स्मृति शेष : विजय रमन- ‘उनकी गोली बोलती थी’

– राकेश अचल


चम्बल का इतिहास रीता जा रहा है। एक जमाना था जब पूरे देश में ग्वालियर-चंबल के डाकू चर्चा का विषय हुआ करते थे, साथ ही चर्चाओं में रहते थे इन दुर्दांत डाकुओं से लगातार मुठभेडें करने वाले भारतीय पुलिस सेवा के तमाम जाबांज अधिकारी। विजय रमन इनमें से एक थे। वे अकेले ऐसे पुलिस अधिकारी थे जिन्हें दर्प छू भी नहीं सका था। डाकू उनके नाम से कांपते थे।
बात 1980-81 की है। मप्र के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने दस्यु समस्या के उन्मूलन के लिए आत्म समर्पण का रास्ता तो खोला ही था, साथ ही बन्दूक की गोलियों को भी अपना काम करने की छूट दी हुई थी। उन दिनों चंबल में तमाम डाकू गिरोहों का आतंक था। इनमें से एक गिरोह था डाकू पानसिंह तोमर का। पानसिंह तोमर एक कुशल धावक और सेना का सेवानिवृत्त जवान था, लेकिन स्थानीय परिस्थितियों ने उसे डाकू बना दिया था। डाकू पानसिंह तोमर का गिरोह आठवें दशक का एक ऐसा डाकू गिरोह था जो पूरे इलाके में आतंक का पर्याय बन चुका था। पानसिंह का आतंक इतना खतरनाक हो गया था। तब पुलिस भी पानसिंह को पकडने से डरती थी, सरकार ने पानसिंह तोमर को पकडने के लिए करीब 10 हजार रुपए का इनाम रखा था।
बात शायद एक अक्टूबर 1981 की है। मैं उन दिनों दैनिक आचरण अखबार में काम करता था। हमें खबर मिली की भिण्ड पुलिस ने एण्डोरी के पास डाकू पानसिंह गिरोह को घेर लिया है। एण्डोरी के पास नोनेरा गांव में रहने वाले हमारे चचा ने हमने एक निजी सन्देश वाहक से ये खबर भिजवाई। उस जमाने में स्वदेश में काम करने वाले आलोक तोमर और मैं अपने साधन से मुठभेड स्थल के लिए रवाना हुए और जब मौके पर पहुंचे तो हमें पुलिस ने मील भर पहले ही रोक दिया। इंस्पेक्टर महेन्द्र प्रताप सिंह हमारे मित्र थे। हमने उन्हें आवाज लगाईं तो उन्होंने हमें हाथ से इशारा कर रुकने के लिए कहा। आधी रात से शुरू हुई गोलाबारी सुबह तडके तक चली और जब पौ फटी तब ये सिलसिला शुरू हुआ। एसपी विजय रमन अपने अमले के साथ विजयी मुद्रा में खडे थे, लेकिन उनके चेहरे पर तब भी कोई दर्प नहीं था। उन्होंने पूरी तैयारी के साथ पानसिंह के गिरोह को घेरा था। कोई 150 के आस-पास पुलिस इस अभियान में शामिल थी। विजय रमन ने गिरोह के सरगना पानसिंह तोमर को उसके आधा दर्जन साथियों के साथ ढेर कर दिया था।
उस जमाने में न मोबाइल थे और न हम रिपोर्टरों के पास कैमरे। लेकिन विजय रमन ने हमें मारे गए डकैतों के फोटो मुहैया करने का आश्वासन देकर हमें मौके से विदा किया। तब ‘ब्रेकिंग न्यूज’ का जमाना भी नहीं था, 24 घण्टे चीखने वाले टीवी चैनल भी नहीं थे, शाम के अखबार भी नहीं थे, इसलिए इस साहसिक मुठभेड की खबर पूरे 24 घण्टे बाद अखबारों की सुर्खी बनी, तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने विजय रमन को फोन पर इस कामयाबी के लिए बधाई दी। विजय रमन रातों-रात देश के अखबारों की सुर्खियों में थे। भिण्ड की जनता आज भी उन्हें याद करती है। वे सीआरपीएफ, बीएसएफ और रेलवे में भी रहे, लेकिन उन्हें जो मान-प्रतिष्ठा डाकू पानसिंह तोमर गिरोह के खात्मे से मिली वो अपने आप में एकदम अलग थी।
उस जमाने में फूलन देवी और मलखान सिंह भी विजय रमन के निशाने पर थे, लेकिन उन दोनों ने समर्पण का रास्ता अपनाकर अपनी जान बचा ली। विजय रमन ने चंबल की जनता को डाकुओं के आतंक से मुक्ति ही नहीं दिलाई बल्कि वे देश के चार प्रधानमंत्रियों के साथ एसपीजी के भी प्रमुख रहे। उन्होंने तत्कालनीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, वीपी सिंह, चंद्रशेखर और पीव्ही नरसिम्हाराव के साथ भी काम किया। संसद पर हमला करने वाले आतंकी गाजी बाबा का खात्मा भी विजय रमन की गोली ने ही किया। वे दुश्मनों के दुश्मन और दोस्तों के दोस्त हुआ करते थे।
मैंने कुछ वर्ष पहले मप्र में दस्यु उन्मूलन का इतिहास लिखने की योजना बनाई थी। उस समय विजय रमन साहब से मेरी अक्सर फोन पर बात होती रही। उनके पास सूचनाओं और अनुभवों का भण्डार था। वे खुद एक पुस्तक लिखने की योजना बना रहे थे, किन्तु प्रचार से सदा दूर रहने वाले अपना ये काम पूरा नहीं कर पाए, वे फेसबुक पर भी सक्रिय थे। 72 वर्षीय विजय रमन को पिछले साल कैंसर ने उन्हें आ घेरा। कैंसर यानि कर्क रोग विजय रमन से जीत गया। बेहद ईमानदार, निष्ठावान, संवेदनशील अधिकारी के रूप में विजय रमन हमेशा याद किए जाएंगे। तत्पर निर्णय और नेतृत्व की अदभुद क्षमता वाले विजय रमन के साथ बीते दिनों की सुधियां बार-बार द्रवित करती हैं। मध्य प्रदेश के दस्यु उन्मूलन अभियान में उनकी उपलब्धियां स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं। मेरी विनम्र श्रृद्धांजलि।