– राकेश अचल
चौंकिए मत! आज का शीर्षक सौ फीसदी सही है। केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया आज-कल मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव पर लट्टू हैं। वे इससे पहले के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, स्व. बाबूलाल गौर या कमलनाथ पर इतने फिदा नहीं थे, जितने कि डॉ. यादव पर हैं।
मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव पर सिंधिया के फिदा होने की एक वजह हो तो गिना भी दें, लेकिन डेढ साल में मुख्यमंत्री यादव ने सिंधिया के अहम को जिस ढंग से संतुष्ट किया है वो काबिले गौर है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने सबसे बडी चुनौती दरअसल सिंधिया नहीं, बल्कि केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं। चौहान का दबाब कम करने के लिए ही मोहन यादव का झुकाव सिंधिया की ओर हो गया है।
पिछले डेढ साल में सिंधिया ने मुख्यमंत्री मोहन यादव को जब भी याद किया वे गुना से लेकर ग्वालियर के बीच हाजरी देते नजर आए। मुख्यमंत्री यादव ने सिंधिया को भी खुश रखा और विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर को भी। मुख्यमंत्री डॉ. यादव नरेन्द्र सिंह तोमर के बेटे देवेन्द्र तोमर द्वारा आयोजित भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में भी शामिल हुए। दरअसल डॉ. यादव हिकमत अमली के उस्ताद साबित हो रहे हैं। उन्हें पता है कि सिंधिया पासंग वाले नेता हैं। वे जब शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ मैदान में उतरे तो चौहान को सत्ता से हाथ धोने पडे थे, कमलनाथ के खिलाफ उतरे तो उनकी कुर्सी चली गई थी और जब सिंधिया कमलनाथ तथा शिवराज सिंह चौहान पर मेहरबान हुए तो उन्हें रातोंरात सत्ता में वापिस भी ले आए थे।
सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने भी सूबे में अपना वजूद बनाए रखने के लिए सिंधिया को खुश रखने में कोई कंजूसी नहीं की। मुख्यमंत्री ने सिंधिया की कमजोर नस पकड ली है। सिंधिया को अपनी जै-जै पसंद है और मुख्यमंत्री यादव को जै-जै करने में कोई संकोच नहीं है। वे समझ गए हैं कि सिंधिया की जै-जै करना सस्ता सौदा है। सिंधिया के इशारे मुख्यमंत्री समझने लगे हैं। किस अफसर को सिंधिया पसंद करते हैं और किससे खफा हैं ये मुख्यमंत्री को पता रहता है। ग्वालियर और गुना में इनदिनों सिंधिया ‘मिनी मुख्यमंत्री’ की भूमिका में नजर आने लगे हैं।
पिछले दिनों ग्वालियर में समरसता सम्मेलन में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की शान में विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर की मौजूदगी में कसीदे पढे। सिंधिया ने सम्मेलन में आमंत्रित भीड को भोजन परोसने में भी मुख्यमंत्री का हाथ बंटाया। बेचारे तोमर साहब देखते रहे। दरअसल ग्वालियर भाजपा में सिंधिया समर्थकों की संख्या पहले कम थी, लेकिन अब सिंधिया ने संगठन में भी अपनी जगह बना ली है।
आपको बता दें कि सिंधिया को साधकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सूबे में लोकप्रियता के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से बडी लकीर खींचने लगे हैं। डॉ. यादव अपने आपको आम आदमी के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। इसके लिए वे काम भी कर रहे हैं। मप्र की राजधानी भोपाल के निवासी उस वक्त हैरान रह गए, जब गुरुवार की रात मुख्यमंत्री मोहन यादव अचानक उनके बीच पहुंच गए। मुख्यमंत्री ने बाजार में न केवल आम जनता से मुलाकात की और उनका हालचाल जाना, बल्कि एक ठेले वाले से फल भी खरीदे। उन्होंने फल विक्रेता को डिजिटल पेमेंट भी किया।
उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने अपने समर्थकों को भाजपा संगठन और निगम, मण्डलों में जगह दिलाने की चुनौती है। डॉ. यादव से पहले शिवराज सिंह चौहान ने लंबे अरसे तक निगम, मण्डलों में नियुक्तियां न कर सिंधिया की खूब किरकिरी कराई। डॉ. यादव को पता है कि सिंधिया की पार्टी हाईकमान और आरएसएस में भी गहरी पैठ है, जो प्रदेश में सत्ता संतुलन बनाए रखने के बहुत काम आ सकती है। इसलिए वे सिंधिया की हर छोटी-बडी ख्वाहिश पूरी करने में कोई कंजूसी नहीं कर रहे हैं। सिंधिया के आभा मण्डल का लाभ जितना डॉ. मोहन यादव ने हंसते, मुस्कराते ले लिया है इसका अनुमान खुद सिंधिया को भी नहीं है।
मजे की बात ये है कि इस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री यादव के प्रति जितने विनम्र हैं, शिवराज सिंह चौहन उतने ही उग्र। चौहान तो पिछले दिनों अपने क्षेत्र के आदिवासियों को लेकर मुख्यमंत्री आवास पर भी जा धमके थे। चौहान ने खाद, बीज के मुद्दे पर परोक्ष रूप से यादव सरकार की किरकिरी कराई। अब देखना ये है कि सिंधिया और डॉ. मोहन यादव की ये नई कैमिस्ट्री कितने दिन चलती है। अतीत में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता स्व. माधवराव सिंधिया और तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. मोतीलाल बोरा के बीच भी इसी तरह की कैमिस्ट्री हुआ करती थी।