ओम कहूं मैं अनुभव अपना

  • राकेश अचल
    लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के पहले भाषण में परिपक्वता थी या बचपना ये तय करने के लिए आप स्वतंत्र हैं। लेकिन मुझे लगता है कि पिछले दस साल में पहली बार सत्तारूढ़ दल को असुविधा का सामना करना पड़ा है। राहुल ने हिन्दुत्व की तलवार से ही हिन्दू सम्राट और उनकी पलटन को छकाया है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी कल तक भारतीय जनता पार्टी के लिए पप्पू और मोशा की जोड़ी के लिए कांग्रेस के शाहजादा भर थे किन्तु अब वे विपक्ष के नेता भी हैं। राहुल को नई भूमिका में स्वीकार करना मोशा की मजबूरी है, वो भी संवैधानिक मजबूरी। अब सरकार राहुल गांधी को पप्पू नहीं कह सकती। लोकसभा अध्यक्ष माननीय ओम बिरला राहुल का माइक बंद करने का दुस्साहस नहीं कर सकते। लोकसभा स्थगित करने से पहले भी उन्हें सत्तारूढ़ दल की ओर सौ बार देखना पड़ेगा।
    हिन्दू धर्म ग्रंथ रामचरित मानस में जैसे गोस्वामी तुलसीदास ने पूरी कथा शिव-पार्वती संवाद के रूप में कही, ठीक वैसे ही राहुल गांधी ने देश की व्यथा ‘शिवजी कहते हैं’ के जरिए बखान की और पूरे सदन ने उन्हें सुना। सोमवार को हंगामा विपक्ष की ओर से नहीं बल्कि सत्तापक्ष की ओर से हुआ। कभी-कभी लगा कि जैसे राहुल लोकसभा अध्यक्ष को इंगित कर कह रहे हैं कि ‘ओम कहूं मैं अनुभव अपना, सत हरि भगति, जगत है सपना’। राहुल के भाषण पर प्रधानमंत्री जी ही नहीं बल्कि उनके तमाम खासमखास सिपाहसलार खिसियाए, भन्नाए, बमके, किंतु राहुल की बोलती बंद नहीं कर सके। राहुल गांधी के भाषण के समय प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षामंत्री, संसदीय कार्य मंत्री और कृषि मंत्री तक को खड़े होकर राहुल के वारों से सदन के नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को बचाना पड़ा।
    सदन में वर्षा बाद मानसून का असर दिखाई दिया। सत्ताधारी दल को पल-पल पर छाते लगाना पड़ा, लेकिन बच कोई नहीं सका। सबसे बुरी और दयनीय दशा थी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला जी की। वे कसमसा रहे थे, तिलमिला रहे थे, लेकिन विपक्षी नेता पर हावी नहीं हो पा रहे थे। उनकी हैडमास्टरी काम नहीं आ रही थी। आखिर राहुल लोकसभा अध्यक्ष से प्रधानमंत्री से भी वरिष्ठ सांसद जो थे। सत्तारूढ़ दल के नेता राहुल के हर आरोप को भ्रामक बता रहे थे, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष राहुल की एक भी बात को विलोपित करने की हिम्मत नहीं कर पाए। मामला हिन्दुत्व का उठा, नफरत का उठा। हिन्दू मुसलमान का उठा, नीट पेपर लीक का उठा, किसान का उठा, मणिपुर का उठा, अग्निवीर का उठा, सबसे ऊपर था देश को भयभीत करने का मुद्दा। राहुल गांधी ने कहा कि माननीय ने देश के हर वर्ग को भयभीत करने की कोशिश की। यहां तक कि अपनी पार्टी के नेताओं तक को भयभीत कर रखा है। और हर मुद्दे पर सरकार या तो बौखलाई या फिर उसे बगलें झांकने पर मजबूर होना पड़ा। कुल मिलाकर सरकार की दशा दयनीय थी।
    राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े सरकार पर बरस रहे थे। वहां भी पीठाधीश्वर को बचाव की मुद्रा में पूरा देश देख रहा था। सदन में पहले जय श्रीराम का नाम गूंजता था लेकिन सोमवार को बम-बम भोले की गूंज थी। कोई रामभक्त आखिर शिवद्रोही कैसे बनता? क्योंकि रामजी पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि ‘शिवद्रोही मम दास कहावा, सो नर मोहे सपनेहु नहिं भावा।’ राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जब जबाब देने की बारी आएगी तब तय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी विपक्ष के नेता की जमकर धुनाई और छिलाई करेंगे। उन्हें सुनने में भी उतना ही मजा आने वाला है जितना कि राहुल गांधी को सुनने में आया है। इसलिए भाइयों और बहनों अपने अपने मोबाइल की बैटरी, टीवी को रीचार्ज करा लीजिए। क्योंकि सबसे मनोरंजक शो आपके सामने आने वाला है। क्रिकेट के टी-20 से भी ज्यादा रोचक, रोमांचक, उत्तेजक।
    दस साल में पहली बार संसद में गंज, अनुगूंज सुनाई दे रही है। संसद प्राणवान लग रही है। गुनगुनी लग रही है। कल तक ध्वनि मत से चलने वाली संसद में तर्क-वितर्क हो रहे हैं। संसद उत्तरदाई नजर आ रही है। हमनें ऐसी तमाम संसदें देखी है। लेकिन ये पहली संसद है जिसमें संविधान भी है, शिव भी है और अविनाशी नेता भी। श्रीमती इन्दिरा गांधी के युग में भी ऐसी संसद नहीं थी। आज की संसद में एक ओर मोशा की जोड़ी है तो दूसरी ओर राहुल-अखिलेश की जोड़ी है। एक तरफ रथी है तो दूसरी ओर विरथी। पूरी संसद अधीर है। देश अधीर है। मैं भी अधीर हूं। शायद आप भी अधीर हों। अधीरता में ही आध्यात्म है।