कुदरत की नाराजगी को पहचानिये

– राकेश अचल


धरती डोल रही है और आसमान कहर बरपा रहा है, आखिर कुछ तो वजह है जो कुदरत इतनी नाराज है हम इंसानों से? गुजिस्ता रात हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के एक बड़े हिस्से में भूडोल से दहशत फैल गई। ऊपर वाले का शुक्र है कि हमारे यहां भूडोल से जानोमाल का कोई नुक्सान नहीं हुआ, लेकिन पड़ौस में हुआ। उससे पहले दूसरे मुल्क इस तरह के कुदरती हादसों के शिकार हो चुके हैं। जाहिर है कि हम सबसे कहीं न कहीं कोई गलती हो रही है, जो हम इंसानों की जान को आफत में डालने वाली है।
केवल हिन्दुस्तान में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इंसानों ने कुदरत के साथ दोस्ताना रवैया अख्तियार करने के बजाय कुदरत के साथ न सिर्फ खिलवाड़ की है बल्कि उसका बुरी तरह से दोहन भी किया है। नतीजे सामने हैं। पहाड़ों से लेकर मैदान तक इंसानों का वजूद खतरे में है और पूरी दुनिया में यही हालात हैं। कहीं कम तो कहीं ज्यादा, लेकिन खतरे सब दूर हैं। कुदरत के साथ खिलवाड़ अब जानलेवा बन चुकी है।
दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 6.6 रही। जानकारी के मुताबिक इस भूकंप का केन्द्र अफगानिस्तान का हिन्दू कुश क्षेत्र रहा। पाकिस्तान के इस्लामाबाद, लाहौर और पेशावर में भी भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। अब तक भूकंप से भारत में किसी भीतरह के जानमाल के नुकसान की कोई खबर नहीं है। सीस्मोलॉजी विभाग के मुताबिक रात 10:17 बजे कालाफगन, अफगानिस्तान से 90 किमी की दूरी पर यह झटके महसूस किए गए। लोग घरों से निकलकर पार्क में आ गए। भूकंप इतना तेज था कि लोग काफी डर गए थे। एक महीने में ये तीसरी बार है जब राजधानी और एनसीआर में भूकंप आया हो।
आपको याद होगा कि इससे पहले सोमवार को हिमाचल प्रदेश में भी भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए थे। कुछ दिन पहले गुजरात के कच्छ में भी 3.9 तीव्रता का भूकंप आया था। गुजरात में ही 26 और 27 फरवरी को भी भूकंप के दो झटके महसूस किए गए थे, जिसमें से एक की तीव्रता 4.3 और 3.8 थी। इसी तरह पांच मार्च को उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी में 2.5 तीव्रता का भूकंप आया था। इसका केन्द्र जमीन के पांच किमी गहराई में था।
जैसा कि मैंने कहा कि केवल धरती ही नहीं डोल रही साथ ही आसमान भी नाराज है। बेमौसम बरसात की वजह से लोग हलकान हैं। किसानों की मेहनत पर पानी फिर गया है और तरह-तरह की बीमारियां सर उठा रही हैं, यहां तक कि कोविड के मामले भी सामने आने लगे हैं। मध्य प्रदेश में ओलावृष्टि से ऐसा लगा जैसे हिमपात हुआ हो। देश में अचानक से मौसम ने करवट ले ली है। मौसम विभाग के अनुसार, इस हफ्ते कई राज्यों में बारिश के आसार बने हुए हैं। मौसम विभाग ने कुछ राज्यों के लिए येलो तो कुछ के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी कर दिया है।


