भारत-रत्न का कर्पूरी होना सुनियोजित

– राकेश अचल


भाजपा सरकार के इस फैसले का मैं खुले दिल से स्वागत करता हूं कि इस वर्ष बिहार के अद्वितीय समाजिक कार्यकर्ता और समाजवादी नेता स्व. कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ से नवाजा जाएगा। लेकिन अफसोस इस बात का है कि ये फैसला लेने में सरकार ने न सिर्फ दस वर्ष लगा दिए बल्कि इस पुरस्कार को भी ‘राम मन्दिर’ मुद्दे की तरह एक चुनावी तुरुप की तरह इस्तेमाल किया।
‘भरत-रत्न’ मिलता नहीं है, इसे जीता जाता है। बहुत कम लोग हैं जो इसे जीते-जी हासिल कर सके, बहुत से लोगों को ये मरणोपरांत दिया गया, इसमें पाने वालों का कोई दोष नहीं है, सारा दोष देने वालों का है। चूंकि ‘भारत-रत्न’ के लिए चयन का कोई स्थापित मापदण्ड नहीं है, इसलिए इसमें अक्सर देर हो जाती है। मौजूदा सरकार ने भी पिछले पांच साल में किसी को ‘भारत-रत्न’ सम्मान नहीं दिया। अब दे रही है जब लोकसभा चुनाव सिर पर है और विपक्ष देश में जातीय जनगणना का मुद्दा लेकर आगे बढा है। मजे की बात ये है कि जातीय जनगणना का मुद्दा उठाने वाले बिहार के ही दलित नेता कर्पूरी ठाकुर का नाम इसके लिए चुना गया, क्योंकि 24 जनवरी को उनकी जन्म शताब्दी है। ये सम्मान अब स्व. कर्पूरी ठाकुर के तो किसी काम का नहीं है किन्तु भाजपा के लिए चुनाव में बहुत काम आएगा।
बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर सचमुच दलित और गरीब परिवार से थे। जात से नाई थे, उनके पिता गांव में हजामत बनाते थे और खुद पिता की आज्ञा पर मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए एक बार कर्पूरी ठाकुर ने गांव में जनता को अपनी सेवाएं एक नाई के रूप में दी थीं। देश को हरिजन के स्थान पर दलित शब्द तो पहले मिल गया था लेकिन दलितों से भी ज्यादा पद-दलितों के लिए ‘महादलित’ शब्द कर्पूरी ठाकुर ही लेकर आए थे। पिछली सदी के नौवें दशक में मुझे एक-दो मर्तबा कर्पूरी ठाकुर से मिलने का सौभाग्य मिला था। हमारे अंचल के समाजवादी नेता रमाशंकर सिंह के चुनाव प्रचार में वे आए थे। कर्पूरी ठाकुर एक खांटी समाजवादी, लोहियावादी नेता थे। उन्होंने सत्ता के शीर्ष पर आने के लिए अपने गरीब होने का रोना कभी नहीं रोया, किन्तु जेब में रूखी रोटी रखकर उसे खाकर दिन-रात दलितों और महादलितों के उत्थान के लिए काम किया और जब सत्ता में नहीं थे तब उनके लिए लडाइयां लडीं।
कर्पूरी का हिन्दी में अर्थ सुंगधित सफेद पदार्थ है यानि कपूर। कर्पूरी ठाकुर ठीक ऐसे ही नेता थे। वे बिहार के जननायक थे और बिना किसी राजनितिक पृष्ठभूमि के बिना किसी विरासत के वे जननायक बने। संयोग देखिये कि भाजपा की सरकार ने उन्हें उनके देहावसान के 36 साल बाद ‘भारत रत्न’ देने के लिए खोज निकाला। भाजपा इस मामले में हमेशा दूरदृष्टि से काम लेती है। भाजपा को पता था कि कर्पूरी ठाकुर उनके काम कब आएंगे? खैर भाजपा भले ही लोकसभा चुनाव में बिहार जीतने के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश करे, किन्तु न सिर्फ मैं बल्कि देश के ज्यादातर लोग सरकार के इस फैंसले से अभिभूत हैं और इसका खुले दिल से स्वागत करते हैं। देश को आज कर्पूरी ठाकुर जैसे निर्दम्भ, निर्दोष और सरल हृदय नेतृत्व की जरूरत है।
