स्मृति शेष : अदावतों के बजाय दावतों के प्रेमी थे यतीन्द्र चतुर्वेदी

– राकेश अचल


रविवार की सुबह-सवेरे रमाकांत चतुर्वेदी का वाट्सएप संदेश देखकर सन्न रह गया। उन्होंने खबर दी थी कि भाई यतीन्द्र चतुर्वेदी नहीं रहे। एक जमाने में आकाशवाणी का आधार स्तंभ समझे जाने वाले यतीन्द्र जी से अभी दो दिन पहले ही तो बात हुई थी, उनका अचानक जाना सचमुच मन को व्यथित कर गया। सेवनिवृत्ति के बाद वे अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय हो गए थे और जीटीवी के धारावाहिक ‘मिठाई’ में उन्होंने यादगार भूमिका निभाई थी।
कुल 66 साल के यतीन्द्र भाई साहब मिठाई की तरह ही मीठे थे। उन्होंने दो दिन पहले ही देश-काल परिस्थितियों पर लम्बी चर्चा के दौरान बताया था कि वे अपनी श्रीमती जी की तकलीफों के दखते हुए मुंबई को अलविदा कह कर आए हैं। अब यहीं आराम से रहेंगे, लेकिन उनका ये ख्वाब अधूरा ही रह गया। ब्रज की मिठास उनके लफ्जों से शहद की तरह टपकती थी। पक्के चौबे थे। खूब हंसते-हंसते और खूब खाते-खिलाते थे।
वे आकाशवाणी के ग्वालियर और शिवपुरी केन्द्रों में जिम्मेदार पदों पर रहे। उनके प्रशंसकों का एक व्यापक संसार था। वे मेरे आलेखों को अपनी आवाज में स्वरबद्ध करने वाले थे। रोज सुबह मेरा लेख पढकर उनकी प्रतिक्रिया मिलती थी। नौकरी में रहते हुए भी उन्होंने अपनी ब्रज अस्मिता को एक पल के लिए भी नहीं भुलाया। यतीन्द्र जी पक्के मातृ-पितृ भक्त थे। सेवानिवृत्ति के बाद वे सिटी सेंटर में एक निजी फ्लैट में अपने पिता के पास रहते थे। उन्हें अपने माता-पिता की सेवा में बडा रस मिलता था। उनका भरा-पूरा परिवार था किन्तु वे सेवाकार्य में कोताही नहीं करते थे। अनेक अवसरों पर उन्होंने अपने मां और पिता की सेवा की वजह से अनेक महत्वपूर्ण अवसरों को भी तिलांजलि दी थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में वे अपने 87 वर्षीय पिता को लेकर मतदान करने जाने में भी नहीं हिचके थे। प्रदीप चौबे के बाद वे दूसरे चौबे थे, जिनके साथ मेरा याराना सभी हदों से परे था।
कभी किसी बात का बुरा न मानने वाले यतीन्द्र भाई साहब ने शहर से दूर एक भव्य कॉलोनी में अपना मुकाम बनाया था। वे हाय-हाय से दूर आराम से जिंदगी जीना चाहते थे। वे अपने जीवन के नए अध्याय का ढंग से आगाज भी नहीं कर पाए थे कि प्रकृति ने उन्हें अपने पास बुला लिया। पिछले 16 नवंबर को डॉ. बृजेश शर्मा कि पुस्तक के विमोचन समारोह में मंच पर मेरा स्वागत करते हुए उन्हें मुझे अपने गले से लगाया था। तब क्या पता था कि उनका ये अंतिम आंगन होगा, क्योंकि दो दिन पहले ही वार्ता के दौरान उन्होंने मुझे मेरे नए आवास पर पधारने का आश्वासन दिया था।
देश के मौजूदा हालात से वे बहुत दुखी थे। अभी 28 नवंबर को हम दोनों वंदे भारत रेल से दिल्ली गए थे। उन्होंने रेल में हुए कष्ट पर फौरन टीप लिख मारी थे। अहंकार से दूर रहने वाले यतीन्द्र जी उन्हें आंदोलन करने वालों के साथ ‘जीवी’ शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति थी। वे कहते थे कि ऐसा करने से हमारे स्वतांत्रता आंदोलनों का अपमान होता है। वे इतने कुशल अभिनेता थे कि हिन्दी वाले उन्हें हिन्दी का और गुजराती वाले उन्हें गुजराती का अभिनेता समझते थे। वे हाल ही में राजस्थान के नए मुख्यमंत्री भजनलाल को लेकर इसलिए खुश थे क्योंकि भजनलाल ब्रज क्षेत्र से हैं। बीते 10 दिसंबर को ही हमारी फेसबुक मित्रता के सात साल पूरे हुए थे। उस दिन उन्होंने मुझे टैग करते हुए एक पोस्ट लगाई थी। अभी पांच दिसंबर की ही बात है, वे बहुत खुश थे। क्योंकि उनके पिताश्री का पुराना ड्राइवर विशंभर सिंह अचानक उनके घर आ गया था। उन्हें लगा जैसे कि उनके पिताजी ही प्रकट हो गए हैं। इतना आदरभाव शायद ही कोई किसी के प्रति रखता हो। अमृतलाल नागर के परिवार से उनकी निकटता सर्वविदित रही। वे अपने पौत्र गप्चू से बहुत स्नेह करते थे।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी यतीन्द्र चतुर्वेदी से अभिनय के साथ ही साहित्य के क्षेत्र को बहुत सी उम्मीदें थीं। वे लिखते कम थे, लेकिन जितना लिखते थे उतना सारगर्भित लिखते थे। ग्वालियर दशकों पहले आ गए थे, शहर के चप्पे-चप्पे से वाकिफ थे, लेकिन उनकी रगों में ब्रज ही बसता था। कचौरी के बिना कोई चर्चा पूरी नहीं होती थी। सबका आदर करना और सबसे स्नेह हांसिल करना उन्हें बाखूबी आता था। न जाने कितनी स्मृतियां हैं जो अब चलचित्र की तरह आंखों के सामने उपस्थित हो रही हैं। लेकिन वेदना से भरे इन क्षणों में सभी को उकेर पाना संभव नहीं हो रहा है। उनके अंतिम दर्शनों की लालसा थी जो अधूरी रह गई। वे मेरे लिए मेरी स्मृतियों में हमेशा बसे रहेंगे। विनम्र श्रृद्धांजलि।