– अशोक सोनी ‘निडर’
(1)
नारी तेरे कितने रूप
औरत है पहचान देश की भारत मां की शान है,
घर घर की मर्यादा है ये अखिल विश्व की जान है।
कभी बहन कभी बेटी बनकर रोशन कुल का नाम करे,
आए बनकर बहू लक्ष्मी मर्यादा का सम्मान करे।
मां बनकर परिवार संभाले फिर भी ना अभिमान है,
औरत है पहचान देश की भारत मां की शान है।
औरत का सम्मान जहां पर स्वर्ग वो घर बन जाता है,
दुत्कारी जाती जिस घर में कभी न वो सुख पाता है।
बलिदानों की देवी है ये ये अमृत की खान है,
औरत है पहचान देश की भारत मां की शान है।
मां का दूध बहन की राखी बेटी के स्नेह को,
पत्नि को जो वचन दिया है मत भूलो उस नेह को।
नारी तो आखिर नारी है उसका हर रूप महान है,
औरत है पहचान देश की भारत मां की शान है।
(2)
तुम उस धरती की नारी हो
सदियों से लाचार रही तुम, आज भी तुम बेचारी हो।
जहां सीता को भी सुख मिला नहीं, तुम उस धरती की नारी हो।।
घूम रहे आफताब यहां पर, धर धारण राघव का वेश।
मिला यहां पर फ्रिज श्रद्धा को, और मिला किसी को सूटकेस।।
पग पग देती अग्नि परीक्षा, तुम ऐसी जनक दुलारी हो।
सीता को भी सुख मिला नहीं तुम उस धरती की नारी हो।।
कहने को तो तुम देवी हो,पर खुला नहीं सबरी माला।
मीरा तो थी प्रेम दिवानी, उसे मिला विष का प्याला।।
चीर हरण पग पग होगा,बस कहने को परी दुलारी हो।
जहां सीता को भी सुख मिला नहीं तुम उस धरती की नारी हो।।
जब रचा स्वयंबर द्रुपद राज ने, मत्स्य भेद अर्जुन ने किया।
जब चली द्रोपदी संग धनंजय, मन ही मन में दर्प किया।।
जब पहुंची ससुराल तो जाना, तुम पांच पति की नारी हो।
जहां सीता को भी सुख मिला नहीं तुम उस धरती की नारी हो।।
रूप देख यौवन का तेरे, चाहें सब तुमसे वरमाला।
दिखता जितना बाहर सुंदर, जग है अंदर उतना काला।।
मत बहको बाबुल की परियो, तुम पिता की राज दुलारी हो।
सीता को भी सुख मिला नहीं, तुम उस धरती की नारी हो।।
संख्या में तुम भले हो आधी, पर कुल की हो तुम मर्यादा।
लाज बचे कैसे कुल की जब, कर भीष्म द्रोण का हो बांधा।।
नर यहां सजाता ध्रुत सभा, लेकिन तुम हारी जाती हो।
जहां सीता को भी सुख मिला नहीं,तुम उस धरती की नारी हो।