– प्रथम पुण्यतिथि 25 जुलाई पर विशेष –
(सुबोध अग्निहोत्री -9425129460)
स्व. प्रभात झा मूलत: बिहार के थे, लेकिन उनकी कर्म भूमि मध्य प्रदेश ही रही। वे बहुत कम उम्र जिए, लेकिन जितना भी जिये उतने समय में लोगों के दिलों में अपना एक अमिट स्थान बनाकर गए। स्व. प्रभात झा परिश्रमी व्यक्ति थे, वे श्रम साधक थे, श्रम ही उनकी साधना थी और इसी श्रम की वजह से उन्होंने स्वास्थ्य की परवाह नहीं की। बचपन में श्रम किया, युवावस्था में श्रम किया और पत्रकार बने, पत्रकारिता में भी उन्होंने अपना झण्डा ऊंचा बनाए रखा। ग्वालियर में एक समय ऐसा था कि अखबार की पहचान ही प्रभात जी से होने लगी। तभी से वे भारतीय जनता पार्टी से भी जुड गए और पत्रकारिता व पार्टी का काम पूरे समर्पण भाव, सत्यनिष्ठा, लगन व ईमानदारी से किया। चूंकि पार्टी सत्ता में नहीं थी इसलिए कार्यकर्ता काम कराने प्रभात जी के पास ही पहुंच जाते और वे बिना संकोच के कार्यकर्ता का काम करते। मैंने देखा है कि प्रभात जी को प्रेस से घर तक छोडने के लिए ऑटो, रिक्शा वाले पैसे तक नहीं लेते थे। ग्वालियर जैसे महानगर में ज्यादातर घरों में उनका सीधा आना-जाना था।
उस समय इतने संसाधन नहीं होते थे, लेकिन सीमित संसाधनों में भी वे गजब का काम करते थे। लोग अखबार में प्रभात जी की खबर ही नहीं देखते थे बल्कि अखबार भी प्रभात जी की खबर पढने के लिए लेते थे। अयोध्या में बाबरी विध्वंश हो या गजराला काण्ड हो, प्रभात जी मौके पर जाकर रिपोर्टिंग करते थे। उनके लेख और लेखनी दोनों शानदार थे और जब तक खबर उन्हें स्वयं को अच्छी नहीं लगती तब तक वे लिख-लिख कर पन्ने फाडते रहते थे। अच्छे पेन रखने के शौकीन थे और लिबास सिर्फ कुर्ता-पायजामा, इसके अलावा उन्होंने कुछ पहना ही नहीं।
इतनी कम उम्र में उन्होंने बहुत कुछ हांसिल किया, पार्टी के राष्ट्रीय मंत्री, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष, दो बार राज्यसभा के सांसद, पार्टी की पत्रिका कमल संदेश के सम्पादक भी रहे। उन्होंने इतना परिश्रम किया कि स्वास्थ्य के प्रति ध्यान ही नहीं रखा, या यूं कहें कि वे अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह रहे। उनके संबंधों व संपर्कों की सूची बहुत विस्तृत है। भोपाल और ग्वालियर भले ही उनके कर्म क्षेत्र रहे हों, लेकिन पूरे मध्य प्रदेश में उनके परिचित और अनुयायी मौजूद हैं।
प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने पूरे प्रदेश का दौरा किया। हर जिले, मण्डल और बूथ स्तर तक कार्यकर्ता से मिलने पहुंचे। वे मुंहफट थे, जो भी कहना मुंह पर कहना, उनकी ये बात कुछ लोगों को रास नहीं आती थी, लेकिन वे इसी बात के तो ‘प्रभात झा’ थे। उनकी कार्यशैली और बोलचाल इसीलिए ही विशिष्ट थी। सबसे बडी बात तो उनमें यह थी कि वे निडर थे। कैसा भी ताकतवर आदमी हो उसके खिलाफ उनके पास खबर है तो वो छपेगी जरूर और डंके की चोट पर छपती थी। नेता बनने के बाद भी उनमें से पत्रकारिता का स्वभाव नहीं गया था। अपने अभावों को छिपाने की आदत भी उनमें नहीं थी ‘जो है, सो है’ और सार्वजनिक भी है। पत्रकारिता के दौरान उन्होंने कई बेरोजगारों को नौकरी दिलवाई, कइयों के घरों के चूल्हे जलवाए। पत्रकारिता के समय ऐसा भी सुयोग था कि ग्वालियर-चंबल संभाग के सभी कलेक्टर, एसपी, आईजी, डीआईजी से जो भी कह दें वो काम होता जरूर था। उन्होंने ईमानदारी से पत्रकारिता की तो तत्कालीन अधिकारियों ने उनकी खूब सुनी और उनके जनहित के कामों को प्राथमिकता से किया। उनमें सीधी और टेडी उंगली से घी निकालने का हुनर भी गजब का था।
