धर्म की रक्षा से ही रक्षा होती है : सुशील शास्त्री

भिण्ड, 29 जनवरी। धर्मो रक्षति रक्षिता, धर्म की रक्षा करने से ही रक्षा होती है। धर्म उन्हीं की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करते हैं, भक्त प्रहलाद ने धर्म हेतु अपने माता-पिता, बंधु जनों, सगे संबंधियों का त्याग किया और अंत में अपने पिता का भी उद्धार करवाया। यह बात नगर ग्राम पंचायत मानहड़ में पीपरा वाली माता मन्दिर पर सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन भक्त प्रहलाद के चरित्र का वर्णन करते हुए आचार्य सुशील शास्त्री ने कही।


आचार्यश्री ने जड़ भरत की महत्वपूर्ण कथा का वर्णन किया, उन्होंने कहा कि जड़ भरत जैसा सरल सहज व्यक्ति होना मुश्किल है, जिसने निर्मल भाव से भगवान की भक्ति की और मोक्ष को प्राप्त किया, क्योंकि भगवान को सिर्फ निर्मल मन से ही प्राप्त किया जा सकता है। इस बात पर जोर देते हुए बाबा गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है कि निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा। अथार्थ व्यक्ति यदि भगवान को प्राप्त करना चाहता है तो उसे मोह माया और छल कपट को त्याग देना चाहिए। क्योंकि मन में द्वेष और कपट रखने वाला व्यक्ति कभी भक्ति नहीं कर सकता और जो भक्ति नहीं कर सकता उसे कभी मुक्ति नहीं मिल सकती।
श्रीमद् भागवत कथा में इन्द्रवीर सिंह भदौरिया, रामेन्द्र भदौरिया, प्रदेश अध्यक्ष अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा सत्येन्द्र भदौरिया, जिला पंचायत सदस्य राहुल भदौरिया, प्रतापभान सिंह भदौरिया सहित सैकड़ों भक्तजनों ने कथा का आनंद लिया।