संसद में सेंधमारी पर रामधुन की जरूरत

– राकेश अचल


दूसरे लोगों का कोई पता नहीं, किन्तु मैं राजनीति से आजिज आ चुका हूं, राजनीति इतनी तेजी से गुलाटी खाती है कि मेरे जैसा आदमी कोई दूसरे मुद्दों पर बात कर ही नहीं पा रहा। अब संसद में सेंधमारी की घटना पर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के बयान पर राजनीति शुरू हो गई है। सत्ता रूढ दल भाजपा चाहता है कि राहुल गांधी को संसद की सेंधमारी की घटना पर राजनीति नहीं करना चाहिए। जाहिर है कि भाजपा इस घटना पर राजनीति नहीं ‘रामधुन’ की अपेक्षा करती है विपक्ष से।
सभी ने कहा कि संसद में सेंधमारी की घटना दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं, बल्कि संसद की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलने वाली है, लेकिन सरकार संसद की सुरक्षा व्यवस्था में झोल की जिम्मेदारी लेने के बजाय इस बात पर जोर दे रही है कि इस घटना पर राजनीति नहीं की जाना चाहिए। सवाल ये है कि क्या सेंधमारी करने वाले आरोपियों ने संसद में उन मुद्दों को लेकर प्रदर्शन नहीं किया जो बेरोजगारी और निरंकुशता से जुडे हैं? सरकार प्रदर्शनकारियों के मुद्दों पर धूल डालने के लिए इस विषय पर बोलने वाली हर आवाज को देशद्रोह बताने पर आमादा दिखाई दे रही है। मामले की जांच विशेष जांच दल कर रहा है, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष इस मुद्दे पर बहस की मांग करने वाले सांसदों को निलंबित कर रहे हैं। लोकसभा अध्यक्ष भी सरकार के सुर में सुर मिलाकर सांसदों को पत्र लिख कर संसद में सेंधमारी पर राजनीति न करने का आग्रह कर रहे हैं।
देश की जनता के सामने रोज नए-नए तिलिस्म खडे करने वाली सरकार संसद में सेंधमारी की अप्रत्याशित घटना से हतप्रभ है। सरकार की तमाम योजनाओं पर पानी फिर गया है। अगले महीने अयोध्या में हने वाले मन्दिर प्रहसन की तैयारी धूमिल हो गई है। आरोपियों ने प्रारंभिक पूछताछ में जो बताया है उसमें कोई बात ऐसी नहीं है जो आतंकवाद से जुडी है। आरोपियों का मकसद नींद में सोई संसद को जगाने और सत्ता के मद में डूबी सरकार को झकझोरने की है। लेकिन सरकार ये मानने वाली नहीं है। सरकार चाहती है कि देश में कोई भी इन आरोपियों के पीछे खडा न हो, इनका समर्थन न करे।
संसद में सेंधमारी के मसले पर सत्तारूढ दल जिस तरह से विपक्ष के प्रति आक्रामक है, उससे लगता है कि राजनीति विपक्ष नहीं बल्कि सरकार कर रही है। मामला अब जांच के दौर से गुजर रहा है, उसे लेकर संसद के भीतर सांसद और संसद के बाहर गोदी मीडिया सबसे ज्यादा आक्रामक है। गोदी मीडिया को आरोपियों द्वारा उठाये गए मुद्दों पर बहस नहीं चाहती, गोदी मीडिया सरकार के सुर में सुर मिलकर अपना पुरुषार्थ दिखा रही है। संसद में इस तरह की घटना 94 साल पहले दिल्ली में हुई थी। लेकिन संसद पर हमला 21 साल पहले हुआ था। 13 दिसंबर की सेंधमारी को 21 साल पहले संसद में हुए हमले से नहीं तौला जा सकता।
सत्तापक्ष सेंधमारी की घटना को गुण्डागर्दी बता रहा है। सत्तापक्ष चाहता है कि लोग बेरोजगारी पर बात न करे, विपक्ष तानाशाही पर बात न करे। मीडिया और सत्तापक्ष सेंधमारी के आरोपियों को अफजल गुरू बता रहे हैं। क्योंकि इस घटना से देश में राम-राम कर तमाम मुद्दों से देश का ध्यान भटकाने का अभियान अटक रहा है। अयोध्या में मन्दिर निर्माण से सरकार का कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन सरकार परोक्ष रूप से सारा भार वहन कर रही है। चम्पत राय केवल चेहरा हैं। वे कौन हैं जो देश की जनता को अयोध्या में राम मन्दिर के लोकार्पण के दिन देश के मन्दिरों में पांच दीपक जलाने का आग्रह कर रहे हैं।
