न्याय की देवी

– अशोक सोनी निडर


न्याय की देवी हमेशा गांधारी ही क्यों होती है।
सच हो या झूठ हमेशा दूसरों की नजर से ही देखती है।।
न्याय की देवी हमेशा आलसी क्यों होती है।
मंजिल तक पहुंचते पहुंचते वर्षों बिता देती है।।
न्याय की देवी बहुधा अमीरों की मिल्कियत क्यों होती है।
डेट पर लगती डेट गरीबों के लिए हमेशा न्याय लेट।।
न्याय की देवी अक्सर अपाहिज क्यों होती है।
सबूतों की बैसाखियो के बिना कदम ही नहीं बढ़ाती।।
न्याय की देवी अक्सर बिक क्यों जाती है।
चंद पैसे बालों के हक में न्याय हो जाता है।।
हे न्याय की देवी खुद को सुधारो।
आंख पर बंधी ये पट्टी उतारो।।
अपनी चाल में तेजी तुम लाओ।
दोषियों को सीधा काल के गाल में पहुंचाओ।।
गरीबों मजबूरों को दे दो तुम न्याय।
दोषी हो अमीर तो भी बच न पाए।।
सुनवाई टालने की याचिका अब ना हो स्वीकार।
तुरंत मिले न्याय तभी तो होगी जय जयकार।।
जब मिलेगा न्याय सबको एक समान।
सत्य मेव जयते का होगा तब दिल से सम्मान।।