हे राम, हे राम, हे राम

@ राकेश अचल


आजादी का अमृतकाल हो न हो, हम अब तक आजादी का अर्थ नहीं समझ पाए। रामनवमी पर हावड़ा में हुई हिंसा और इंदौर में हुए हादसे हमारे लिए अब भी यक्षप्रश्न बने हुए हैं। हम भगवान राम का जन्मदिन हो या कुछ और आपसी सद्भाव से मना ही नहीं सकते। सावधानियां बरतना हमें आता ही नहीं है। हम लकीर पीटने वाले लोग जो है।
सबसे पहले बात करें रामनवमी पर हावड़ा में हुई हिंसा की। हावड़ा में रामनवमी के जुलूस पर पथराव के बाद आगजनी हुई जो दुर्भाग्यपूर्ण है और सीधे तौर पर इसके लिए राज्य सरकार दोषी है। बंगाल में सुश्री ममता बनर्जी 2011 से मुख्यमंत्री हैं, वे हावड़ा में रामनवमी पर हुयी हिंसा की जिम्मेदारी से बच नहीं सकतीं, क्योंकि तीसरी बार के मुख्यमंत्री को पता होता है कि कौन सा इलाका साम्प्रदायिक हिंसा के लिए बदनाम है और वहां किस हिकमत अमली की जरूरत है ?
हावड़ा के शिबपुर में विश्व हिंदू परिषद और बंजरग दल रामनवमी का जुलूस निकल रहा था। उसी वक्त वहां हिंसा शुरू होने की बात कही जा रही है। हिंसा का कारण फिलहाल पता नहीं चल पा रहा है। रामनवमी के मौके पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहा था कि सभी लोग रैलियां कीजिए मगर, रमजान का महीना चल रहा है, ऐसे में मुस्लिम इलाकों से गुजरने से परहेज कीजिए। उन्होंने कहा कि बीजेपी के लोगों को बोलते हुए सुना है कि हाथियार लेकर निकलेंगे। इस पर कहना चाहती हूं कि ये मत भूलें कि कोर्ट है, जो छोड़ेगा नहीं।
ममता के राज में दंगा हो ये निंदनीय है, अशोभनीय है। भाजपा को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, मुमकिन है कि भाजपा इसके लिए जिम्मेदार हो भी लेकिन क्या राज्य की सत्ता में इतनी कूबत नहीं की वो भाजपा के खेल को नाकाम कर सके ? भाजपा बंगाल की सत्ता हासिल करने में नाकाम रही है, इसलिए मुमकिन है कि वो राज्य सरकार को अस्थिर करने के लिए दंगा करने के पुराने हथकंडे अपना रही हो, किन्तु तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी ममता बनर्जी की सरकार को चाहिए था की वो इस साजिश को नाकाम करती।
इस हिंसा से राज्य के लोग और खुद भगवान राम दुखी होंगे, लेकिन राजनेता सुखी हैं। उनके सुख के कारण सब जानते हैं। राजनीति में हिंसा और आगजनी से सुखी होने वाले लोगों को पहचाने जाने की जरूरत है। ऐसे लोग अदालतों की जद में कभी नहीं आते। विवादित ढांचे ढहने के बाद भी किसी को जेल नहीं हुई। सब आजाद घूम रहे हैं। अगर अदालतों की चलती तो पता नहीं कितने लोग लोकसभा का चुना लड़ने के अयोग्य ठहराए जा चुके होते। माह-ए-रमजान में भी रामनवमी पर सौहार्द हर हालत में बना रहना चाहिए था। राज्य के मुसलमानों की भी जिम्मेदारी थी कि वे सियासत का मोहरा न बनते। अब 75 साल हो चुके हैं हमें आजाद हुए। अब इस तरह की घटनाएं हमें पूरी दुनिया के सामने शर्मसार करती हैं।
बंगाल से मध्यप्रदेश चलते है। मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में रामनवमी पर हुए हादसे में एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत एक बावड़ी में गिरने से हो गई। श्री बेलेशवर महादेव मंदिर की छत गीरने से ये दुर्भाग्यपूर्ण हादसा हुआ। मध्य प्रदेश इस तरह के हादसों के लिए अभिशप्त है। दतिया जिले के रतनगढ़ से लेकर बलेश्वर मंदिर तक के हादसे ये प्रमाणित करते हैं कि मध्य प्रदेश की सरकार ने हादसों से कोई सबक नहीं लिया। जिलों का प्रशासन अब तक धर्मस्थलों पर भीड़ के नियंत्रण की तकनीक नहीं सीख पाया। इस हादसे के लिए भी स्थानीय पुलिस और प्रशासन जिम्मेदार है। हादसे के बाद मृतकों के आश्रितों को मुआवजा देने से दोष कम नहीं हो जाता। जरूरत इस बात की है कि सबसे पहले इस हादसे के लिए जिम्मेदार प्रशासन को दण्डित किया जाए। आज तक प्रदेश में किसी हादसे के लिए कोई प्रशासनिक अफसर को सजा नहीं सुनाई गई।
मध्य प्रदेश की सरकार पूजा-पाठी सरकार है। प्रदेश के धर्म स्थलों पर जनता की गाढ़ी कमाई का करोड़ों रुपया राज्य सरकार खर्च करती है। इसके पीछे राजनीति और वोट बैंक ही महत्वपूर्ण होता है। सरकार ने कभी किसी दूसरे धर्म के पूजिये फूटी कौड़ी खर्च नहीं की। लेकिन आज मुद्दा हादसों का है। राज्य सरकार को चाहिए कि वो इस हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ पूरी सख्ती, ईमानदारी और पारदर्शिता से कार्रवाई करे। साथ ही भीड़भाड़ वाले पूजा घरों को चिन्हित कर वहां के प्रबंधन का नया कौशल विकसित कर भीड़ के प्रबंधन का खर्च सरकारी खजाने से नहीं पूजा स्थलों से होने वाली आमदनी के जरिये किया जाए। महाकाल मंदिर जैसे पूजा स्थलों की अपनी आय इतनी है कि वहां के विकास के लिए किसी सरकारी सहायता की जरूरत नहीं है। बैलेश्वर मंदिर भी अपवाद नहीं है। इन हादसों और हिंसा के लिए रामजी या कोई दूसरा जिम्मेदार नहीं है। किसी ने अपने भक्तों से नहीं कहा की वे हिंसा करें या कुप्रबंध की वजह बने।

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