भगवान श्रीकृष्ण-सुदामा की मित्रता युगों युगों तक याद की जाएगी : कटारे

भिण्ड, 16 फरवरी। मेहगांव क्षेत्र के जुगे का पुरा गांव में चाल रही श्रीमद भागवत कथा में बुधवार श्रीकृष्ण-सुदामा चरित्र एंव मित्रता का अलोकिक वर्णन किया गया।
कथा व्यास पं. रामअवतार कटारे ने कहा कि मित्रता की लोकिक और पारलोकिक मित्रता की मिशाल संसार में कोई दूसरी प्रतीत नहीं होती। भगवान श्रीकृष्ण और भक्त सुदामा की मित्रता लौकिक ही नहीं पारलौकिक है। भक्त सुदामा और भगवान श्रीकृष्ण गुरु संदीप के आश्रम में क्षात्र जीवन काल में विद्या अध्यन हेतु निवासरत थे, उसी समय की एक बड़ी घटना घटित हुई, किसी गांव में एक बृद्ध महिला गरीबी से तंगहाली जीवन व्यतीत करते हुए अपने भोजन हेतु ग्रीष्मकाल में खेतों से चना बीन कर अपनी कुटिया में रखकर रात में सो गई, रात में चोरों ने उसके चने की पोटली चुरा ली, बुढिय़ा ने सुबह चने की पोटली न होने से श्राप दिया कि जो भी मेरे चने खाएगा वह जीवनमर दरिद्र होकर जीवन यापन करेगा। चोर चने की पोटली लिए हुए गुरू के आश्रम के पास से गुजरते समय सुबह हो गई। गुरूमाता जाग रही थी, उनके द्वारा चोरों को टोका गया, चोर भय वस वह चने की पोटली गुरू आश्रम के पास छोड़कर भाग गए, सुबह लकड़ी लाने जंगल में श्रीकृष्ण सुदामा जाने लगे, गुरु माता ने वहीं चने की पोटली दोनों बालकों को सौंप दी, भक्त सुदामा आत्मज्ञानी होने से उस रहस्य को जान गए और अपने मित्र भगवान श्रीकृष्ण को गरीबी के दंस से बचाने सारे चने स्वयं खाकर मित्रता का अलोकिक उदाहरण दिया, भगवान श्रीकृष्ण मन ही मन विचलित हो उठे और सदा के लिए भक्त सुदामा के ऋणि हो गए। द्वारिकाधीश भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा को अपनी लौकिक और पारलौकिक कृपा से सदा के लिए अभिभूत कर दिया।