– सुप्रयास ने आयोजित किया ओजोन परत जागरूकता कार्यक्रम
भिण्ड, 16 सितम्बर। ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमें बचाती है, अगर पृथ्वी के वायु मण्डल में ओजोन परत न हो तो इस स्थिति में सूर्य की पराबैंगनी किरणें सीधे पृथ्वी तक पहुंच सकती हैं, जिससे इंसानों में त्वचा कैंसर, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी जैसी कई तरह की गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इसके अलावा फसलों की पैदावार और समुद्री जीवन पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ेगा। इसी वजह से कई लोग इसे पृथ्वी का सुरक्षा ढाल भी कहते हैं। यह बात प्रो. हरेन्द्रदेव शर्मा ने सामाजिक संस्था सुप्रयास द्वारा देशराज मेमोरियल उमावि में आयोजित जागरुकता कार्यक्रम में कही।
कार्यक्रम की रूपरेखा रखते हुए सुप्रयास के सचिव डॉ. मनोज जैन ने कहा कि 20वीं सदी की शुरुआत में रेफ्रिजरेटर, एसी समेत अन्य उत्पादों का बढ़-चढ़कर इस्तेमाल किया जाने लगा था, जिसकी वजह से क्लोरो फ्लोरो कार्बन्स जैसी रसायनिक गैसों से ओजोन परत को नुकसान पहुंच रहा था। इन रसायनों की वजह से अंटार्कटिका के ऊपर एक बड़ा होल बनने लगा। हालांकि, समय रहते दुनिया ने इस समस्या को पहचान लिया। इस बड़े खतरे को रोकने के लिए कई कदम उठाए गए हैं।
चंद्रशेखर भदौरिया ने कहा कि 70 के दशक के अंत में कई वैज्ञानिकों को ओजोन परत में हुए इस छेद के बारे में पता चला था। इस समस्या को देखते हुए 80 के दशक में दुनिया के कई देशों ने मिलकर इस समस्या का हल निकालने के लिए चिंतन शुरू किया। ओजोन परत की सुरक्षा के लिए साल 1985 में दुनिया की सरकारों ने वियना कन्वेंशन को अपनाया था। वहीं 19 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल असेंबली ने 16 सितंबर को ओजोन लेयर का बचाव करने के लिए ओजोन डे मनाने की बात कही गई। इसी कड़ी में पहला ओजोन डे 16 सितंबर, 1995 को मनाया गया था। कार्यक्रम में अनामिका भदौरिया, पुष्पेन्द्र सिंह भदौरिया, बुद्ध सिंह, आशीष चौहान ने भी संबोधित किया।