भिण्ड, 24 अक्टूबर। उप संचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास भिण्ड केके पाण्डेय ने बताया कि जिले में फसल अवशेष जलाने की घटनाएं घटित हो रही हैं। मृदा और पर्यावरण स्वास्थ्य के लिए इसकी रोकथाम अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि फसल अवशेष जलाने से मृदा पर प्रतिकूल प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। वर्तमान में रबी और खरीफ फसल की कटाई के बाद फसल अवशेष को जलाना आम और चिंताजनक प्रथा है, जिसका उत्पादन और पर्यावरण दोनों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
फसल अवशेष जलाने से मृदा पोषक तत्वों का नुकसान होता है। मिट्टी के पोषक तत्वों के नुकसान के अलावा, मिट्टी के कुछ गुण जैसे मिट्टी का तापमान, पीएच, नमी, उपलब्ध फास्फोरस और मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ भी नरवाई को जलाने से प्रभावित होते हैं। वायु प्रदुषण होता है, जिससे एक टन धान की पराली जलाने से 11 किलो पर्टिकुलेट मैअर (पीएम), 58 किलो कार्बनमोनो ऑक्साइड, 1400 किलो कार्बन डाई आक्साइड, 199 किलो राख और 1.2 किलो सल्फर डाई ऑसाइड उत्सर्जित होती है, जो वायु की गुणवत्ता में गिरावट लाती है तथा मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है, जैसे नेत्र और त्वचा रोगों में वृद्धि, सूक्ष्मकण दीर्घकालीन हृदय और फेफड़ों के रोगों को बढ़ाने के कारक हैं।
फसल अवशेष पराली अगली फसल की बुबाई हेतु समय बचाने और खेत को शीघ्र खाली करने तथा लागत और श्रम को कम करने के उद्देश्य से जलाया जाता है। फसल अवशेषों के उचित प्रबंधन और उपयोग के आधुनिक तरीकों की जानकारी तथा कृषि यंत्र जैसे हैप्पी सीडर/ सुपर सीडर की कमी होने के कारण भी पराली जलाई जाती है। फसल अवशेष (पराली) प्रबंधन कर किसान भाई मृदा में कार्बनिक पदार्थ में वृद्धि, फसल की उत्पादकता में वृद्धि तथा फसल लागत कम कर कृषकों की आय में वृद्धि कर सकते हैं। इसके साथ ही किसान भाई हैप्पी सीडर/ सुपर सीडर/ स्मार्ट सीडर का उपयोग कर फसल कटाई उपरांत बिना खेत तैयार किए अग्रिम फसल की बोनी सीधे कर सकते हैं। इसके साथ ही किसान भाई अतिरिक्त आय के विकल्प बढ़ाकर वायु प्रदूषण भी कम कर सकते हैं। किसान भाई बायो डिकम्पोजर से धान की फसल अवशेष पर छिड़काव ट्रैक्टर/ ड्रोन के माध्यम से करने पर फसल अवशेष को तेजी से गलाने में कर सकते हैं।







