आखिर मन की बात बे-मन से कब तक?

– राकेश अचल


भारत का तीसरी बार बैशाखियों के सहारे नेतृत्व कर रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी की एक ही बात मुझे अच्छी लगती है कि वे देश की जनता से भले ही विपक्ष के नेता राहुल गांधी की तरह सडक़ें नापकर संवाद न करते हों, लेकिन आकाशवाणी के जरिये देश की जनता से अपने ‘मन की बात’ जरूर करते हैं। जो आदमी प्रेस से बात न करता हो, किसानों से बात न करता हो, नौजवानों से बात न करता हो ,वो आदमी यदि देश के अवाम से घर बैठे ‘मन की बात’ करता है तो ये काबिले तारीफ बात है।
प्रधानमंत्री जी पिछले एक दशक से आकाशवाणी के जरिये देश की अवाम से अपने ‘मन की बात’ कहते है। ये एक तरफा संवाद है और 30 जून 2024 को उन्होंने 111वीं बार अपने ‘मन की बात’ की। मन एक तरह से दर्पण होता है। मन के बारे में 1965 में ही साहिर लुधियानवी ने लिख दिया था कि ‘तोरा मन दर्पण कहलाये।’ उसे देखना-दिखाना हर आदमी के बूते की बात नहीं है। मोदी जी के सामने समस्या ये थी कि उनके सामने उनके ‘मन की बात’ सुनने और करने वाला कोई है नहीं। मां का स्वर्गवास हो चुका है और पत्नी का वे परित्याग कर चुके हैं। बाल-बच्चे हैं नहीं। ऐसे में देश ही उनका यानि मोदी परिवार है। संघ परिवार से भी उनका इन दिनों मन मुटाव चल रहा है (दिखावे के लिए) ऐसे में देश की जनता ही है जो उनके ‘मन की बात’ सुन सकती है। लेकिन सवाल ये है कि क्या सचमुच मोदी जी अपने ‘मन की बात’ करते हैं?
मुझे न जाने क्यों मोदी जी के विरोधियों में शुमार किया जाता है लेकिन आप यकीन मानिये कि मैं अपना कीमती (दो कौड़ी की कीमत वाला) समय मोदी जी के ‘मन की बात’ सुनने पर खर्च करता हूं। उनके अधिकांश ‘मन की बात’ एपिसोड मैंने सुने हैं। मैंने क्या देश में उनके अधिकांश भक्तों ने सुने हैं। उन्हें सुनना पड़ती है मोदी जी के ‘मन की बात’। न सुनें तो पार्टी से बाहर कर दिए जाएंगे फौरन। बेचारे भक्त और कार्यकर्ता अपने घर वालों के मन की बात सुनें न सुनें लेकिन मोदी जी ‘मन की बात’ अवश्य सुनते हैं। पार्टी कार्यालय में बैठकर सुनते हैं। ड्राइंग रूम में बैठकर सुनते हैं और फिर सबूत के तौर पर अपने फोटो एक्स पर, इंस्ट्राग्राम पर, फेसबुक पर अपलोड भी करते हैं। मजबूरी का नाम महात्मा मोदी जो ठहरा!
