बुलेट नहीं, वंदे भारत रेल

@ राकेश अचल


रेल का पटरी पर रहना और उतरना एक मुहावरा भी है और हकीकत भी। आजकल सरकार की रेल पटरी पर है और विपक्ष की बेपटरी। ऐसे में सरकार ने देश में 10 वंदे भारत रेलें शुरू कर आम चुनाव से पहले अपनी गति बढ़ाने का प्रदर्शन करने की कोशिश की है। ये रेलें चीन और जापान की बुलेट रेलों की तरह बहुत तेज गति से नहीं भागतीं। इन्हें सेमी हाई स्पीड रेल कहा जाता है। कहने को ये भारत की सबसे तेज गति से चलने वाली रेलें हैं, लेकिन हकीकत में राजधानी और शताब्दी की तरह ये भी बस तेज भागती हैं।
देश में रेल जनता की सेवा का सबसे बड़ा माध्यम है, इसलिए हर सरकार इस रेल को एक खिलौने की तरह इस्तेमाल करती है। पहले रेल का इस्तेमाल सरकार की और से रेल मंत्री करते थे, अब प्रधानमंत्री को करना पड़ता है। किसी ने गरीब रथ चलाया तो किसी ने शताब्दी। किसी ने राजधानी तो किसी ने कुछ और। भाजपा ने वंदे भारत रेल चलाई है। नई रेल सेवा है, इसलिए इसे मेवा की तरह लेना चाहिए। क्योंकि पिछले कोरोना काल से रेल सेवाओं के मामले में लगातार गिरावट आयी है। सुविधाएं और रियायतें छीनीं गई हैं। रेल को निजी हाथों में सौंपने की कोशिशें नाकाम होने के बाद भी जारी है।
कुल 10 वंदे भारत ट्रेनें पटरियों पर दौड़ रही हैं. इसमें वाराणसी से नई दिल्ली, मुंबई से गांधीनगर, मैसूर से चेन्नई, विशाखापट्टनम से सिकंदराबाद, नई दिल्ली से अंदौरा, न्यू जलपाईगुड़ी से हावड़ा, माता वैष्णो देवी कटरा से नई दिल्ली, सोलापुर से मुंबई, शिरडी से मुंबई और बिलासपुर से नागपुर के बीच चलनेवाली वंदे भारत ट्रेनें शामिल हैं|
मजे की बात ये है की जिस वंदे भारत रेल को देश की सबसे तेज गति से चलने वाली रेल कहा जा रहा है उसकी गति दूसरी एक्सप्रेस रेलों के मुकाबले ज्यादा है ही नही। परिस्खन के दौरान रेल की गति 130 किमी प्रति घंटों आंकी जरूर गयी थी और इसे 180 किमी प्रति घंटे की गति से दौड़ाया जा सकता है, लेकिन तब जब देश की तमाम रेल पटरियों को बदल दिया जाय। फिलहाल ये रेल आपसे किराया ज्यादा लेगी और दौड़ेगी दूसरी एक्सप्रेस रेलों की ही तरह। इसकी औसत गति 64 से 95 किमी प्रति घंटा से ज्यादा नहीं निकलेगी। इस रेल के साथ सियासत पहले ही दिन से शुरू हो गयी थ। इसे जगह-जगह रुकवाने की कोशिशें की गयीं और उन्हें कामयाबी भी मिली।
आप संतोष कर सकते हैं कि वंदे भारत रेल का संधारण दूसरी रेलों के मुकाबले कुछ सस्ता है। 16 डिब्बों की ये एक रेल 115 करोड़ रुपए की है। स्वदेशी है। ये रेल नई बोतल में पुरानी शराब जैसी है, क्योंकि इसका नाम 2019 में रेल नंबर 18 रहा गया था जिसे बाद में बदल कर वंदे भारत कर दिया गया। हकीकत में ये रेल चल तो 15 फरवरी 2019 से है। लेकिन चुनाव से पहले इसे नया नाम और रूप दे दिया गय। जनता को झांसा भी तो देना था। हवाई जहाज की तरह की बैठक व्यवस्था वाली इस रेल में बड़ी खिड़कियां और शताब्दी की तरह की चेयर कारण हैं, हां वाईफाई सुविधा जरूर नयी बात है। सीटें रिक्लाइनर हैं, एलसीडी टीवी लगे हैं दरवाजे स्वचालित हैं।
अब आइये आपको बता दें कि ये मोदी जी का जादू नहीं है। इस जादू की कहानी और यात्रा 25 साल पुरानी है। इस तेज गति रेल के बारे में 1990 से काम चल रहा था। यनि तबसे जब भाजपा सत्ता से कोसो दूर थी। चूंकि ये रेल पूरी तरह स्वदेशी है इसलिए सरकार ने रेल का नाम वंदे रेल कर कर दिया। इस उपलब्धि के लिए आप हमारी लोकप्रिय सरकार को बधाई दे सकते हैं। सरकार ने अगले तीन साल में 400 वंदे रेल चलाने की घोषणा 2022 में की थी लेकिन बनीं अभी तक 10 ही है। 44 का ही आदेश दिया गया है। बाक़ी हवा-हवाई है। कथित रूप से स्वदेशी इस रेल के पहिये रूस, चीन, समेत तमाम दूसरे देशों से भी बनवाए गए हैं, क्योंकि भारतीय कारखाने इनका पूरा उत्पादन कर नहीं पा रहे थे।
कुल मिलाकर वंदे भारत रेल पहले से चल रही राजधानी, शताब्दी, गतिमान, हमसफ़र, अंत्योदय, उदय, तेजस, महात्मा एकसप्रेस, ट्रेन-20 बिरादरी की नई रेल है। इसका स्वागत किया जा चुका है। इसकी सेवाओं को अंक आपको देना ह। जाइये, बैठिये और बताइए कि वंदे भारत में वंदनीय क्या-क्या है ? क्योंकि अगले साल सरकार इसी के जरिये आपसे वोट मांगेगी और आपको वोट देना ही है किसी न किसी को। चूंकि इस रेल में किराया ज्यादा है इसलिए हम जैसे सीनियर सिटीजन तो इसमें बैठने से रहे, क्योंकि हमें किराए में कोई छूट अब मिलती नहीं है। हम पुरानी कम गति की रेलों से ही सफर कर पाएंगे। इस रेल को झंडी दिखाने खुद प्रधानमंत्री जी को भोपाल आना पड़ा। हालांकि रेल को हरी झंडी वो ही दिखा सकता है जो रेल नियमों के अनुसार इसका पात्र है। लेकिन हमारे नेता तो हर काम के लिए सुपात्र होते हैं, उनके कर-कमल जो होते हैं।