जिनके अन्दर निराशा आ गई, वह बूढ़ा होता है : देवी संध्या जी

खेरीधाम हमीपुर में चल रही है भव्य श्रीराम कथा

खेरीधाम/हमीरपुर (हिप्र), 07 अप्रैल। देश की सुप्रसिद्ध भागवताचार्य जिनके कंठ में सरस्वती का वास है, बाग देवी की असीमित कृपा कोकिल वाणी देवी संध्या जी देवभूमि हिमाचल प्रदेश की धरा पर श्रीराम कथा की अमृत वर्षा संत निवास खेरीधाम हमीरपुर में कर रही हैं।
श्रीराम कथा के चौथे दिन शुक्रवार को देवी संध्या जी ने कहा कि कथा कल्याण में कलयुग में सबसे बड़ा साधन है। भगवान का धरती पर आना भक्तों को सुख देने का है। संसार के सरोवर में प्रभु भक्तों के प्रेम देने के लिए आते हैं, भगवान अधर्मियों को कष्ट देने के लिए धरती पर आए। वृन्दा का श्राप लगा था, प्रभु आए। जय-विजय के कारण प्रभु धरती पर आए। भगवान का दरबार संत और छोटे बच्चे के लिए हमेशा खुला है। भगवान के दरवार पर बड़े बनकर जाते हैं, उनका प्रवेश नहीं है। हनुमान, नंदी को श्राप लगा था, श्राप भी कभी-कभी वरदान बन जाता है। जय-विजय रावण-कुंभकरण बने श्राप के कारण। भगवान संतों की कृपा से धरती पर आए। संत का वचन भगवान के लिए सर्वोपरि है। भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा के कारण भगवान ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी, क्योंकि भगवान ने कुरूक्षेत्र में हथियार न उठाने की प्रतिज्ञा की थी, किंतु उन्होंने भक्त के प्रेम में अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी।

कौन कहता है, भगवान आते नहीं। कौन कहता है कि भगवान नाचते नहीं हैं।।
सच्चे दिल से उन्हें हम बुलाते नहीं। कौन कहता है, भगवान आते नहीं।।
कौन कहता है लज्जा बचाते नहीं। द्रोपदी सी विनय तुम सुनाते नहीं।।
कौन कहता है भगवान आते नहीं। सच्चे दिल से उन्हें हम बुलाते नहीं।।
गोपियों की तरह हम नचाते नहीं। शबरी की तरह हम बुलाते नहीं।।

देवी संध्या जी ने कहा कि भक्त कहे तो भगवान इस संसार में आते हैं। प्रतापभानु महान सम्राट था। जो करता था उसे भगवान को अर्पण करता था। प्रतापभानु वन में आखेट के लिए गया, उसे सूकर (सुअर) दिखाई दिया। सूकर बाण की चपेट में तो नहीं आया, किंतु राजा अपना मार्ग भूल गया। प्रतापभानु राजा ने इच्छा प्रकट कर कहा, बूढ़ा न हो, मरू न, एक छत्र धरती पर राज्य करूं। यह कपटी मुनि ने प्रतापभानु राजा से कहा। जीवन का सत्य सत्संग ही है। हनुमान जी कभी बूढ़े नहीं होते हैं, केवल दृष्टि चाहिए। सिर्फ हनुमान जी का चरित्र पढ़ लेना। हुनमान जी कभी न मरते। जो प्रभु के काम लगा रहता है, वह कभी नहीं मरते। शरीर को अच्छे कामों से जोड़े रहोगे तो कभी बूढ़े नहीं होगे और अमर हो जाओगे।
उन्होंने कहा कि जिनके अन्दर निराशा आ गई, वह बूढ़ा होता है। रावण हमेशा बूढ़ों की हंसी उड़ाता था, जटायु की रावण ने हंसी उड़ाई। रावण ने ब्रह्मा जी की भी हंसी उड़ाई, बुजुर्गों का सदा सम्मान होना चाहिए। शरीर भले बूढ़ा हो जाए, श्रेष्ठ काम करने में कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। सीता माता ने हनुमान जी को अजर-अमर का वरदान दिया था कि राम के नाम को आगे बढ़ाते रहोगे, तो कभी बूढ़े नहीं होगे। प्रतापभानु को कपटी मुनि का विश्वास हो गया, उससे कहा संतों को बस में करना पड़ेगा। राजा प्रतापभानु ने संतों को मांस-मदिरा से भोजन बनवाया, तब संतों को आकाशवाणी हुई, यह भोजन योग्य नहीं है, साधु-संत खड़े हो गए। प्रतापभानु को राक्षस होने का साधु-संतों ने श्राप दे दिया, कि कुल सहित राक्षस हो जाओ। क्रोध का परिणाम साधु-संतों तक भी आया, इसलिए कहते हैं कि क्रोध नहीं करना चाहिए। ज्यादा क्रोध पर विचार जाग नहीं पाते हैं। प्रतापभानु कुल सहित असुर बना, इसने ब्राह्मणों से बदला लेने का संकल्प लिया।
असुर क मतलब क्या है, जिसके जीवन में किसी का भले करने काम नहीं है, वही राक्षस कहे जाते हैं। जो बड़े की मानते हैं, उनके जीवन में सदा प्रसन्नता रहती है, रावण भी किसी की नहीं मानता था, उसकी जो प्रसन्नता करता था उसी की रावण मानता था, बाद में प्रतापभानु रावण बना। उसका भाई विभीषण बना।

दुनिया से जो हारा वह आया तेरे द्वार।
यहां से अब जो हारा अब कहां जांऊ सरकार।।
सबकुछ बचा के लाज बची है, प्रभु जी तुमसे आस बची है।।

जहां गुरू, स्त्री, ब्राह्मण, देवों पर प्रहार होता है वहां भगवान मदद को आते हैं। गौ माता की सेवा रघुवंश में राम मिले। राजा दशरथ ने अपना सुख-दुख गुरूजन को जाकर सुनाया। अपने गुरूजन दुख के साथ अपने सुख की भी चर्चा करो। गुरूजन ने राजा दशरथ को चार पुत्र का आशीर्वाद दिया। दशरथ ने प्रसाद को बांटा। आधा भाग माता कैशल्या को मिला, एक भाग कैकयी को दिया, कहा यह प्रसाद सुमित्रा को दे दो। तीनों पत्नियों ने यह प्रसाद ग्रहण किया। प्रसाद दिया तो तीनों माता गर्भवती हुईं। राजा दशरथ के चार पुत्र हुए। जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया।