झूठ और सच के बीच झूलती संसद

– राकेश अचल


18वीं संसद का पहला सत्र हालांकि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस के बाद अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया है, लेकिन देश ने देखा कि नई संसद भी पुरानी संसदों की तरह झूठ और सच के बीच झूल रही है। संसद में यदि सदन के नेता सच नहीं बोल रहे तो विपक्ष के नेता भी झूठ का सहारा ले रहे हैं। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की गलत बयानी को सेना ने शहीद अग्निवीरों की दी जाने वाली आर्थिक सहायता देने वाले बयानों ने उजागर कर दिया है।
भारतीय संसद की कार्रवाई का जबसे टीवी पर सीधा प्रसारण शुरू हुआ है तब से शायद ऐसा कोई भी मौका होगा जब मैंने उसे न देखा हो। मैं लगातार देख रहा हूं कि संसद में लगातार झूठ बोलने की परम्परा चल पड़ी है। न सरकार झूठ बोलने से हिचकती है और न विपक्ष। सरकार को तो कदम-कदम पर झूठ का सहारा लेना पड़ता है। झूठ सुनने और कहने के लिए अभिशप्त देश की संसद आखिर करे तो क्या करे? संसद में झूठ बोलना कानून और संसदीय प्रक्रिया के तहत अपराध है। संसद में झूठ बोलना संसद के विशेषाधिकार का दुरुपयोग भी है और हनन भी, लेकिन अभी तक इस कानून और व्यवस्था के तहत न किसी प्रधानमंत्री को और न किसी मंत्री को और न किसी विपक्षी नेता को दण्डित किया गया और न शायद किया जा सकेगा।
मुझे याद है कि कोविडकाल में कैसे तबके स्वास्थ्य मंत्री ने देश में कोविड से हुई मौतों, ऑक्सीजन की उपलब्धता और दवाओं की कमी के बारे में सफेद झूठ बोला था, लेकिन विपक्ष कुछ नहीं कर पाया। इसी तरह विपक्ष के अनेक नेता झूठ का सहारा लेकर सरकार पर वार करते आए हैं, किन्तु किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, क्योंकि सभी तो इस मामले में मौसेरे भाई है। इस मामले में मीडिया भी कम नहीं है। मीडिया ने भी संसद में सरकार और विपक्ष के झूठ को न कभी पकडऩे की कोशिश की और न उसे उजागर करने का कभी कोई भी जोखिम लिया।
लोग पूरी बेशर्मी से झूठ बोलते हैं। झूठ का सहारा लिए बिना न संसद चल रही है और न देश। झूठ किसी भी पक्ष का हो उसे पकडऩे के लिए, उजागर करने के लिए श्रम करना पड़ता है, लेकिन कोई ये तकलीफ उठाने के लिए तैयार नहीं है। देश और दुनिया ने देखा कि पिछले दिनों आम चुनाव के दौरान सरकार ने कितने बड़े-बड़े सफेद झूठों का सहारा लिया, बावजूद स्पष्ट बहुमत हांसिल नहीं कर पाई। यही हाल विपक्ष का हुआ, उसे भी सत्ता से मीलों दूर ठिठक जाना पड़ा, क्योंकि आखिर झूठ तो झूठ होता है। झूठ के पांव नहीं होते। आखिर झूठ कितना दौड़ सकता है?