वे सबसे पहिले भाऊ साहब पोतनीस जी के संपर्क में आए, फिर मुखर्जी भवन से जुडे, इसके बाद स्वदेश से जुडे और फिर पार्टी में रमे। पोतनीस साहब उनके स्थानीय अभिभावक रहे। संघ कार्यालय में मान. तराणेकर जी, मान. सुरेश जी सोनी, मान. अरुण जी के संपर्क में रहते हुए उनमें संघ के प्रति लगाव और झुकाव बढता गया। मान. कुशाभाऊ ठाकरे जी ने प्रभात जी की राजनीतिक कला-कौशल को पहचाना और उन्हें भोपाल स्थित प्रदेश भाजपा कार्यालय में स्थापित किया।
वे जिस काम को भी हाथ में लेते उसकी पूर्णता के लिए बडी जीवटता से जुटते, लाभ-हानि की चिंता किए बिना। उनका किसी के लिए सिफारिश करने का तरीका और अंदाज सबसे अलग था। जिस अधिकारी या नेता से काम होना होता उससे वे इस लहजे में बात करते थे- ‘ये काम है, आप ये काम करने की स्थिति में है, आपके हाथ में है और मैं कह सकने की स्थिति में हूं, किसी का भला करने में कोई दिक्कत हो तो मुझे बताइये, कल आप भी इस पद पर नहीं रहेंगे। अत: सतकाम कर ही डालिये, जब आप इस हैसियत में नहीं रहेंगे तो काम करने के लिए आपसे कहेगा भी कौन?’ वे अधिकारी के अधिकार-भाव का जागृत करते थे, चेतना को प्रवाहित करते थे। जिस अधिकारी ने काम कर दिया तो फिर उससे संबंधों का निर्वाह जीवन भर करते थे। लोगों की मदद करने के उनके असंख्य उदाहरण और किस्से हैं।
ग्वालियर एसपी, डीआईजी और फिर डीजीपी बने स्व. अयोध्यानाथ जी पाठक से पुलिस विभाग के कई अधिकारियों/ कर्मियों के तबादलों के साथ- साथ पुलिस से पीडित व्यक्तियों को न्याय दिलाने में स्व. प्रभात जी सदैव याद किए जाते रहेंगे। स्व. अयोध्यानाथ जी भी बिहार के होकर उनके सजातीय मैथिल ब्राह्मण थे, दोनों आपस में मैथिल भाषा में ही बात करते थे। स्व. अयोध्यानाथ जी का प्रभात जी से आंतरिक लगाव था, सुदूर बिहार से ग्वालियर आकर जमना और नाम कमाने के कारण प्रभात जी उनके बहुत प्रिय रहे। स्वदेश समाचार-पत्र के माध्यम से बने संबंधों का प्रभात जी ने कभी कोई निजी या पारिवारिक लाभ नहीं लिया। उनकी और उनके परिवार की चिंता करने वाले भी पार्टी, संघ और उनके कई घनिष्ठ यार-दोस्त थे। वे चाहे जितने अभावों में हों लेकिन उन्होंने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया, उनकी चिंता का चिंतन और निराकरण करने वाले दूसरे ही थे।
प्रभात जी का निष्पक्ष और तार्किक विश्लेषण करते समय ये बात भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि उन्हें जिनसे भी जो कुछ लिया-दिया हो उन लोगों को भी उन्होंने सबकुछ भरपूर दिया। वे किसी के कर्जदार होकर नहीं गए, वे मैत्रीयता और संबंध निर्वहन का कर्ज सब लोगों पर चढाकर गए।
विगत् 25 जुलाई, 2024 के दिन हम सबके प्रिय प्रभात जी हम सबको छोड कर अनंत यात्रा पर चले गए। आज स्व. प्रभात झा जी की प्रथम पुण्य तिथि पर उन्हें सादर विनम्र श्रद्धांजली।
(लेखक- स्वतंत्र पत्रकार है।)