मोदी जी के ‘मन की बात’ लगभग ‘राजाज्ञा’ की तरह न केवल आकाशवाणी पर बल्कि देश के सभी टीवी चैनलों, सॉशल मीडिया पर भी सुनाई जाता है। मोदी जी चूंकि विश्वगुरू हैं, इसलिए इस एपिसोड का विश्व-व्यापी प्रसारण किया जाता है, ये बात और है कि कोई इसे सुने या न सुने। इस सब ठठकर्म पर देश का कितना पैसा खर्च होता है? ये न मैं आपको बता सकता हूं और न मुझे किसी ने बताया है। बात मोदी जी के ‘मन की बात’ की है इसलिए खर्च-सर्च की बात ही बेमानी और राष्ट्रविरोधी है और आप कम से कम मुझसे तो किसी भी तरह का राष्ट्रविरोधी काम करने कि उम्मीद कर नहीं सकते।
मोदी जी आकशवाणी पर लगभग 20 मिनिट तक अपने ‘मन की बात’ करते हैं। आकाशवाणी के नियमों के मुताबिक मोदी जी को इस कार्यक्रर्म कि रिकार्डिंग के मेहनताने के रूप में कम से एक-डेढ़ हजार रुपए तो मिलना ही चाहिए। मैं जब आकाशवाणी में बुलाया जाता था तब मुझे तो कम से कम इतने ही पैसे मिलते थे। लेकिन जब से मोदी जी सत्ता में आए हैं आकाशवाणी ने मुझे काली सूची में दर्ज कर दिया है, मैं भूल चुका हूं कि देश में आकशवाणी जैसी कोई संस्था थी भी। वैसे भी आकशवाणी की दशा देश की अर्थ व्यवस्था की तरह खराब है। आकाशवाणी के पास न स्टाफ है और न पर्याप्त बजट। जो है उससे केवल और केवल प्रधानमंत्री जी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम की रिकार्डिंग और विश्व-व्यापी प्रसारण हो पाता है।
असली सवाल यही है कि पूरे 111 बार देश के समाने ‘मन की बात’ कर चुके देश ने क्या सचमुच उनके ‘मन की बात’ गौर से सुनी? और अगर सुनी तो उन्हें लोकसभा चुनाव में 400 पार क्यों नहीं कराया? क्यों 303 से लेकर 240 पर ला पटका? क्यों खुद प्रधानमंत्री जी की काशी में बहुत कम अंतर की जीत देकर उनकी फजीहत कर दी? ये सहज सवाल है। इनका सियासत से, भाजपा या कांग्रेस से कोई लेना-देना नहीं है। इनका सीधा संबंध प्रधानमंत्री जी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम से है। मेरी निजी राय है कि प्रधानमंत्री जी को अब अपने ‘मन की बात’ करने के बजाय अपने ‘मन की’ करना चाहिए। इसे देशज भाषा में मनमानी करना कहते हैं। ‘मन की बात’ कोई भी मन से नहीं करता। उसे झूठ का सहारा लेना ही पड़ता है। देश-विदेश में जितने भी आत्मकथा लेखक हुए हैं उनमें से अधिकांश सच नहीं लिखते। सच लिखने और बोलने लगें तो उन्हें ईसा-मसीह की तरह सूली पर न लटका दिया जाए!
यदि देश में कोई मोदी जी का खैर-ख्वाह हो तो उसे फौरन ‘मन की बात’ कार्यक्रम बंद करा देना चाहिए, क्योंकि इसका कोई हासिल है नहीं। लोकसभा के चुनाव परिणामों से ये साबित हो चुका है। इससे बेहतर तो प्रधानमंत्री जी का रात आठ बजे अचानक दूरदर्शन पर प्रकट होकर ‘राष्ट्र के नाम संबोधन’ ज्यादा लोकप्रिय था। प्रधानमंत्री जी ने ‘नोटबंदी’ से लेकर किसानों के हित में बनाए गए तीन कानूनों की वापसी की घोषणा दूरदर्शन के जरिये ही रात आठ बजे की थी। रात को आठ बजे दूरदर्शन पर दर्शन देकर देश की जनता के 12 बजाए जा सकते हैं। मोदी जी इसी तरह के सन्देश से कोरोना काल में ‘ताली-थाली’ और शंख बजवा ही चुके हैं। ये ताकत आकाशवाणी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम में नहीं है। इससे अच्छा तो ये है कि प्रधानमंत्री जी देश की संसद में ‘प्रश्नकाल’ की व्यवस्था समाप्त कराकर आधा घण्टे का समय प्रधानमंत्री जी के ‘मन की बात’ के लिए आरक्षित कर दें। इस सत्र में कोई सवाल न करे सिर्फ माननीय के मन की सुने और अनुमान लगाए की वे कब, क्या मनमानी करने वाले हैं। मन के बारे में मैं साहिर लुधियानवी साहब से बेहतर नहीं कह सकता। वे कहते हैं कि
तोरा मन दर्पण कहलाये
तोरा मन दर्पण कहलाये
भले बुरे सारे कर्मों को, देखे और दिखाये
*
मन ही देवता, मन ही ईश्वर, मन से बड़ा न कोय
मन उजियारा जब जब फैले, जग उजियारा होय
इस उजले दर्पण पे प्राणी, धूल न जमने पाये
*
सुख की कलियां, दुख के कांटे, मन सबका आधार
मन से कोई बात छुपे ना, मन के नैन हजार
जग से चाहे भाग लो कोई, मन से भाग न पाये
*
तन की दौलत ढलती छाया मन का धन अनमोल
तन के कारण मन के धन को मत माटी में रौंद
मन की कदर भुलानेवाला वीरां जनम गवाये
तोरा मन दर्पण कहलाये