आखिर आ ही गया सडकों पर देश

– राकेश अचल


आप खुशी मनाएं या गम, लेकिन हकीकत ये है कि आज पूरा देश सडकों पर आ गया है। किसी के हाथ में भीख का कटोरा है तो किसी के हाथ में तलवारें, कोई निहत्था है तो कोई मानव श्रृंखला बनाने पर मजबूर। ये सब तब हो रहा है जबकि हमारी लोकप्रिय सरकार सबको साथ लेकर सबका विकास कार रही है। यदि सचमुच सरकार सबको साथ लेकर सबका विकास कर रही है तो सबको अपने घरों में रहना चाहिए, न कि सडकों पर। लेकिन लोग सडकों पर हैं, क्योंकि संसद सबकी सुन नहीं रही। सरकार ने कानों में तेल डाल रखा है।
सडकों पर सबसे पहले आए देश के अल्पसंख्यक मुसलमान। उन्हें सडकों पर लेकर आई हमारी लोकप्रिय सरकार। सरकार ने मुसलमानों की भलाई के लिए नया वक्फ बोर्ड कानून बनाया, लेकिन ये कानून मुसलमानों को रास नहीं आया। वे दक्षिण से लेकर उत्तर तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक सडकों पर आ गए। आते जा रहे हैं। बंगाल में आए, तेलंगाना में आए, आंध्र में आए, कर्नाटक में आए। ये कहना कठिन है कि कहां नहीं आए। लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड रहा। मुसलमान सडकों पर नमाज नहीं पढ रहे, आंदोलन कर रहे हैं। अपनी इबादतगाहें, खानगाहें मसजिद और कब्रें बचाने के लिए। मुसलमान सडकों पर भी हैं और देश की सबसे बडी अदालत में भी। उन्हें उम्मीद है कि कहीं तो उनके साथ इंसाफ होगा! कोई तो उन्हें सुनेगा!!
मुसलमानों से पहले देश के राजपूत सडकों पर उतरे। उन्हें एक दलित सांसद के हकीकत बयां करने पर आपत्ति है। बयान राणा सांगा के बारे में था। ये राजपूत अपनी करणी सेना के साथ सडकों पर आए। करणी सेना के सैनिकों ने प्रदर्शन किया, तलवारें लहराईं। दलित सांसद रामजीलाल सुमन के घर हमला किया। लेकिन सुमन आपने बयान से पीछे नहीं हटे। उन्होंने माफी नहीं मांगी। सुमन के समर्थन में समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव आगरा पहुंचे तो उन्हें भी गोली मारने की धमकी दी गई, लेकिन कोई गोली मारने का साहस जुटा नहीं पाया। तलवारें हवा में लहराने में और गोली चलने में फर्क है। करणी सेना के सैनिक कोई राणा सांगा थोडे ही हैं। अखिलेश यादव ने कहा कि करणी सेना कोई सेना-वेना नहीं है, ये तो योगी सेना है।
पिछले दिनों विश्व णमोकार मंत्र दिवस पर अल्पसंख्यक जैन समाज के साथ णमोकार मंत्र का जाप करने वाले प्रधानमंत्री के संरक्षण के बाद भी मुंबई में एक जैन मन्दिर ध्वस्त किए जाने के बाद मुंबई का जैन समाज सडकों पर है। मुंबई के अलावा भी अनेक शहरों में जैन समाज ने सडकों पर आकर प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए जैन समुदाय के कुछ लोगों की आंखों में आंसू थे, वो इस बात से दुखी थे कि तीन दशक पुराने मन्दिर को तोडा गया है। जैन समाज अहिंसा को परम धर्म मानता है, लेकिन ये नहीं जानता कि ध्वंश हमारी सरकार का सबसे प्रिय खेल है। ये वही लोकप्रिय सिंगल और डबल इंजिन की सरकार है, जिसने इस देश में बुलडोजर संस्कृति कहें या बुलडोजर संहिता का व्यापक इस्तेमाल किया। सरकार के बुलडोजर केवल अल्पसंख्यकों के घर और उनके इबादतगाह पहचानते हैं। फिर अल्पसंख्यक चाहे मुसलमान हों या जैन। मणिपुर में तो डबल इंजिन की सरकार के रहते अल्पसंख्यक ईसाईयों की 250 से ज्यादा इबादतगाहें जलाकर राख कर दी गईं, लेकिन सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी।
