शक्ति की आराधना करके दसवें दिन भगवान ने की थी रावण विजय पर विजय प्राप्त : शंकराचार्य जी

अमन आश्रम परा में चल रही श्रीमद् भागवत कथा का हुआ समापन

भिण्ड, 15 अक्टूबर। दशहरे का पर्व शक्ति और सत्य का समन्वय करने वाला है। जितनी शक्ति हमें मिली है वह कम है इसलिए प्रति वर्ष हम शक्ति की उपासना करते हैं। राम भगवान भी नौ दिन शक्ति की उपासना करके शक्तिशाली बने थे तब दसवें दिन भगवान राम ने रावण को मारा था। शक्ति की आराधना से आत्म विश्वास पैदा हो जाता है जिससे विजय प्राप्त होती है। और हम जीवन में आसुरी शक्तियों, अधर्म पर विजय प्राप्त करें। हमारी संस्कृति शौर्य की उपासक है। सभी वेद पुराणों में शौर्य की महत्ता का वर्णन किया गया है। हमारा हाथ और विवेक खुद की रक्षा करता है साथ ही दूसरों की भी। यह बात श्री काशीधर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य नारायणानंद तीर्थ जी महाराज ने ग्राम स्थित अमन आश्रम में चल रही पश्रीमद् भागवत कथा के समापन अवसर पर दशहरा के महत्व का वर्णन करते हुए कही।
शंकराचार्य जी ने कहा कि किसी भी कार्य के लिए जिस समय निकलते हो उस समय का भी बहुत महत्व होता है। भगवान ने रावण को मारने से पहले नौ दिन शक्ति की उपासना की और फिर दसवें दिन रावण को मारने के लिए प्रस्थान किया। इसी प्रकार शिवाजी ने भी आज ही के दिन अंग्रेजों और मुगलों से लडऩे के लिए प्रस्थान किया था। सभी राजा महाराजा उत्साह में रहते हैं कि नौ दिन शक्ति की उपासना की है तो दशहरा के दिन विजय प्रस्थान करने पर विजय अवश्य प्राप्त होती है। दशहरा पर शस्त्र पूजन करते हैं और यह प्रार्थना की जाती है कि हम इसका दुरूपयोग नहीं करेंगे। शस्त्र केवल आत्मरक्षार्थ होता है ना कि किसी प्रकार के दुरुपयोग के लिए।
महाराजश्री ने कहा कि जहां श्रीकृष्ण और अर्जुन जैसे गुरु-शिष्य हों, वहां तो विजय सुनिश्चित है, विजय का शंखनाद अवश्य होगा। जहां मनुष्य अविरल रूप से प्रयत्न कर रहा है दशहरे का पर्व शक्ति का समन्वय करने का पर्व है। नौ दिनों तक श्रीराम ने भगवती की आराधना करके जो शक्तियां अर्जित किया उसी के प्रभाव से रावण जैसे आसुरी शक्ति का अंत कर पाए। दशहरा पर्व विजय के उत्थान का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरों की भूमि रही है विजयादशमी का पर्व पूर्णता का द्योतक है। यह पर्व हमारे मनश्चित्तवृत्ति में निहित कुत्सित भावों को समाप्त कर सद्भावों का संचार करें।