– अशोक सोनी ‘निडर’
अगर नेहरू का नाम लेना शर्मिंदगी और अपराध है तो यह अपराध विश्व की राजनीतिक और साहित्यिक बिरादरी के तमाम लोगों ने किया है, आज जरूरत है इसके पर्दाफाश की। भगवान जाने इस अपराध के प्रति उनमें अपराध बोध हुआ भी या नहीं। शर्मिंदगी महसूस हुई या नहीं। अपना तो कहना है कि सरकार अडानी पर न सही पर कम से कम इस पर जरूर एक जांच कमेटी बैठा दे कि इन अपराधों पर किसी को शर्मिंदगी हुई या नहीं। लेकिन हां, बैठाने से पहले इसका जरूर ध्यान रखें कि कहीं सुभाष बाबू की गोपनीय फाइलों को खुलवाने जैसा हाल न होने पाए। उसमें तो नेहरू द्वारा सुभाष बाबू के परिवार की आर्थिक सहायता किए जाने की सदाशयता उजागर हो गई थी, जिसे नेहरू ने जीते-जी कभी इसका जिक्र तक नहीं किया। पता नहीं कैसे बड़े लोग थे जिन्होंने अपना ढिंढोरा तक नहीं पीटा।
सबसे पहले सुभाष बाबू के ही अपराध को बताते हैं कि उन्होंने क्या किया… तो सुभाष जी का अक्षम्य अपराध यह था कि उन्होंने एक जगह यह लिखा है कि ‘भारत में अभी महात्मा गांधी के बाद दूसरा सबसे कोई लोकप्रिय नेता हैं, तो जवाहरलाल जी और युवकों में तो वे महात्मा जी से भी अधिक लोकप्रिय हैं।’
और तो और क्रांतिनायक सरदार भगत सिंह तक भीषण अपराध करने से बाज न आए। उन्होंने नेहरू को युगांतरकारी बता दिया। सो इन पर भी मुकदमा चलना ही चाहिए। भगत सिंह कहते हैं कि- ‘इस समय जो नेता आगे आए हैं, वे हैं- बंगाल के पूजनीय श्री सुभाष चन्द्र बोस और माननीय पं. जवाहरलाल नेहरू। यही दो नेता हिन्दुस्तान में उभरते नजर आ रहे हैं और युवाओं के आंदोलनों में विशेष रूप से भाग ले रहे हैं। दोनों ही हिन्दुस्तान की आजादी के कट्टर समर्थक हैं। दोनों ही समझदार और सच्चे देशभक्त हैं। लेकिन फिर भी इनके विचारों में जमीन-आसमान का अंतर है। एक को भारत की प्राचीन संस्कृति का उपासक कहा जाता है, तो दूसरे को पक्का पश्चिम का शिष्य। एक को कोमल हृदय वाला भावुक कहा जाता है और दूसरे को पक्का युगांतरकारी। सुभाष बाबू मजदूरों से सहानुभूति रखते हैं और उनकी स्थिति सुधारना चाहते हैं। पर पंडित जी एक क्रांति करके सारी व्यवस्था ही बदल देना चाहते हैं। इनके बाद आपको डॉ. राधाकृष्णन का अपराध बताते हैं। वे कहते हैं कि ‘नेहरू दुनिया के महान पुरुषों में से एक हैं’।
हालांकि अपराधी तो एक और भी महान व्यक्ति है, जिसने महानता की आड़ में एक बहुत घटिया काम किया है और जिसे ये नेहरू के प्रतिद्वंद्वी के तौर पर खड़ा कर उसकी विरासत को अपना बताते फिरते हैं। वे हैं पटेल। ये बताते हैं कि नेहरू ने पटेल के साथ बड़ा जुल्म किया। हालांकि यह बात और है कि दुश्मनी के बावजूद नेहरू ने पटेल को हटाने के लिए किसी मार्गदर्शक मण्डल का गठन नहीं किया था। पटेल लिखते हैं कि ‘कई तरह के कार्यों में एक साथ संलग्न रहने और एक-दूसरे को इतने अंतरंग रूप से जानने की वजह से स्वाभाविक रूप से हमारे बीच का आपसी स्नेह साल-दर-साल बढ़ता गया है। लोगों के लिए यह कल्पना करना भी मुश्किल होगा कि जब हमें एक-दूसरे से दूर होना पड़ता है और समस्याओं को सुलझाने के लिए हम एक-दूसरे से सलाह-मशविरा नहीं कर पाने की स्थिति में होते हैं, तो हम दोनों को एक-दूसरे कमी कितनी खलती है। इस पारिवारिकता, नजदीकी, अंतरंगता और भ्रातृवत स्नेह की वजह से उनकी उपलब्धियों का लेखा-जोखा करना और सार्वजनिक प्रशंसा करना मेरे लिए बहुत मुश्किल है। लेकिन फिर भी राष्ट्र के प्यारे आदर्श, जनता के नेता, देश के प्रधानमंत्री और आमजनों के नायक के रूप में उनकी महान उपलब्धियां एक खुली किताब जैसी हैं।’