अनुमान लगाया जा रहा है कि 23 मार्च से पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र और पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों सहित उत्तर पश्चिम भारत में तेज गरज के साथ बारिश शुरू होने की संभावना है। अहमदाबाद के मौसम विभाग की निदेशक मनोरमा मोहंती ने कहा कि मंगलवार को हल्की बारिश की संभावना के साथ गुजरात में अगले तीन-चार दिनों तक हल्की बारिश हो सकती है। आंकड़े बताते हैं कि के अनुसार, दिल्ली में सोमवार को पिछले तीन वर्षों में मार्च के लिए सबसे अधिक 24 घण्टे की बारिश हुई, केवल तीन घण्टों में 6.6 मिमी वर्षा दर्ज की गई। राष्ट्रीय राजधानी में मंगलवार को भी मौसम खुशनुमा बना रहेगा। आसमान में बादल छाए रहने और हल्की बारिश या बूंदाबांदी की संभावना है। अधिकतम और न्यूनतम तापमान क्रमश: 26 और 16 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रहेगा।
सवाल ये है कि आखिर जलवायु परिवर्तन के लिए कौन जिम्मेदार है? इस मामले को लेकर पूरी दुनिया के वैज्ञानिक हलकान हैं, तरह-तरह के शोध हो रहे हैं और लगभग सभी के नतीजे हम इंसानों को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। कुदरत के खिलाफ खड़े होने का खमियाजा भी इंसानों को ही भुगतना पड़ रहा है, लेकिन इंसानों के अलावा बेगुनाह जानवर, जंगल और जमीनें भी सजा भुगत रहे हैं। कोई सम्हलने और हालात को सम्हालने के लिए राजी नहीं है, इस अनदेखी से हालात बेकाबू हो रहे हैं।
भूकंप का हिसाब-किताब रखने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की माने तो सिर्फ 14 जून को दुनिया भर में 50 से ज्यादा भूकंप आए हैं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक गत वर्ष 14 जून को दुनिया में 50 जगह भूकंप आया था, जिनकी तीव्रता 5.4 से लेकर 2.5 तक मापी गई। जिन देशों में भूकंप आया उनमें इंडोनेशिया, हवाई, पुर्तो रिको, म्यांमार, जमैका, अलास्का, तुर्की, भारत, जापान, ईरान, फिलीपींस प्रमुख है। हालांकि इनमें से कई देशों में एक से ज्यादा बार झटके आए हैं। इसके अतिरिक्त इनमें से ज्यादातर देश ज्वालामुखी क्षेत्र में पड़ते हैं, जिसके चलते ये भूकम्प के भी रेड जोन में माने जाते हैं। बीते दो महीनों से दुनिया के रेड और ऑरेंज जोन में हलचल बढ़ी है और इसका नतीजा लगातार भूकंप के तौर पर सामने आ रहा है।
विज्ञान कहता है कि पृथ्वी के अंदर सात प्लेट्स हैं जो लगातार घूम रही हैं। जहां ये प्लेट्स ज्यादा टकराती हैं, वह जोन फॉल्ट लाइन कहलाता है। बार-बार टकराने से प्लेट्स के कोने मुड़ते हैं। जब ज्यादा प्रेशर बनता है तो प्लेट्स टूटने लगती हैं। नीचे की एनर्जी बाहर आने का रास्ता खोजती है। इसी से भूकंप पैदा होता है। अर्थक्वेक ट्रैक एजेंसी के मुताबिक हिमालयन बेल्ट की फॉल्ट लाइन के कारण एशियाई इलाके में ज्यादा भूकंप आते हैं। प्लेट्स जहां-जहां जुड़ी होती हैं, वहां-वहां टकराव ज्यादा होता है और उन्हीं इलाकों में भूकंप ज्यादा आता भी है।
आपको ये जानकर भी हैरानी होगी कि दुनिया में धरती पर जो भी बड़े-बड़े पहाड़ दिख रहे हैं, वो सब के सब प्लेट्स के टकराने से ही बने हैं। ये प्लेट्स कभी आमने-सामने टकराती हैं, तो कभी ऊपर नीचे टकराती हैं, तो कभी आड़े-तिरछे भी टकरा जाती हैं और जब-जब ये टकराती हैं तो भूकंप आ जाता है। ये भूकंप आता है तो धरती हिलती है। तुर्की में भूडोल ने 45 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी। सीरिया में भी कोई पांच हजार लोग मारे गए थे। एक दशक पहले 2011 में जापान में 20 हजार और 2010 में हैती में तीन लाख से ज्यादा लोगों की जान गई थी। 2008 में चीन में 87 हजार लोग मारे गए थे। कहने का मतलब ये है कि भूडोल किसी भी युद्ध से भी ज्यादा भयानक हो सकता है।