पेड पर्यावरण के सबसे महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य हिस्सा हैं : कलेक्टर

ग्राम गुरीखा में एक एकड भूमि पर रोपे जाएंगे लगभग नौ हजार पौधे
कलेक्टर ने पौधा रोपकर किया पौधारोपण कार्यक्रम का शुभारंभ

भिण्ड, 29 दिसम्बर। जिले में हरियाली विकास परियोजना के तहत मियावाकी पद्धति से पौधारोपण किया जा रहा है। कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने शुक्रवार को जिले के गोहद विकास खण्ड के आदर्श आंगनबाडी केन्द्र गुरीखा में मियावाकी पद्धति से पौधा रोपा और पौधारोपण कार्यक्रम का शुभारंभ किया। मियावाकी पद्धति से चलाए जा रहे इस पौधारोपण कार्यक्रम में ग्राम गुरीखा के शमशान घाट में एक एकड भूमि पर लगभग नौ हजार पौधे लगाए जाएंगे। कार्यक्रम के दौरान उद्योग विभाग के महाप्रबंधक अमित, मॉण्डलेज के अधिकारी राजेश एवं मयूरेश, एएफपीआरओ संस्था के कार्यकर्ता रवि कुमार, अखिलेश सिन्हा एवं महेश एवं ग्रामवासी उपस्थित रहे।

इस अवसर पर कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने कहा कि पेड-पौधे पर्यावरण के सबसे महत्वपूर्ण व अनिवार्य हिस्सा हैं। धरती पर पेडों और पौधों के अस्तित्व के बिना मनुष्य, वनस्पति एवं अन्य प्राणियों का अस्तित्व संभव नहीं है। पेडों से हमें जीवनदायनी ऑक्सीजन गैस मिलती है। पर्यावरण को दूषित करने वाली हानिकारक गैसों को पेड अवशोषित करते हैं। साथ ही पक्षियों एवं जानवरों के लिए भोजन, आश्रय तथा गर्मियों के दिनों में छाया प्रदान करते हैं।
मियावाकी पद्धति पर प्रकाश डालते हुए कलेक्टर ने कहा कि इस पद्धति से पौधे रोपने पर पेड स्वयं अपना विकास करते हैं और तीन वर्ष के भीतर वे लगभग अपनी पूरी लंबाई प्राप्त कर लेते हैं। मियावाकी पद्धति में उपयोग किए जाने वाले पौधे ज्यादातर आत्मनिर्भर होते हैं और उन्हें खाद एवं जल देने जैसे नियमित रख-रखाव की आवश्यकता नहीं होती है। इस विधि से देशी प्रजाति के पौधे एक-दूसरे के पास लगाए जाते हैं, जो कम जगह घेरने के साथ दूसरे पौधों की वृद्धि में सहायक होते हैं। पौधों के सघन होने से सूर्य की रोशनी को धरती पर आने से भी रोकते हैं जिससे पृथ्वी पर खर-पतवार नहीं उग पाते हैं। तीन साल के बाद इन पौधों की देखभाल की भी जरूरत नहीं पडती है। जबकि सामान्य पद्धति से पौधे लगाने पर पांच साल तक देखभाल की जरूरत पडती है।