@ राकेश अचल
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता गई है, चुनाव के लिए अयोग्य ठहराए गए हैं, इससे बिलबिलाने की जरूरत नहीं है, कोई पहाड़ नहीं टूटा है कांग्रेस पर.. अदावत की राजनीति में ये सब पहले से तय था|आप अदालत की नीयत पर भले ही शिष्टाचार में उंगली न उठाएं, लेकिन जिस तरह से लोकसभा सचिवालय काम कर रहा है उस पर सवाल करने से आपको किसी ने नहीं रोका|सड़कों पर लड़ने से आपको किसी ने नहीं रोका, इसलिए लोकतंत्र को बचाने के रास्ते और भी हैं|
राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि के मामले में दो साल की सजा सही है या गलत ये ऊपर की अदालतें तय कर सकती हैं, आप और हम नहीं|इसलिए इन्तजार कीजिए, इन्तजार का अपना आनंद है, सत्ता के बेकाबू सांड से लड़ने के लिए हर मोर्चे पर लड़ना पड़ता है| कानूनी लड़ाई भी और जनता को साथ लेकर लड़ाई भी, राहुल पहले से सड़कों पर हैं, उनकी कामयाब भारत जोड़ो यात्रा का प्रतिफल उन्हें मिल गया है|उन्होंने मानहानि का कथित रूप से जघन्य अपराध किया है या नहीं ये अदालत के बाद जनता तय करेगी, जनता के फैसले का इन्तजार करना चाहिए|
देश में ऐसे मौके पहले भी आए हैं, अनेक जन प्रतिनिधि चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहराए गए हैं, हमारी अदालतें कुछ भी कर सकती हैं, ईश्वर के बाद डाक्टर और अदालतें ही व्यक्ति का भविष्य तय करती हैं| उनकी डोर किसके हाथ में होती है, ये बताने की जरूरत नही, ये पब्लिक सब जानती है, पब्लिक को पता है कि इस समय राजनीति कितनी घ्रणित हो चुकी है|सवालों के जबाब देने से बचती सरकार किसी भी हद तक जा सकती है, सरकार के हाथ कानून के हाथों से भी ज्यादा लम्बे हैं, सरकार के लम्बे हाथ अदृश्य नहीं है, सबको दिखाई दे रहे हैं, वे आपके हाथ से धीरे-धीरे स कुछ छीनते जा रहे हैं, यहां तक कि आपकी आजादी भी, लोकतांत्रिक अधिकार भी, दुर्भाग्य है कि हमारी विधिक व्यवस्थाएं भी इस कुकृत्य में शामिल हैं|
ये वो ही देश है जिसमें बाबरी मस्जिद गिराने वाले मुख्यमंत्री अवमानना के मामले में एक दिन की सजा काट कर जेल से बाहर आ जाते हैं, लेकिन चुनाव लड़ने के योग्य बने रहते हैं, अदालते अपनी मानहानि की कीमत एक रुपया वसूल कर संतुष्ट हो जाती हैं लेकिन प्रशांत भूषण जेल नहीं जाते|ये वो ही देश है जिसमें दंगों, नर हत्याओं के आरोपियों को बा इज्जत बरी कर दिया जाता है लेकिन मानहानि जैसे मामूली मामले में राहुल गांधियों को जेब कतरी के जुर्म से भी बड़ी सजा सुनाई जाती है|अदालतों का इसमें कोई दोष नहीं है, हमारे विधान में जितनी सजा का प्रावधान है, उतनी सजा सुनाई जा सकती है, सुनाई गयी है, फर्क सिर्फ इतना है कि सजा का निर्धारण कैसे किया गया ? क्या वाकई राहुल का अपराध इतना बड़ा है था या है कि उससे लोकसभा की सदस्य्ता छीन ली जाये या उसे छह साल तक चुनाव लड़ने के योग्य न माना जाए ?
