राहुल से आखिर कब तक डरेगी भाजपा?

– राकेश अचल


मैं भारतीय जनता पार्टी को एक दूरदर्शी और निडर पार्टी मानता हूं, लेकिन जब-जब चुनाव में भाजपा नेताओं के सिर पर लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी का भूत चढ़ा देखता हूं तब-तब मुझे अपनी ही धारणा गलत प्रतीत होने लगती है। बिहार विधानसभा चुनाव में भी भाजपा राहुल से आतंकित दिखाई दे रही है। अब राहुल गांधी को परेशान करने के लिए भाजपा समर्थक अदालत का सहारा ले रहे हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा बिहार चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और लोक आस्था के महापर्व छठ पर की गई कथित अमर्यादित टिप्पणी को लेकर मुजफ्फरपुर के मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी की अदालत में उनके खिलाफ एक परिवाद दर्ज कराया गया है। यह मामला अब राजनीतिक तूल पकड़ता जा रहा है। यह परिवाद मुजफ्फरपुर के प्रसिद्ध अधिवक्ता सुधीर कुमार ओझा ने दायर किया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि राहुल गांधी ने बुधवार को सकरा विधानसभा क्षेत्र में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। आरोप के मुताबिक, राहुल गांधी ने कहा था कि पीएम मोदी वोट के लिए स्टेज पर नाच भी लेंगे।
परिवाद में यह भी आरोप लगाया गया है कि राहुल गांधी ने छठ पर्व को लेकर ड्रामा जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। जिससे करोड़ों हिन्दुओं और बिहार वासियों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। अधिवक्ता ओझा ने इसे भारतीय न्याय संहिता की धारा 298, 356(2), 352 और 353 के तहत एक दंडनीय अपराध बताया है। सीजेएम कोर्ट ने भी इस परिवाद को स्वीकार कर लिया है और मामले की अगली सुनवाई के लिए 11 नवंबर 2025 की तारीख तय की है। इस मामले ने बिहार की चुनावी सरगर्मी को और बढ़ा दिया है। एक तरफ जहां कांग्रेस और महागठबंधन इसे राजनीतिक प्रतिशोध बता रहे हैं, वहीं भाजपा और एनडीए इसे बिहार की अस्मिता और प्रधानमंत्री के सम्मान से जोड़कर मुद्दा बना रहे हैं।
राहुल गांधी के खिलाफ अदालत गए सुधीर कुमार ओझा का भाजपा से कनेक्शन है या नहीं, ये पता नहीं है। लेकिन ओझा अक्सर सार्वजनिक बयानों को लेकर नेताओं को अदालत में घसीटते रहे हैं। अब देखना यह होगा कि अदालत इस मामले में क्या रुख अपनाती है और राहुल गांधी की मुश्किलें कितनी बढ़ती हैं। इस घटना ने बिहार चुनाव में बयानों की मर्यादा और राजनीतिक हमलों के स्तर पर एक नई बहस छेड़ दी है।
बिहार विधानसभा चुनाव में कौन नेता क्या कह रहा है ये जानना दिलचस्प है। मोशा की जोड़ी हो या गिरिराज पंडित जी की जुबान, हर दिन फिसलती रहती है। लेकिन कोई विपक्षी न अदालत गया और न केंचुआ के पास। दूसरी तरफ भाजपा की ओर से इसका श्रीगणेश हो चुका है। मेरे ख्याल से चुनाव के समय नेता एक दूसरे के विरुद्ध जो बोलते हैं, उसका फैसला कानून की अदालत के बजाय जनता की अदालत में ही होना चाहिए।
राहुल के खिलाफ अदालत गए ओझा को भी पहले केंचुआ के पास जाना था। केंचुआ जब ना-नुकर करता तब अदालत विकल्प होती। बहरहाल मुझे नहीं लगता कि कोई सीजेएम राहुल गांधी को चुनाव प्रचार करने से रोकेगा। फिर भी यदि रोक दे तो फायदा एनडीए को नहीं मोदी जी के प्रिय लठबंधन यानि महागठबंधन को ही होगा। ये पहला मौका है जब देश के प्रधानमंत्री को एक गठबंधन से ज्यादा उसके नेताओं के खिलाफ मोर्चा लेना पड़ रहा है। अन्यथा हर विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री न तो खुद चेहरा मोहरा बनते हैं और न ही कोई व्यक्तिगत टिप्पणी करते हैं, किंतु मोदी जी बार-बार तेजस्वी यादव और राहुल गांधी को युवराज कह कर उन पर गालियां देने का आरोप लगा रहे हैं।