भाजपा के राज में बल्कि कहिये कि मोदी राज में अब तक क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर, स्व. मदन मोहन मालवीय, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, भूपेन हजारिका और नानाजी देशमुख को ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया। भारत रत्न सम्मान पाने वाले अधिकांश इसके पात्र हैं, लेकिन कुछ को लेकर सवाल उठाए गए, उठाए जाते रहेंगे। कुछ को उनके समर्थकों के मांगने पर भी ‘भारत रत्न’ नहीं मिला। कुछ को बिना मांगे मिल गया। कांग्रेस के तो लगभग हर प्रधानमंत्री को ये सम्मान मिला या उन्होंने खुद ले लिए भगवान जाने।
आजादी के बाद सबसे पहले 1954 में ‘भारत रत्न’ सम्मान देने की व्यवस्था की गई। पहले भारत रत्न बने देश के अंतिम गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी, फिर राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन, चंद्रशेखर वेंकटरमन, भगवान दास, एम. विश्वेसरैया, जवाहरलाल नेहरू, गोविन्द बल्लभ पंत, धोडो केशव बर्बे, विधान चांद रे, पुरषोत्तम टंडन, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जाकिर हुसैन, पांडुरंग वामन काणे और लाल बहादुर शास्त्री को ये सम्मान मिला। शास्त्री के बाद श्रीमती इन्दिरा गांधी पहली महिला नेत्री थीं जिन्हें ये सम्मान मिला। श्रीमती गांधी के बाद बीवी गिरी, के कामराज, मदर टेरेसा, बिनोवा भावे, खान अब्दुल गफ्फार खान, एमजी रामचंद्रन, डॉ. भीमराव आंबेडकर, नेल्शन मंडेला, राजीव गांधी, सरदार बल्लभभाई पटेल, मोरारजी देसाई, अबुल कलम आजाद, जेआरडी टाटा, सतयित रे, गुलजारी लाल नंदा को भारत रत्न सम्मान दिया गया।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अरुणा आसिफ अली, एपीजे अब्दुल कलाम आजाद, एसबी सुबलक्ष्मी, चिदंबरम सुब्रमणियम, जयप्रकाश नारायण, अमृत्य सेन, गोपी नाथ बोरदोलोई, संगीतज्ञ पं. रविशंकर, लता मंगेशकर, बिस्मिल्लाह खान, भीमसेन जोशी, सीएनआर राव को भारत रत्न सम्मान दिया गया। कोई आगे, कोई पीछे ये सब चलता रहा। आज भी चल रहा है। सरकार अपनी सुविधा और सूझबूझ से भारत रत्न चुनती है। सरकार की भी विवशता है। भारत भूमि है ही रत्नगर्भा। यहां एक खोजिये दस रत्न मिल जाएंगे। बहरहाल ये सिलसिला जारी है और चलते हुए कर्पूरी ठाकुर तक आ गया है। जैसे हिन्दुओं को राम मन्दिर देकर मुदित किया गया। वैसे ही कर्पूरी ठाकुर को ‘भारत रत्न’ देकर दलितों और महादलितों को खुश किया जाए रहा है। कर्पूरी ठाकुर की आत्मा को इससे कोई अंतर पडने वाला नहीं है। वे जहां भी होंगे सरकार के फैसले पर मुस्करा रहे होंगे। उन्हें इस फैसले के पीछे का गणित भी समझ आ गया होगा। बहरहाल जो हुआ सो अच्छा हुआ। केन्द्र सरकर के इस निर्णय का पूर्ण स्वागत और स्व. कर्पूरी ठाकुर के परिजनों तथा बिहार और देश के दलितों तथा महादलितों को भी बधाई।