सन्यास से परहेज करने वाले सर संघचालक

– राकेश अचल


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत गुरुवार को चुपचाप 75 वर्ष के हो गए, लेकिन उन्होंने न सन्यास लिया और न संघ का न्यास छोड़ा। डॉ. भागवत 16 वर्ष से अधिक समय से संघ के प्रमुख हैं। महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में 11 सितंबर 1950 को जन्मे भागवत आरएसएस प्रमुख के कार्यकाल की अवधि के मामले में एमएस गोलवलकर और बाला साहब यानि मधुकर दत्तात्रेय देवरस के बाद तीसरे स्थान पर है।
डॉ. मोहन भागवत पर लिखकर हालांकि मैं अपने शब्दकोष का अपव्यय कर रहा हूं, क्योंकि वे न गोलवलकर हैं और न देवरस। वे केवल भागवत हैं। उनसे पहले आरएसएस के तीसरे प्रमुख रहे बाला साहेब 20 से अधिक वर्षों तक शीर्ष पद पर रहे और गुरु गोलवलकर 32 वर्ष तक संघ की कमान सम्हालते रहे।
डॉ. मोहन भागवत ने लगभग 50 साल पहले आरएसएस के प्रचारक के रूप में काम करना शुरू किया और मार्च 2009 में इसके सरसंघचालक (प्रमुख) बने। उनके पिता मधुकरराव भागवत भी एक प्रचारक यानी एक पूर्णकालिक आरएसएस कार्यकर्ता थे। देवरस से लेकर भागवत तक जितने भी संघ प्रमुख रहे उनमें से अधिकांश से मैं रूबरू हुआ हूं। इसलिए अधिकार पूर्वक कह सकता हूं कि डॉ. भागवत सबसे अलग हैं। वे न देवरस जैसे शुष्क और न रज्जू भैया जैसे सरल हैं। वे विरल हैं। मूछों में से रहस्यमय तरीके से मुस्कराते हैं। डॉ. भागवत की सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि उन्होंने संघ के स्वयं सेवकों को हाफ पेंट की जगह फुल पेंट पहनने को दिया। इससे वरिष्ठ स्वयंसेवकों की टांगों की निर्लज्जता कुछ हद तक कम हुई।
डॉ. मोहन भागवत की दूसरी बड़ी उपलब्धि ये है कि उन्होंने पशु चिकित्सक होते हुए भी संघ के शाखामृगों का बौद्धिक किया। डॉ. भागवत की तीसरी बड़ी उपलब्धि ये है कि उन्होंने अपने से छह दिन कनिष्ठ नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को प्रधानमंत्री पद पर बनाए रखने के लिए प्रेशर कुकर की सीटी की भूमिका निभाई। मोदीजी के प्रति पार्टी और संघ ही नहीं, आम जनता में पनपने वाले असंतोष को कम करने के लिए सबसे ज्यादा बैंगन नृत्य किया।
डॉ. भागवत पिछले 16 साल से एक गिरगिटिया भूमिका निभा रहे हैं, उन्होंने जनसंख्या नीति, मुस्लिम विरोध, आरक्षण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर हर बार भ्रामक बयान देकर देश को उलझाए रखने की कोशिश की। वे पहले ऐसे सर संघचालक हैं जो लगातार पलटूराम की तरह कुचालक की भूमिका अदा करते रहे। डॉ. मोहन भागवत ने पिछले 11 साल में संघ को दुनिया का पहला ऐसा अपंजीकृत लेकिन आर्थिक रूप से संपन्न एनजीओ बनाया जिसकी कोई सानी नहीं है। संघ को मजबूत बनाने के लिए उन्होंने निर्ममता से सत्ता का दोहन किया। उन्होंने खुद भी भरपूर सत्ता सुख और वीवीआईपी स्टेटस हासिल कर अपने पूर्ववर्ती सर संघचालकों की सादगी को धत्ता दिखाया।
सर संघचालक ने कुछ मौकों पर 75 वर्ष की आयु में सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लेने की बात कहकर ये भ्रम भी फैलाया कि वे मोदी को इंगित कर रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं था। डॉ. भागवत दरअसल मोदीजी को भी प्रधानमंत्री पद पर उसी तरह ताउम्र बनाए रखना चाहते हैं जैसे कि सर संघचालकों को उनके पद पर रखने की कोशिश की जाती है।
डॉ. भागवत भी जिस तरह 75 वर्ष के होने के बाद सन्यासी नहीं बने उसी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी 17 सितंबर को 75 वर्ष के होने पर सन्यासी नहीं होने जा रहे। डॉ. मोहन भागवत और नरेन्द्र मोदी अटकलें भी लगीं कि भागवत खुद 75 वर्ष के होने पर संन्यास ले लेंगे। मैं डॉ. भागवत और दामोदर दास मोदी के शतायु होने की कामना करता हूं। हालांकि मैं भी इन दोनों को नानाजी देशमुख की तरह एक सन्यासी के रूप में देखना चाहता था। सन्यास के वारे में मैं सोचूंगा किंतु आज नहीं 9 साल बाद।