सुदामा चरित्र के साथ हुआ भागवत कथा का समापन

भिण्ड, 01 नवम्बर। ग्राम रजरापुरा में आयोजित भागवत कथा के अंतिम दिन शनिवार को कथा व्यास अखिलेश लवानिया ने भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता और जीवन के सार का विस्तार से वर्णन किया। जिसको सुनकर श्रद्घालु भावविभोर हो उठे।
कथा व्यास ने कहा कि सुदामा चरित्र अत्यंत स्वाभाविक, हृदयग्राही, सरल एवं भावपूर्ण कथा है। इसमें एक ही गुरु के यहां अध्ययन करने वाले दो गुरु-भाइयों, सुदामा और श्रीकृष्ण की आदर्श मैत्री का चित्रण किया गया है। उन्होंने कहा कि सुदामा संसार में सबसे अनोखे भक्त रहे हैं, वह जीवन में जितने गरीब नजर आए, उतने ही वह मन से धनवान थे। उन्होंने अपने सुख व दुखों को भगवान की इच्छा पर सौंप दिया था। कथाव्यास ने श्रीकृष्ण और सुदामा के मिलन का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र श्रीकृष्ण से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। वहां पहुंचकर सुदामा ने द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढऩे लगे तब द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं, इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है और अपना नाम सुदामा बता रहा है। जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना तो प्रभु सुदामा-सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे। वहां सामने सुदामा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया-कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया और सुदामा को अपने महल में ले गए और उनका अभिनंदन किया। उन्होंने कहा कि जब सुदामा भगवान श्रीकृष्ण से मिलने आए तो कृष्ण ने सुदामा के फटे कपड़े नहीं देखे, बल्कि मित्र की भावनाओं को देखा। इसलिये मनुष्य को अपना कर्म नहीं भूलना चाहिए। अगर सच्चा मित्र है तो मित्रता श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह होना चाहिए।
कथा वाचक ने कहा कि जीवन में मनुष्य को श्रीकृष्ण की तरह अपनी मित्रता निभानी चाहिए, कथा में महिलाओं ने भजन कीर्तन किए और कथा सुनने आए श्रद्धालुओं ने भक्ति रस का पान किया। उन्होंने कहा कि आजकल के लोग अपने आप को हिन्दू कहते फिरते है, उन पर शर्म आती है, जो चिल्लाते है कि गौ हत्या बंद हो लेकिन खुद ही प्रतिदिन वाहनों से गायों को कुचल रहे हंै। आज प्रत्येक व्यक्ति गाय का दूध और घी तो चाहता है पर गाय को घर पर नहीं रखना चाहते हंै। इस मौके पर चरण सिंह राजपूत, अरुण त्रिपाठी, जितेन्द्र पार्षद, लखन भगत, धर्मपाल चौहान, अरुण कुचिया, रानू तिवारी, समेत सैकड़ों श्रोतागण मौजूद रहे।