बकौल गूगल गुरू- ‘झूठ एक असत्य बयान के रूप में दिया गया एक प्रकार का धोखा है’, जो विशेष रूप से किसी को धोखा देने की मंशा से बोला जाता है। प्राय: झूठ का उद्देश्य होता है किसी राज या प्रतिष्ठा को बरकरार रखना, किसी की भावनाओं की रक्षा करना या सजा या किसी के द्वारा किए गए कार्य की प्रतिक्रिया से बचना। झूठ बोलने का तात्पर्य कुछ ऐसा कहने से होता है जो व्यक्ति जानता है कि गलत है या जिसकी सत्यता पर व्यक्ति ईमानदारी से विश्वास नहीं करता और यह इस इरादे से कहा जाता है कि व्यक्ति उसे सत्य मानेगा। एक झूठा व्यक्ति ऐसा व्यक्ति है जो झूठ बोल रहा है, जो पहले झूठ बोल चुका है, या जो आवश्यकता ना होने पर भी आदतन झूठ बोलता रहता है।
हमारे पृथक बुंदेलखण्ड आंदोलन के संरक्षक और कांग्रेस के बड़े नेता तथा मंत्री रहे स्वर्गीय विठ्ठल भाई पटेल ने तो ‘बॉबी’ फिल्म के लिए एक गीत ही ऐसा लिखा था जो जनता की जुबान पर युगों तक चढ़ा रहा। उन्होंने लिखा था कि ‘झूठ बोले कौवा काटे, काले कौवे से डरियो’ दुर्भाग्य ये है कि हमारे यहां झूठ बोलने वाली सरकार हो या विपक्ष किसी काले कौवे से, किसी काले कानून से डरती ही नहीं है और 56 इंच का सीना फुलाकर झूठ पर झूठ बोलती जाती है। झूठ बोलने का सिलसिला ‘हरि अनंत, हरि कथा अनंता’ की तरह अनंत है। गांधी जी झूठ बोलने के खिलाफ थे और शायद उन्होंने कभी झूठ का सहारा देश को आजाद करने के लिए नहीं लिया। हमारे यहां एक हरिश्चंद्र हुए थे जिन्हें सत्यवादी कहा जाता था। लेकिन इस विरासत पर हमने रत्ती भर गर्व नहीं है। हम लगातार झूठ पर झूठ बोलते जा रहे हैं और सत्य को आहत कर रहे हैं। ये सिलसिला न कांग्रेस के जमाने में रुका और न भाजपा के जमाने में। आगे किसका जमाना आएगा ये हमें मालूम नहीं।
इस मामले में मेरा भरोसा कीजिये कि मैं प्राय: झूठ नहीं बोलता। जरूरत पडऩे पर जनहित में मैंने अनेक बार झूठ बोला है, लेकिन मेरा झूठ राहुल गांधी या मोशा की जोड़ी के झूठ की तरह कभी पकड़ा नहीं गया। मुझे अपने झूठ के लिए कभी शर्मशार नहीं होना पड़ा। जब हम बच्चे थे और हमने गांधी या सत्यवादी हरिश्चंद्र के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जाना था तब भी हम आपस में कहते थे कि ‘झूठ बोलना पाप है, नदी किनारे सांप है’ यानि हमारे संस्कारों में झूठ को कभी महत्ता नहीं दी गई। हमारे सनातन धर्म ग्रंथ भी झूठ से दूर रहने कोई सीख देते रहे हैं। हम हमेशा गाते हैं कि ‘सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है’। लेकिन हम न खुदा से डरते हैं, न ईश्वर से।
झूठ का कोई एक रंग नहीं होता। कोई झूठ सफेद होता है तो कोई काला, कोई सतरंगी भी होता है। आपने मुमकिन है कि हर तरह का झूठ सुना हो, लेकिन इस सदी के दो बड़े झूठ है। पहला कांग्रेस के जमाने में कहा गया झूठ ‘गरीबी हटाओ’ का था, दूसरा सबसे बड़ा झूठ मोदी युग में ‘अच्छे दिन आएंगे’ का झूठ था। देश से न गरीबी हटी और न अच्छे दिन आए। आज भी देश में 90 करोड़ गरीब हैं। जबकि सरकार कहती है कि उसने पिछले दस साल में 25 करोड़ गरीबों को गरीबी से बाहर निकाला।
विज्ञान ने झूठ और सच को पकडऩे के लिए मशीन भी बनाई जिसे अंग्रेजी में ‘लाय डिटेक्टर’ कहते हैं। लेकिन ये मशीन भी सौ फीसदी भरोसे की नहीं है। झूठ बोलने वाले दुर्दांत लोग इस मशीन को भी धोखा देने में कामयाब हो जाते हैं। जांच एजेंसियां इस मशीन का अक्सर इस्तेमाल करती हैं, लेकिन इस मशीन का इस्तेमाल आज तक किसी प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसद या विधायक के झूठ को पकडऩे के लिए नहीं किया गया। सरकार को ईडी, सीबीआई के साथ ही अब लाय डिटेक्टर का इस्तेमाल भी विरोधियों को जेल की हवा खिलने के लिए करना चाहिए। सबसे पहले इसे जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर और बाद में सत्तारूढ़ दल के किसी भी नेता पर, राहुल गांधी पर आजमाया जा सकता है।
झूठ के मामले में हमारे नेता सुधरने वाले नहीं है। सत्तापक्ष हो या विपक्ष झूठ बोलने से बाज आने वाला नहीं है, इसलिए सच तक पहुंचने के लिए अपना तीसरा नेत्र खोलने की कोशिश करते रहिए, अन्यथा आप झूठ के दंश से अपने आपको, आने वाली पीढ़ी को बचा नहीं पाएंगे।