रामलला कहिन, बेफिक्र रहिन

– राकेश अचल


अक्सर मैं भी ख्वाब देखता हूं। मेरे ख्वाबों में भी न जाने कौन-कौन आता है, जाता है, बतियाता है। कभी-कभी ख्वाबों में चिर-परिचित लोग मिलते हैं, कभी एकदम अपरिचित, अगर सभी ख्वाब याद रह पाते तो मैं उन्हें लिपिबद्ध कर एक बडा साहित्यकार बन सकता था। मुझे हैरानी है कि अभी तक मुझे ख्वाबों में आकर रामलला ने डिस्टर्ब नहीं किया, जबकि मैं रोज स्पान-ध्यान के बाद उन्हें डिस्टर्ब करता हूं। उनका सुमिरन करता हूं। वे मुझे बचपन से आकर्षित करते हैं, इसलिए मैं हमेशा उनके प्रति सतर्क और चिंतित रहता हूं।
कल दोपहर अचानक मोबाइल पर अनाम नंबर से घण्टी बजी तो मैं चौंका। उत्सुकतावश फोन उठाया तो दूसरी और से आवाज आई- ‘का हो पहचाना की नहीं?’ मैं तनिक अचकचाया और फिर अपना अज्ञान छिपाते हुए कहा- ‘एकदम से याद नहीं आ रहा लेकिन आपकी आवाज सुनी-सुनाई लग रही है’ दूसरी तरफ से खनकती हंसी सुनाई दी, फिर फोनकर्ता ने कहा- ‘अयोध्या से बोल रहा हूं, तुम्हारा रामलला’ मुझे भी हंसी आ गई। लगा कोई अपना मजाक कर रहा है, किन्तु सामने वाले ने मेरी हंसी को गंभीरता से नहीं लिया। कहा- ‘मत हंसो बेटा मैं ही बोल रहा हूं। तुम्हारा लिखा रोज पढता हूं। तुम्हारी चिंताओं से वाकिफ हूं, इसलिए तुम्हें फोन किया कि घबडाओ नहीं, भारतवर्ष में धर्मनिरपेक्षता का बाल-बांका नहीं होने वाला’।
अब मुझे भी गंभीर होना पडा। मैंने कहा- ‘नहीं हुजूर! आज-कल आपकी अयोध्या में जो काण्ड चल रहा है उससे मैं ही नहीं, बल्कि समरसता में भरोसा करने वाले, संविधान का सम्मान करने वाले करोडों लोग चिंतित हैं कि आखिर देश किस दिशा में जा रहा है?’ रामलला बोले- पागल हो तुम और तुम्हारे जैसे लोग! अरे बाबा जिस देश को मेरे परम भक्त महात्मा गांधी ने अंग्रेजों से लडकर आजाद कराया हो, उस देश को मैं इस तरह से बर्बाद होने दूंगा? मैं भी तमाशा देख रहा हूं खडा-खडा। मेरी आंखों पर हालांकि पट्टी बांधी गई है किन्तु मुझे सब कुछ साफ-साफ दिखाई दे रहा है’ उन्होंने मुझे आश्वस्त किया।
तुम्हें पता है कि अयोध्या में दुनिया को जो दिखाया जा रहा है वैसा कुछ है नहीं। अयोध्या में सब कुछ पहले जैसा है। और तो और मेरे मन्दिर क्षेत्र का पार्षद भी गैर भाजपाई है। अयोध्या का ‘फैज’ जैसा पहले था वैसा ही आज भी है, भले ही जिले का नाम अब फैजाबाद नहीं है। यहां आज भी समरसता है। यहां आज भी आचार्य नरेन्द्रदेव के नाम का रेलवे स्टेशन है। नया टेशन तो आप लोगों को टेंशन देने के लिए बनाया गया है। नया हवाई अड्डा भी शायद इसीलिए बनाया गया है, अन्यथा मेरे दर्शन करने वालों में कितने हैं जो हवाई किराया खर्च कर सकते हैं। उनके लिए तो रेलों का जनता क्लास ही ठीक था। रामलला ने एक ही सांस में सब कुछ कह दिया। ‘ये तो ठीक है, लेकिन आप किसी को रोक भी तो नहीं रहे!’ मैंने प्रतिप्रश्न किया। ‘देखते जाओ! सब मन का धन कर रहे हैं, कर लेने दो। जो ये सब कर रहे हैं वे मेरे नाम से सत्ता में आना चाहते हैं, लेकिन मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। मैंने राजीव गांधी को भी अपने नाम का लाभ नहीं लेने दिय। मैंने 1993 में भी मस्जिद गिराने वाले अपने उपद्रवी भक्तों को उत्तर प्रदेश की सत्ता तक नहीं पहुंचाया। मैं गलत होने ही नहीं देता। रामलला ने सफाई दी। मेरी झक्की खुली। मुझे लगा बंदा कह तो सही रहा है। यानि मुझसे बात करने वाला कोई सिरफिरा नहीं बल्कि असली रामलला है।
बातचीत का सिलसिला आगे बढाते हुए मैंने सवाल किया-‘अयोध्या नाथ! ये तो बताइये कि आपको इतनी लकझक देखकर खुशी नहीं होती?’ ‘बिल्कुल नहीं’ एक सपाट सा उत्तर मिला सामने से। अयोध्यानाथ बोले- ‘तुम देख रहे हो मेरी अयोध्या का क्या हाल कर दिया है, पूरी अयोध्या नगरी किले में तब्दील हो गई है। ब्लैककैट कमाण्डो, बख्तरबंद गाडियां, एंटी ड्रोन सिस्टम, एआई से लैस कमाण्ड कंट्रोल सिस्टम के साथ हजारों जवान और अफसर सुरक्षा व्यवस्था में लगाए गए हैं। आखिर मेरे अपने घर में मुझे किससे खतरा है? और जिन्हें खतरा है वे यहां आ ही क्यों रहे हैं, रंग में भंग करने! क्या मेरे ये भक्त नहीं जानते की जिसका मुझमें भरोसा है वो असुरक्षित हो ही नहीं सकता?’
रामलला का सवाल और गुस्सा जायज था, लेकिन मैं अकिंचन क्या जबाब देत। मैंने कहा- ‘मुमकिन है वे आपके लिए चिंतित हों, इसलिए इतना तामझाम किया गया है। आखिर आप यहां के राजा हैं’! मेरी बात सुनकर रामलला बिदक गए। कहने लगे- ‘तुम भी मेरा मजाक उडा रहे हों! मेरी अयोध्या 21-22 जनवरी को आम जनता के लिए बंद रहेगी। 22 जनवरी को बिना निमंत्रण वाले लोगों को भारी परेशानी हो सकती है। सुरक्षा में सीआरपीएफ से लेकर यूपी पुलिस की तैनाती की गई है। भारी वाहनों की आवाजाही पर इस दिन रोक रहेगी। पूरे शहर में 10 हजार सीसीटीवी कैमरे हर हलचल पर नजर रखेंगे। पहली बार यहां चेहरे की पहचान करने वाले एआई कैमरे लगाए गए हैं। ये अफसोसजनक है, क्या मैं अपने भक्तों से ही असुरक्षित हो गया हूं? क्या मैं अपने भक्तों के चेहरे नहीं पहचानता?’ रामलला ने मुझे से प्रतिप्रश्न किया।
मेरे मोबाइल की बैटरी इस गर्मागर्म संवाद को सुनकर गर्म होने लगी थी। मुझे लगा कि कहीं बैटरी हाथ में ही फट न जाए। मैंने कहा- ‘मालिक मैं तो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बना आपका नया मन्दिर देखने अभी आ नहीं सकता। बहुत सर्दी है। मौका मिला तो आम चुनाव के बाद आऊंगा। अभी तो भाजपा वाले ही साढे तीन करोड लोगों को लेकर आपकी आयोध्या आने वाले हैं।’ मेरी बात सुनकर रामलला हंसे। कहने लगे- ‘बडे विनोदी हो तुम, जब मौका मिले तब आ जाना, न आ सको तो मैं खुद तुम्हारे पास प्रकट हो जाऊंगा। मैं व्यापक सर्वत्र समाना’। मेरा दिल खुश हो गया, लेकिन बातचीत का सिलसिला आगे नहीं बढ पाया। मेरे मोबाइल की बैटरी अचानक जबाब दे गई। मैं कभी मोबाइल की बैटरी को कोस रहा था और कभी अपने नसीब को। जय सियाराम।