आखिर बच गया तिरंगा एक रंगी राजनीति से

– राकेश अचल


देश में पिछले एक दशक से ‘एक’ को लेकर जबरदस्त कोशिशें हो रही हैं, एक को अंग्रेजी में ‘वन’ कहते हैं। यानि वन नेशन, वन इलेक्शन, वन कांस्टीट्यूशन, हिन्दी में एक निशान, एक विधान। आज-कल एक नया नारा है वन मैन, वन वोट। गनीमत ये है कि वन कलर फ्लैग का नारा लगाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई। उनकी भी जिन्होंने आजादी के पांच दशक बाद तक अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया था।
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर चूंकि आज भी घर-घर तिरंगा पहुंचाने की मुहिम चल रही है, इसलिए मैं आश्वसत हूं कि भले ही हमारा संविधान खतरे में हो, संसद का सम्मान खतरे में हो, मतदान खतरे में हो, लेकिन हमारा तिरंगा निशान खतरे में नहीं है। राष्ट्र ध्वज को लेकर हमारी बेफिक्री तभी तक है जब तक भारत धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी संकल्प से जुडा है। जिस दिन ये देश पाकिस्तान की तरह एक धर्म का हो जाएगा, उसी दिन हमारा तिरंगा भी एक रंग के झण्डे में बदल जाएगा।
भारत के तिरंगे की कहानी भी भारत के संविधान की तरह रोचक है। आज हर राजनीतिक दल जिस तिरंगे को घर-घर पहुंचाने का अभियान चलाता है, तिरंगा यात्राएं निकालता है, उसकी रचना एक दिन की नहीं है। तिरंगे की कहानी स्वतंत्रता संग्राम, राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक विरासत से गहराई से जुडी है। तिरंगा, जिसे भारत का राष्ट्रीय ध्वज कहा जाता है, न केवल एक प्रतीक है, बल्कि देश की आजादी, बलिदान और आकांक्षाओं का जीवंत चित्रण है। विजयी विश्व तिरंगे को अपने वर्तमान स्वरूप में आने से पहले कई बदलावों से गुजरना पडा। 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में जब स्वतंत्रता आंदोलन जोर पकड रहा था, तब हमारे पास तिरंगा नहीं था। सबका अपना-अपना डंडा और अपना-अपना झंडा था। विभिन्न ध्वजों का उपयोग किया गया, जो क्षेत्रीय और सांस्कृतिक भावनाओं को दर्शाते थे।
अगर आप इतिहास के पन्ने पलटें तो जान पाएंगे कि स्वदेशी आंदोलन के दौरान 7 अगस्त 1906 को कोलकाता के पारसी बागान में पहला ‘राष्ट्रीय ध्वज’ फहराया गया। इसे सखाराम गणेश देउस्कर और अन्य नेताओं ने प्रस्तावित किया। इस ध्वज में हालांकि तीन रंग थे, लेकिन वे दूसरे रंग थे। सबसे ऊपर लाल पट्टी थी जिसे जिसमें सूर्य और चंद्रमा के प्रतीक माना गया था। मध्य पट्टी पीले रंग की थी जिसमें ‘वंदे मातरम’ लिखा था और सबसे नीचे हरा रंग था जिसमें कमल के फूल थे।
यह ध्वज स्वदेशी भावना और भारतीय एकता का प्रतीक था। लेकिन सालभर बाद ही 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में एक और ध्वज फहराया। यह ध्वज भी तीन रंगों (लाल, पीला, हरा) का था, जिसमें ‘वंदे मातरम’ लिखा था और सूर्य, चन्द्रमा जैसे प्रतीक थे। इसे ‘बर्लिन कमेटी ध्वज’ भी कहा जाता है। यह भारत की स्वतंत्रता की मांग को वैश्विक मंच पर ले जाने का प्रतीक था। कोई एक दशक तक यही तिरंगा चला किंतु 1917 में होम रूल आंदोलन के समय एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने होम रूल आंदोलन के दौरान एक नया ध्वज प्रस्तावित किया। इसमें पांच लाल और चार हरी क्षैतिज पट्टियां थीं। सात तारे सप्तऋषि के प्रतीक के रूप में थे। ऊपरी बाएं कोने में यूनियन जैक का प्रतीक था, जो स्वायत्तता की मांग को दर्शाता था। दाहिनी ओर अर्धचंद्र और तारा था। यह ध्वज स्वायत्त शासन की मांग का प्रतीक था।
