संतोष से बडा कोई धन और सुख नहीं : आचार्य विनिश्चय सागर

भिण्ड, 22 सितम्बर। आचार्य 108 विनिश्चय सागर महाराज ने पर्यूषण पर्व पर विशेष प्रवचन सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज दसलक्षण पर्व का चौथा दिन पवित्रता का दिन है। लोभ नहीं होना ही सोच धर्म हैं। कषाय चार होती हैं- क्रोध, मान, माया, लोभ रूप है। क्रोध के त्याग से उत्तम क्षमा धर्म प्रकट होता है। मान के त्याग से उत्तम मार्दव धर्म प्रकट होता है। माया के त्याग से उत्तम आर्जव धर्म प्रकट होता है, लोभ के त्याग से उत्तम सोच धर्म प्रकट होता है। पाप पांच होते हैं- हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह। इन पांचों पापों का बाप लोभ को कहा गया है, क्योंकि लोभ के कारण ही पाप की शुरुआत होती है। इसीलिए काम करो, लालच नहीं करो। कहा भी है ‘लालच बुरी बलाय’। लालच से हमेशा सबको हानि हुई है और हमेशा होती रहेगी। ‘स्व’ और ‘पर’ के उपकार से रहित जो कुछ भी लोभ किया जाता है वह संसार को बढाने वाला ही है। इस संसार में धन-दौलत, परिवार, जमीन-जायदाद से कभी सुख नहीं मिला किसी को, और न कभी मिल सकता है। जिस किसी को भी सुख मिला है मात्र संतोष धारण करने से ही सच्चा सुख मिल सकता है। संतोष से बडा कोई धन नहीं। संग्रह बुरी बात नहीं है, लेकिन आवश्यकता से अधिक संग्रह बहुत बूरी बात है।
शुक्रवार को सुबह पांच बजे से ध्यान, छह बजे से अभिषेक शांतिधारा के पश्चात संगीतमय जिनेन्द्र देव की पूजन, आरती की गई। आचार्य के पाद प्राच्छालन का सौभाग्य राकेश जैन मंत्री परिवार को मिला। मंच संचालन अशोक जैन महामाया ने किया। वहीं शनिवार 23 सितंबर को आचार्य पुष्पदंत का निर्वाण लाडू महोत्सव, आचार्य विनिश्चय सागर महाराज ससंघ के सानिध्य में धूमधाम से सुबह चढाया जाएगा।