इस समय लोगों को जब सरल, सुलभ न्याय नहीं मिल रहा तो उन्हें मजबूरन सडकों पर आना पड रहा है। सुना है कि महाराष्ट्र में हिन्दी लागू करने के सरकारी फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे सडकों पर आने की तैयारियां कर रहे हैं। उनकी सेना भी करणी सेना जैसी ही उग्र सेना है। आखिर क्यों न हो उग्र? निकली तो बाला साहब ठाकरे की असली वाली शिव सेना के गर्भ से ही है। बाला साहब ठाकरे की शिव सेना से पहले ‘मनसे’ बनी फिर भाजपा की कोशिशों से इसी में से एक सेना एकनाथ शिंदे की और दूसरी उद्धव ठाकरे की बनी। यानि आप कह सकते हैं कि महाराष्ट्र सेना प्रधान देश है।
सडकों पर खडा देश देखकर हमारे समाजवादी पुरखे डॉ. लोहिया की आत्मा बहुत खुश होगी। जो देश सडकों पर आने का माद्दा नहीं रखता उस देश में तानाशाही अपना प्रभुत्व कायम कर लेती है। आप देख रहे होंगे कि भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका में भी लोग अपने राष्ट्रपति के खिलाफ सडकों पर हैं। आपको पता ही है कि देश की 80 करोड से ज्यादा जनता पहले से ही सडकों पर है। उसके पास न घर है न घाट। हमारी लोकप्रिय सरकार इस आबादी को पांच किलो राशन मुफ्त में न दे तो ये आबादी सडकों से उठकर या तो कब्रस्तान में जा पहुंचे या श्मशान में। मजे की बात तो ये है कि अब हमारे देश की न्यायपालिका को भी सडकों पर लाने के इंतजाम किए जा रहे हैं। हमारे देश की लोकप्रिय सरकार के एक सांसद देश के मुख्य न्यायाधीश को लेकर उग्र हैं। लोकसभा में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट को ही कानून बनाना है तो संसद भवन बंद कर देना चाहिए। उन्होंने सीजेआई खन्ना पर भी निशाना साधा था। संविधान के अनुच्छेद 368 का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कानून बनाना संसद का काम है और सुप्रीम कोर्ट कानूनों की व्याख्या करने के लिए है। कोर्ट सरकार को आदेश दे सकता है, लेकिन संसद को नहीं। भाजपा के काम चलाऊ अध्यक्ष जेपी नड्ढा ने दुबे जी के बयान से पार्टी को अलग कर लिया। हालांकि वे जो चाहते थे वो काम तो दुबे जी ने कर ही दिया। अब भी सीजेआई खन्ना न समझें तो वे अनाडी हैं।
लब्बो-लुआब ये है कि देश की लोकप्रिय सरकार के तीसरे कार्यकाल की सबसे बडी उपलब्धि ये है कि उसने देश की जनता को सडकों पर आना सिखा दिया। सरकार ने ही जनता के प्रतिकार की ताकत को छीन लिया था, लेकिन अब खुशी की बात ये है कि अवाम अपनी ताकत का अहसास करने लगी है। सरकार सबको साथ लेकर सबका विकास कर रही है या नहीं, ये आप जानें। लेकिन हमारी कामना भी है और प्रार्थना भी कि सरकार भविष्य में ऐसा कुछ न करे कि जनता को मजबूरन सडकों पर आकर कहना पडे कि सिंघासन खाली करो, जनता आती है। जनता का सडकों पर आना जहां लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक है, वहीं दूसरी तरफ सरकार की नाकामी का भी।