चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो

– राकेश अचल


कैफ भोपाली ने देश दुनिया से चांद के पार चलने की गुजारिश आज से 50 साल पहले की थी। फिल्म पाकीजा के लिए उन्होंने गीत लिखा था- ‘चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो, हम हैं तैयार चलो’ और यकीन मानिये हम और दुनिया वाले तभी से बल्कि उससे पहले से चांद के पार जाने की कोशिश कर रहे हैं। चांद हमारे सपनों का बादशाह है। हममें से किसी ने सूरज के पार जाने की तमन्ना नहीं की। सब चांद पर जाना चाहते हैं, क्योंकि चांद शीतलता प्रदान करता है। चंद्रयान-3 के चंद्रमा की कक्षा में सफलता पूर्वक प्रवेश करने के एक दिन बाद रविवार को अंतरिक्ष यान द्वारा ली गई चंद्रमा की पहली झलक जारी कर दी है। इसके साथ ही हमारा उतावलापन और ज्यादा बढ़ गया है।
चांद से हमारी रिश्तेदारी पुरानी है, चांद हमारा मामा है, चांद हमारी प्रेयसी है, चांद हमारा देवता है, चांद हमारी कल्पनाओं का प्रतिबिम्ब है, हम चांद पर लट्टू हैं। चांद हमरे स्वप्नलोक का शाहकार है। मनुष्य मशीनों के जरिये चांद पर जब पहुंचा तब पहुंचा, लेकिन दिल और दिमाग से चांद उसके लिए कभी अलभ्य नहीं रहा। भले ही नील आर्मस्ट्रांग पहले चन्द्रयात्री बने हों, लेकिन हम हिन्दुस्तानी न जाने कब से चन्द्रमा के करीब हैं। चन्द्रमा हमारे लिए केवल एक गृह नहीं, बल्कि एक जीता-जागता देवता है। चन्द्रमा की हजार छवियां मशीनें जमीन पर भेज दे किन्तु जो छवि हमारे मन-मसितष्क पर आदिकाल से है उसे अब तक कोई बदल नहीं पाया है।
हमने यदि कैफ भोपाली का कहा मान लिया होता तो आज हम मजे में होते। उन्होंने कहा था कि
‘चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो
हम है तैयार चलो
चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो
हम है तैयार चलो
आओ खो जाए सितारों में कहीं
आओ खो जाए सितारों में कहीं
छोड दे आज ये दुनिया ये जमीन
दुनिया ये जमीन
लेकिन हमसे गलती हो गई कि हमने जमीन नहीं छोडी। आज हम खून से लोहित जमीन पर खडे है। चांद हमसे दूर है, बहुत दूर। मैं उस समय 10 वर्ष का बच्चा था। वो शायद 16 जुलाई 1969 का ऐतिहासिक दिन था, जब नील अपने दौ और साथियों के साथ चांद के लिए रवाना हुए थे। आर्मस्ट्रांग के साथ उनके दो साथी बज्ज एल्ड्रिन और माइकल कॉलिन्स भी थे। एल्ड्रिन आर्मस्ट्रांग के साथ ही चांद की जमीन पर उतरे थे, जबकि कॉलिन्स चन्द्रमा के ऑर्बिट में अंतरिक्ष यान में ही थे। जब आर्मस्ट्रांग चांद पर उतरे थे, तब 20 जुलाई 1969 का वक्त था। चांद पर उतरते वक्त नील आर्मस्ट्रांग की दिल की धडकन 180 के ऊपर चल रही थी। नील आर्मस्ट्रांग के बाद बज्ज एल्ड्रिन भी चांद की जमीन पर उतरे और वो दुनिया के दूसरे व्यक्ति बन गए जो चांद पर गए थे। तब हमारे हाथ में ट्विटर नहीं था, लेकिन आज है। आज इसरो ने ट्वीट कर कहा है कि ‘5 अगस्त, 2023 को चंद्र कक्षा प्रविष्टि (एलओआई) के दौरान चंद्रयान 3 अंतरिक्ष यान द्वारा देखा गया-चंद्रमा’। यह चंद्रयान-3 की एक और बडी उपलब्धि है। अंतरिक्ष यान अपने मिशन पर सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है।
चन्द्रमा सनतान है, हजारों साल से हमारे साथ है। तब भी था जब राजा राम वनवास काट रहे थे और आज भी है जब राजा राम के लिए अयोध्या में भव्य मन्दिर बनाया जा रहा है। राम जब लंका पर चढ़ाई करने वाले थे, उस समय उन्होंने अपने सेना नायकों से चन्द्रमा के बारे में एक आशु परीक्षा ली थी। गोस्वामी तुलसीदास ने लंकाकाण्ड में लिखा-
‘कह प्रभु ससि महुँ मेचकताई। कहहु काह निज निज मति भाई॥
