेश की राजनीति में प्रासंगिक बने हुए हैं।
मेरी नजर में शिवराज सिंह चौहान की सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद उन्होंने अपने ऊपर राजनीति की चर्बी नहीं चढऩे दी। उन्होंने कभी ‘मामा’ बनकर राजनीति की तो कभी ‘भाई’ बनकर। वे राजनीति में ‘किंग मेकर’ न बनकर खुद ‘किंग’ बने रहे। बीते दो दशकों में उनके अवसर ऐसे आये जब ये लगा कि शिवराज सिंह चौहान अब गए कि तब, लेकिन वे नहीं गए, डटे रहे। उनके तमाम प्रतिद्वंदियों को हर अभियान की नाकामी के बाद ठण्डी आहें भरना पड़ीं। हाल ही में शिवराज सिंह चौहान को उखाडऩे में सबसे आगे रहीं पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती तक को उनका स्वागत करना पड़ा। अजीब इत्तफाक है कि इतने कामयाब मुख्यमंत्री से मेरा कभी कोई वास्ता नहीं पड़ा, किन्तु एक पत्रकार के रूप में मैंने शिवराज सिंह चौहान जैसा कोई दूसरा मुख्यमंत्री नहीं देखा। शिवराज सिंह चौहान हरेक चोट उसी तरह सह गए जैसे पहाड़ बरसात में पानी की बूंदों के आघात को सहते हैं। शिवराज सिंह चौहान ने नीच माने जानी वाली धूल को भी वक्त आने पर अपने सिर पर सवार होने से नहीं रोका। रामचरित मानस में शिवराज सिंह चौहान जैसे लोगों के लिए ही शायद लिखा गया है कि- ‘बूंद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसे।’
भाजपा में शिवराज सिंह चौहान अकेले ऐसे नेता हैं जिनकी सफलता के पीछे उनकी पत्नी श्रीमती साधना सिंह का नाम गाहे-वगाहे लिया जाता है। शिवराज सिंह चौहान ने इसे मौन रहकर स्वीकार भी किया। उन्हें इस कथित सत्य की वजह से अनेक अवसरों पर विषम स्थितियां भी झेलना पड़ी किन्तु वे विचलित नहीं हुए। ‘डम्पर घोटाले’ से लेकर उनके अपने घर में ‘ऑटोमेटिक टेलरिंग मशीन’ तक लगाए जाने की बातें हुईं, किन्तु शिवराज निष्काम योगी की तरह मुस्कराते हुए आगे निकल गए। कभी-कभी उनका धैर्य देखकर हैरानी भी होती है, क्योंकि जितना शिवराज सिंह चौहान ने सहा है उतना कोई दूसरा नेता सह नहीं सकता। नेता के रूप में शिवराज सिंह चौहान कोई खास वक्ता नहीं हैं, लेकिन सहजता से संवाद करने में दक्ष शिवराज सिंह चौहान जनता की पसंद तो बने हुए हैं। 2018 के विधान सभा चुनाव में जिन ‘महाराज’ ने शिवराज सिंह चौहान कि सरकार उखाड़ फेंकी थी वे ही ‘महाराज’ शिवराज सिंह चौहान की तीसरी बार ताजपोशी के कारक बने। इसे आप किस्मत नहीं तो और क्या कहेंगे? पिछले दो दशकों में भाजपा के तमाम नेता शिवराज सिंह चौहान बनने की कोशिश करते रहे किन्तु कामयाब नहीं हुए। शिवराज के राज को महाराज के अलावा कोई दूसरा उखाडऩे में कामयाब नहीं हुआ फिर चाहे कैलाश विजयवर्गीय हों या उमा भारती। नरोत्तम मिश्रा हों या प्रहलाद पटेल।
एक मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह के खाते में उपलब्धियों से ज्यादा खामियां दर्ज हैं, फिर भी वे कामयाब माने जाते हैं। उनके ऊपर मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरह कोई ‘गोधरा काण्ड’ चस्पा नहीं है। उनके कार्यकाल में घोटाले पर घोटाले हुए, हनीट्रैप हुआ, किन्तु शिवराज सिंह चौहान किसी जाल में नहीं फंसे। उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार के अनेक मामले पकड़े गए, पर किस्मत के धनी शिवराज सिंह चौहान को हर बार क्लीन चिट मिल गई। उनके राज में तमाम आईएएस अफसर करोड़ों के भ्रष्टाचार में पकड़े गए और पकड़े जा रहे हैं, किन्तु शिवराज सिंह चौहान बेफिक्र हैं।
एक मुख्यमंत्री के रूप में शायद शिवराज सिंह चौहान की ये अंतिम पारी हो। मुमकिन है कि वे विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर नया इतिहास रचें, लेकिन उनकी कद-काठी में कोई तब्दीली आने वाली नहीं है। उनके बारे में जीतू पटवारी झूठ/ सच जो भी कहें, उनके ऊपर कोई फर्क नहीं पडऩे वाला। मुझे लगता है कि राजनीति में यदि कच्छप कवच किसी के पास है तो वो शायद अकेले शिवराज सिंह चौहान के पास है, जिसके ऊपर किसी भी आघात का कोई असर नहीं होता। पुराने जमाने में कच्छप कवच ढाल बनाने के काम आता था, आज के जमाने में सियासत में रिश्तेदारी ने ढाल की शक्ल ले ली है।
एक अजेय जनप्रतिनिधि के रूप में शिवराज सिंह चौहान शतायु हों ऐसी कामना करते हुए मैं फिर दोहराना चाहूंगा कि शिवराज सिंह चौहान की किस्मत जैसी किस्मत न महाराज की है और किसी और भाजपा नेता की। महाराज ने भी पराजय का स्वाद चखा है, किन्तु शिवराज सिंह चौहान अभी तक पराजय से दूर हैं। जय उनके साथ छाया की तरह कदम मिलाकर चला रही है। कांग्रेस के तमाम नेताओं की तरह शिवराज सिंह चौहान भी इस बार अपने जन्मदिन पर मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना शुरू कर सियासत में रिश्तेदारी का नया पाठ जोडऩे जा रहे हैं, देखिये उन्हें इस प्रयोग में कितनी कामयाबी मिलती है?