राहुल की तकदीर ही खराब है|राहुल को भाजपा ने नहीं बल्कि एक स्तर न्यायालय ने सजा सुनाई है, इसलिए भाजपा को इसके लिए जिम्मेदार नहीं कहा जाना चाहिए| सत्र न्यायालय का फैसला शिरोधार्य करना ही चाहिए, लेकिन तब जब उस पर अंतिम फिसला हो जाए| अभी अदालतें और भी बहुत कुछ करने का धिकार रखती हैं, ऐसे में लोकसभा सचिवालय को क्या हड़बड़ी थी जो आनन-फानन में राहुल की सदस्य्ता समाप्ति का आदेश जारी कर दिया गया ? क्या जरूरत थी कि लोकसभा की वेब साइट से राहुल का नाम विलोपित कर दिया गया ? राहुल गांधी एक राजनेता हैं, जेब कतरे नहीं| उनके ऊपर किसी बीबीसी ने कोई विवादास्पद फिल्म नहीं बनाई, उनके खिलाफ किसी नरसंहार का कोई मुकदमा नहीं चला|लेकिन इससे क्या होता है|जब लोग राहुल नाम को हौआ मानने लगें तो तो ये सब तो होता ही है|
एक पत्रकार के रूप में मै राहुल गांधी का प्रशंसक हो सकता हूं लेकिन समर्थक नहीं|मेरी राहुल गांधी से सहानुभूति आम आदमी की तरह है, बेचारा राहुल, सियासत के अदावती दौर की बलि चढ़ गया|लोग उसे संसद में नहीं झेल पाए|भला हो अदालत का कि उसने डरे हुए लोगों के हाथ में बैशाखी थमा दी, राहुल के खिलाफ ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाले सत्र न्यायाधीश की तो न्याय जगत में अब पूजा कि जाएगी|की जाना भी चाहिए अन्यथा इतने भारी-भरकम फैसले अदालतें आजकल देती कहां है? ये फैसला एक नजीर है जो भविष्य में एक नजीर बनेगा|कल किसी ने नहीं देखा, मुमकिन है कि जो लोग आज इस फैसले पर बल्लियों उछल रहे हैं वे भी कल इसी तरह के फैसलों का सामना करें, क्योंकि राजनीति में जबाने और जुबानें दोनों कैंचियों की तरह चलती हैं|
विसंगति है कि जिस तरह से देश में लोकसभा और राज्य सभा ने संसदीय और असंसदीय शब्दों की तालिका बना रखी है ऐसी कोई स्पष्ट तालिका अदालतों में नहीं है, ये अदालतों का विवेक है कि वे किस शब्द को मानहानिकारक मानें और किसे नहीं? राहुल गांधी इसी विसंगति के शिकार हुए हैं, अन्यथा उन्हें हाल ही में मीर जाफर कहने वालों को भी वैसी ही सजा सुनाई जा सकती है जैसी कि राहुल गांधी को सुनाई गई है| हकीकत ये है कि राहुल अब राहुल नहीं रहे, वे अभूतपूर्व भूत बन गए हैं, उनसे भारत भाग्य विधाता भयभीत हैं, राहुल की परछाई भी भाग्यविधाताओं की नींद में खलल डालती है|
बेहतर होता कि सूरत की अदालत राहुल को जमानत देने के बजाय सीधे जेल भेजती, राहुल का अपराध है ही इतना जघन्य|जमानत पर रहकर राहुल पूरे मामले के साथ न जाने किस,किस को प्रभावित करें? देश की राजनीति तो सीधे-सीधे प्रभावित हो रही है| विपक्षी प्रभावित हो रहे हैं, सबकी सहानुभूति राहुल के प्रति बढ़ रही है, ये ठीक नहीं हो रहा| राहुल की जमानत रद्द कर उन्हें यथाशीघ्र जेल भेजा जाना चाहिए ताकि उनकी अक्ल ठिकाने आ सके|राहुल गांधी सियासत के लायक हैं ही कहां? वे तो पप्पू ठहरे, पप्पू न होते तो इतनी आसानी से मानहानि के मामले में दोषी करार दिए जाते, अदालत के सामने गिड़गिड़ाते, दंडवत हो जाते|फिर से लिखित माफी मांग लेते, लेकिन बेशऊर राहुल गांधी ने ऐसा कुछ नहीं किया,क्षमा मांगने वाले को वीर कहा जाता है, सत्तारूढ़ दल के पास तो ऐसे वीरों की लम्बी विरासत है|
बहरहाल 2023 -24 देश की राजनीति के लिए एक मील का पत्थर साबित होने वाला है|नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में एक और चुनाव लड़ा जाएगा, जीता जाएगा और भारत को विश्व गुरु बनाने का अधूरा सपना पूरा किया जाएगा|क्योंकि बकौल मनोज सिन्हा मोदी जी ने अपनी अंतरध्वनि सुन ली है और अंतरध्वनि उन्हें ही सुनाई देती है जिनके पास कोई डिग्री नहीं होती, सिन्हा साहब कहते हैं कि महात्मा गांधी के पास भी कोई डिग्री नहीं थी|अब सिन्हा साहब के खिलाफ मानहानि का मामला चलाने महात्मा गांधी आएंगे नहीं|हालांकि सिन्हा साहब ने एक बैरिस्टर को अनपढ़ बता दिया है|है किसी गांधीवादी में हिम्मत जो इस मुद्दे को लेकर किसी सत्र न्यायालय में जाए|
achalrakesh1959@gmail.com