सबकुछ होते देखकर भले लोग हैं मौन, जहर उगलते सांप का फन कुचलेगा कौन

अशोक सोनी ‘निडर’

हा गया है कि मौन यानी चुप्पी कई समस्याओं से, कई विवादों से बचने की एक अच्छी कला है। लेकिन यही चुप्पी तब न सिर्फ नुकसान दायक बल्कि घातक दुखदाई भी बन जाती है, जब समाज और समाज के ठेकेदार अपने दायित्व को भूलकर चुप हो जाते हैं। विशेषकर महिलाओं के प्रति होने वाले यौन अपराधों के प्रति और न सिर्फ चुप हो जाते हैं, बल्कि सामूहिक बलात्कार पीडि़त नाबालिग बच्चियों, युवतियों एवं वयस्क महिलाओं की मनोदशा और अंतरपीड़ा को समझे बिना समाज के उन भेडिय़ों का न तो स्वयं प्रतिकार करते हैं और न उन पीडि़ताओं को आवाज उठाने देते हैं। और तो और उनके प्रति सकारात्मक सोच के बजाय उल्टा उन्हें ही अपराधी मान कर समाज से वहिष्कृत भी कर दिया जाता है, जिसका दंश वे जीवन भर झेलती हैं।
आज हम आपका परिचय एक ऐसी वीरांगना सुनीता कृष्णन से करवा रहे हैं जो बचपन से ही बैश्यालय में बेच देने वाली बच्चियों, महिलाओं को सुरक्षित निकालने का कार्य कर रही हैं। दुखद पहलू ये हैं कि इसी के चलते मात्र 15 वर्ष की उम्र में सुनीता स्वयं सामूहिक बलात्कार की शिकार हो चुकी है, लेकिन वे रुकी नहीं, झुकी नहीं, उन्होंने चुप रहने के बजाय ऐसे दानवों से लोहा लेने का संकल्प लिया। एक गैर सामाजिक संस्था प्रज्वला की कार्यवाहक सुनीता कृष्णन अभी तक देश के कई शहरों में लगभग 22 हजार अव्यस्क बच्चियों, महिलाओं को नारकीय जिंदगी से छुटकारा दिलाकर उनकी शिक्षा और पुनर्वास में सहयोग कर रही हैं। सुनीता कृष्णन को इस सामाजिक कार्य के लिए मदर टेरेसा और पद्मश्री जैसे पुरुस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। सुनीता निश्चित रूप से उन महिलाओं के लिए प्रेरक हैं जो परिवार व समाज की बेरुखी के चलते ऐसी गहन पीड़ा को सहकर भी चुप रहने के लिए मजबूर हो जाती हैं। जिसके लिए परिवार व समाज को अपनी संकुचित सोच बदलनी चाहिए। अन्यथा यही कहा जा सकता है कि पांचाली के चीरहरण पर जो चुप पाए जाएंगे, इतिहासों के कालखण्ड में वे कायर कहलाएंगे।