भारत का ध्वज कोई चार साल बाद फिर बदला। 1921 में महात्मा गांधी ने एक साधारण ध्वज का सुझाव दिया, जो राष्ट्रीय एकता को दर्शाए। पिंगली वेंकैया, एक स्वतंत्रता सेनानी और डिजाइनर ने इस विचार को मूर्त रूप दिया। इस ध्वज में लाल रंग हिन्दुओं का प्रतीक बना। हरा मुस्लिम समुदाय का और सफेद अन्य समुदायों का प्रतीक बनाया गया। इसमें एक चरखा था, जो स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का प्रतीक था। यह ध्वज भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्रों में लोकप्रिय हुआ।
आधुनिक तिरंगे की नींव1931 में रखी गई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक नए ध्वज को अपनाया, जो वर्तमान तिरंगे का आधार बना। पिंगली वेंकैया ने ही इस ध्वज को डिजाइन किया, जिसमें सबसे ऊपर केसरिया पट्टी को बलिदान और साहस का प्रतीक बनाया गया। मध्य पट्टी सफेद रखी गई जो शांति और सत्य का प्रतीक थी और सबसे नीचे हरी पट्टी जो समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक थी। केन्द्र में नीला चरखा रखा गया जो स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को दर्शाता था। यह ध्वज राष्ट्रीय आंदोलन का प्रतीक बन गया और स्वतंत्रता संग्राम में व्यापक रूप से इस्तेमाल हुआ।
आपको बता दूं कि 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के समय वर्तमान तिरंगे को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया। हालांकि इसमें कुछ बदलाव किए गए और चरखे की जगह अशोक चक्र को शामिल किया गया, जो सम्राट अशोक के सारनाथ स्तंभ से लिया गया था। यह नीला चक्र धर्म, प्रगति और गतिशीलता का प्रतीक है। रंगों का अर्थ सामुदायिक एकता से हटकर अधिक समावेशी और व्यापक बनाया गया। केसरिया रंग साहस और बलिदान का सफेद शांति और सत्य का तथा हरा रंग समृद्धि और विश्वासका प्रतीक बना। अशोक चक्र धर्म और प्रगति का प्रतीक बना। इस तरह हमारा तिरंगा न हिन्दू बना और न मुसलमान। तिरंगे के लिए एक ध्वज संहिता भी बनाई गई जिसे 2002 में भारत सरकार ने संशोधित किया, जिसके तहत आम नागरिक अब तिरंगे को सम्मान के साथ किसी भी दिन फहरा सकते हैं।
वर्ष 2022 में भारत सरकार ने ‘हर घर तिरंगा’ अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता के 75वें वर्ष पर प्रत्येक भारतीय को तिरंगे के प्रति गर्व और सम्मान की भावना को बढावा देना था। इस अभियान ने तिरंगे को जन-जन तक पहुंचाया गया, लेकिन बाद में सत्तारूढ दल ने इसका राजनीतिक इस्तेमाल शुरू कर दिया। इन दिनों भी ऑपरेशन सिंदूर के बाद घर-घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है। बचपन में हमारी पीढी के लोग प्रभात फेरियां निकालते थे और ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा’ गीत गाया करते थे। इस गीत के लेखक श्यामलाल गुप्त पार्षद थे। यह गीत 1924 में लिखा गया था और इसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान में गाया जाता है। भाजपा और संघ जिस केसरिया ध्वज को लालकिले की प्राचर से फहराने का सपना देख रही थी वो अब संघ की शाखाओं तक सिमिट कर रह गया है।