सरदार पटेल यही नहीं रुकते हैं वे और लिखते हैं… ‘जवाहरलाल उच्च स्तर के आदर्शों के धनी हैं, जीवन में सौंदर्य और कला के पुजारी हैं। उनमें दूसरों को मंत्रमुग्ध और प्रभावित करने की अपार क्षमता है। वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जो दुनिया के अग्रणी लोगों के किसी भी समूह में अलग से पहचान लिए जाएंगे। उनकी सच्ची दृढ़प्रतिज्ञता, उनके दृष्टिकोण की व्यापकता, उनके विजन की सुस्पष्टता और उनकी भावनाओं की शुद्धता- ये सब कुछ ऐसी चीजें हैं जिसकी वजह से उन्हें देश और दुनिया के करोड़ों लोगों का सम्मान मिला है। इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि स्वतंत्रता की अल्लसुबह के धुंधलके उजास में वे हमारे प्रकाशमान नेतृत्व बनें और जब भारत में एक के बाद एक संकट उत्पन्न हो रहा हो, तो हमारी आस्था को कायम रखने वाले और हमारे सेनानायक के रूप में हमें नेतृत्व प्रदान करें। मुझसे बेहतर इस बात को कोई नहीं समझ सकता कि हमारे अस्तित्व के इन दो कठिन वर्षों में उन्होंने देश के लिए कितनी मेहनत की है।
अब आगे बढ़ते हैं और बताते हैं मौलाना आजाद का अपराध। वे कहते हैं कि ‘जवाहरलाल बड़े स्नेहशील और उदार हृदय व्यक्ति हैं तथा व्यक्तिगत ईष्र्या-द्वेष के लिए उनके मन में कोई जगह नहीं है’। आइंस्टीन उनके लेखकीय कौशल के मुरीद थे, लिहाजा उनको भी इस अपराध के लिए जिम्मेदार माना जाय। इसके अलावा साहित्यिक जगत में भी बड़े-बड़े अपराधी मिलेंगे। मुक्तिबोध तो बेहोशी की हालत से बाहर आते ही नेहरू के बारे में पूछते रहते थे। बताइये बेहोशी तक में अपराध करने से नहीं चूके। हक्सले कहते हैं कि राजनीति नेहरू का स्पर्श पाकर शालीन हो गयी। अब बताओ यह भी कोई बात हुई। एक बार फिराक ने नेहरू के समक्ष अपनी चुप्पी को कुछ यूं बयान किया। उन्होंने कहा कि – ‘तुम मुखातिब भी हो, करीब भी, तुमको देखें कि तुमसे बातें करें’।
अब यह कहने की जरूरत नहीं कि फिराक का यह एक मुंह चुप्पा अपराध था। एक और वाक्या है- एक बार इलाहाबाद में एक गोष्ठी में इतिहास लेखन विषय पर विमर्श के दरमियान इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद और नेहरू के बीच चर्चा हुई। चर्चा ज्यादा बढऩे पर फिराक ने कहा कि ‘सुनो ईश्वरी तुम इतिहास लिखते हो, उसने इतिहास बनाया है’। इसके बाद आते हैं दिनकर पर। अब क्या कहें कि उन्होंने तो ‘लोकदेव नेहरू’ नाम से पूरी एक किताब ही लिख दी। यह अपराध की दुनिया में बहुत बड़ा क्राइम था। इनके अपराधों की तो पूरी लिस्ट तैयार हो सकती है। उन्होंने एक कविता भी लिखी है जो यह है-
‘समर शेष है अभी मनुज भक्षी हुंकार रहे हैं
गांधी का पी रुधिर जवाहर पर फुंकार रहे हैं
समर शेष है, अहंकार इनका हरना बाकी है
वृक को दंतहीन, अहि को निर्विष करना बाकी है
समर शेष है, शपथ धर्म की लाना है वह काल।
विचरें अभय देश में गांधी और जवाहर लाल।
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध।
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध’।
बताइए कितना बड़ा अपराध दिनकर के नाम दर्ज है। हालांकि पूरी कविता से अनजान दक्षिणपंथी भी अक्सर इस कविता की दो लाईनों को अक्सर उद्धृत करते रहते हैं, ‘समय लिखेगा उनके भी अपराध’। कुल मिलाकर ये सब के सब घातक अपराधी हैं। खैर इनको तो फिर भी अनदेखा किया जा सकता है, क्योंकि इनका कुछ आप बिगाड़ नहीं सकते, क्योंकि ये सब दिवंगत हो चुके हैं। लेकिन सबसे ज्यादा खटकने वाली बात यह हो गई कि माननीय के सामने अमेरिकी सीनेट के स्टेनि होयर ने आपका परिचय यह कहकर कराया कि आप गांधी-नेहरू के देश से आए हैं। इसलिए इन अपराधों को रोकने की सख्त जरूरत है, ताकि नेहरू का कोई नामलेवा न रहे।
लखेक- स्वतंत्रता सेनानी/उत्तराधिकारी संगठन मप्र के प्रदेश सचिव हैं।