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई। ससि महुँ प्रगट भूमि कै झाँई॥
मारेउ राहु ससिहि कह कोई। उर महँ परी स्यामता सोई॥
कोउ कह जब बिधि रति मुख कीन्हा। सार भाग ससि कर हरि लीन्हा॥
छिद्र सो प्रगट इंदु उर माहीं। तेहि मग देखिअ नभ परिछाहीं॥
प्रभु कह गरल बंधु ससि केरा। अति प्रिय निज उर दीन्ह बसेरा॥
बिष संजुत कर निकर पसारी। जारत बिरहवंत नर नारी॥
दोहा- कह हनुमंत सुनहु प्रभु ससि तुम्हारा प्रिय दास।
तब मूरति बिधु उर बसति सोइ स्यामता अभास॥
चंद्रयान-3 द्वारा भेजी गई तस्वीरें उन तस्वीरों से ज्यादा सुंदर नहीं हैं, जो मनुष्य ने अपने मन में खींच रखीं है। हमारी संस्कृति और साहित्य में जो चन्द्रमा है वो चंद्रयान-3 के चन्द्रमा से एकदम अलग है। अंतरिक्ष एजेंसी को इसे अनुभव करने में 600 करोड रुपए खर्च करना पडे हैं। हमारे वैज्ञानिक इस मिशन को एक प्रमुख मील का पत्थर मानते हैं और ये है भी। लेकिन इस चन्द्रमा पर जो आज हम देख रहे हैं वो आम आदमी का चन्द्रमा नहीं है। इस चन्द्रमा पर भविष्य में कोई अडानी,अम्बानी या कोई चौकीदार तो जा सकता है, लेकिन आम आदमी के लिए तो चन्द्रमा चौदहवीं के चांद सी मेहबूबा ही रहने वाला है। चन्द्रमा की इस तस्वीर को कोई भी वैज्ञानिक मिशन नहीं बदल सकता। बदलना आसान भी नहीं है।
हमारे लिए चन्द्रमा एक गृह नहीं बल्कि समुद्र मंथन से निकला एक देवता है। समुद्र से देवकार्य की सिद्धि के लिए अमृतमयी कलाओं से परिपूर्ण चन्द्रदेव प्रकट हुए। संपूर्ण देवता, असुर और दानवों ने भगवान चंद्रमा को प्रणाम किया और गर्गाचार्य जी से अपने-अपने चन्द्रबल की यथार्थ रूप से जिज्ञासा की। उस समय गर्गाचार्य जी ने देवताओं से कहा- इस समय तुम सब लोगों का बल ठीक है। तुम्हारे सभी उत्तम ग्रह केन्द्र स्थान में (लग्न में, चतुर्थ स्थान में, सप्तम स्थान में और दशम स्थान में) हैं। चन्द्रमा से गुरु का योग हुआ है। बुध, सूर्य, शुक्र, शनि और मंगल भी चन्द्रमा से संयुक्त हुए हैं।
समुद्र मंथन से निकले अमृत के बंटवारे में देवताओं के छल को सब जानते हैं, लेकिन दैत्य राहु के छलपूर्वक अमृतपान करने की चुगली करने वाला भी हमारा चन्द्रमा ही है। भगवान विष्णु ने तत्काल अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर गर्दन से अलग कर दिया। अमृत के प्रभाव से उसके सिर और धड राहु और केतु नाम के दो ग्रह बन कर अंतरिक्ष में स्थापित हो गए। वे ही बैर भाव के कारण सूर्य और चन्द्रमा का ग्रहण करते हैं। ऐसे चन्द्रमा को हम कैसे भूल सकते हैं? आज भी सावधान रहो कहने वालों की गर्दन काटी जा रही हैं, चन्द्रमा की तरह। छल से सत्तामृत चखने वाले कभी नहीं चाहते कि कोई चन्द्रमा जनता को इस छल के बारे में आगाह करे। जो ऐसी कोशिश करता है उसके साथ क्रूरता बरती ही जाती है।
आज जब आप ये आलेख पढ़ रहे होंगे तब हमारे देश की संसद में चंद्रयान द्वारा भेजी गई चन्द्रमा की तस्वीरों पर कोई चर्चा नहीं होगी। मणिपुर पर भी चर्चा के नाम पर हंगामा होगा, ड्रामा होगा। सरकार के प्रति अविश्वास का प्रकटीकरण किया जाएगा। हमारी उपलब्धियां मणिपुर और हरियाणा की हिंसा में डूब जाएंगी। हम अपने वैज्ञानिकों की उपलब्धि पर उन्हें सराहने के बजाय चुनावों की तैयारियों में जुटे रहेंगे। हम बटन दबाकर देश के रेल स्टेशनों को आधुनिक बनाने में जुटे रहेंगे। भूल जाएंगे देश में मंहगाई और बेरोजगारी को, भ्रष्टाचार और घोटालों को। हम चर्चा करेंगे सांपों की, नागों की। बहरहाल हम चन्द्रमा पर जाने को कल भी तैयार थे, आज भी तैयार थे। सवाल ये है कि हमें चन्द्रमा के पार ले जाने की उदारता किसके पास है?