दरअसल भारत में इस समय ही नहीं, बल्कि पिछले 43 साल से रामनामी राजनीति चला रही है। रामनामी राजनीति 2014 में केन्द्र की सत्ता हाथ में आने के बाद और तेज हो गई। रामनामी राजनीति में राम के साथ राम के भक्त भी विश्वगुरू बनने की जुगत में जुट गए और आज तो वे बाकायदा देश की जनता को गारंटियां दे रहे हैं। इस देश में रामनामी राजनीति के लिए कितनी गुंजाइश है ये सत्तारूढ दल ज्यादा जानता है, हमें तो सिर्फ इतना पता है कि इस देश को आजादी राम के नाम पर नहीं मिली था। इस देश पर अगर राम की कृपा थी तो 500 साल की गुलामी क्यों झेलना पडी सबको? दरअसल राम का राजनीति से कोई लेना-देना न त्रेता में था और न कलियुग में है। राम को राजनीति में घसीट कर लाने वाले लोग दूसरे ही हैं। उनके लिए न संविधान महत्वपूर्ण है और न ही भाई-चारा।
संसद में सेंधमारी से यकीनन हमारे मोदी युगीन लौहपुरुषों की क्षमताओं की पोल खुली है। हमारे नए लौहपुरुष हर समस्या के लिए नेहरू-गांधी को गरिया कर अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुए हैं और रामजी की कृपा से उन्हें इसमें कामयाबी भी मिली है। हाल के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जितनी विषम परिस्थितियों में रामभक्तों की पार्टी जीती है, उसकी जांच के लिए इस देश में कोई एसआईटी गठित नहीं हो सकती, क्योंकि यदि पूरी चुनाव प्रक्रिया की जांच होगी तो ठीक वैसी ही पोल खुलेगी जैसी संसद की सुरक्षा व्यवस्थाओं को लेकर खुली है। पोल खुलने से हर कोई डरता है, कांग्रेसी भी और भाजपाई भी।
मुझे ये कहने और मानने में कोई संकोच नहीं है कि रामनामी माला जपने वाले हमारे देश के नेता चुनाव लडने और लोकतंत्र को अपने काबू में रखने में कांग्रेस के मुकाबले सौ गुना ज्यादा श्रम करते हैं। वे दिन-रात केवल चुनाव जीतने के लिए ही काम करते हैं। देश का विकास करने के लिए न उनके पास समय है और न मंशा। वे समझते हैं कि यदि रामजी की कृपा होगी तो देश का विकास अपने-आप हो जाएगा। विकास के लिए काहे को मगजमारी की जाए? रामभक्तों की कामयाबी के लिए यकीन देश का विपक्ष जिम्मेदार है। यदि देश का विपक्ष जरा भी सजग होता तो ये देश कलियुग से वापस त्रेता की और लौटता नहीं दिखाई देता। दुनिया के कितने देश हैं जो पीछे की और लौट रहे हैं? कितने देशों में धर्म ध्वजाएं फहराकर लोकतंत्र की जय बोली जा रही है?
सियासत में अदावत का रंग घोलने वाले लोगों से देश को न्याय की उम्मीद नहीं करना चाहिए। आज की तारीख में दो ही रास्ते हैं, पहला ये कि हम सब रामधुन करें और तमाम मुद्दों को हमेशा के लिए तिलांजलि दे दें। या फिर देश के तमाम मुद्दों को लेकर एकजुट होकर लडें और रामजी से प्रार्थना करें कि वे अपने आपको राजनीति का खिलौना न बनने दें। रामजी हम सबके हैं, वे किसी एक दल या एक विचारधारा के लोगों के नहीं हैं। वे न यादव हैं, न राजपूत। वे न ब्राह्मण हैं, न अगडे-पिछडे। उन्हें जातियों से जोडना ही पाप है। यदि भगवान हैं तो उन्हें खुद अपने आपको जातियों के खांचों में रखे जाने का विरोध करना चाहिए और यदि वे नहीं हैं तो जनता को हकीकत समझना चाहिए। मंै बीते 40 साल से रामचरित मानस का नियमित परायण करने वाला आदमी हूं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं बांकी दूसरे धर्मग्रंथों का परायण करने वालों को अपने से हीन समझूं, दीन समझूं या उन्हें राष्ट्रद्रोही मानूं। कम से ऐसी शिक्षा 1980 के पहले तो इस देश में किसी राजनीतिक दल ने देशवासियों को नहीं दी।
संसद में सेंधमारी के बहाने देश को दो हिस्सों में बांटने वाली कोशिशों को निंदनीय मानते हुए मेरा आग्रह ये ही है कि इस देश को एक ऐसी संसद चाहिए जो बहरी न हो, जिसे जगाने के लिए किसी को संसद में सेंध न लगना पडे। जिसे जागने वालों को निलंबित न होना पडे या अपनी सदस्य्ता से हाथ न धोना पडे। चिंतन-मनन आप भी कीजिए, ये आपकी जिम्मेदारी है। रामजी ने कभी नहीं कहा कि अपने देश और देशवासियों के बारे में न सोचा जाए। राम राज में तो खग, मृग को ही नहीं बल्कि हमारे धोबियों को भी टीका-टिप्पणी करने की छूट थी। इस अपराध के लिए राम राज में किसी को ‘तडीपार’ नहीं किया गया, किसी को जेल में नहीं डाला गया। लेकिन आज टीका-टिप्पणी करना देशद्रोह है, राजद्रोह है।