माननीय न्यायाधीश महोदय,
न्यायालय के गौरव का सम्मान करते हुए भारत का एक सामाजिक नागरिक होने के नाते विनम्र भाव से निवेदन है कि किसी भी प्रकरण में पक्ष विपक्ष की वे बुनियाद दलीलों झूठे गवाहों सबूतों के कारण न्याय में देरी होना भी निश्चित रूप से फरियादी के साथ अन्याय है। इसमें न्यायालय का वक्त तो बर्बाद होता ही है, वादी-प्रतिवादी भी आर्थिक एवं मानसिक रूप से परेशान एवं कुंठित हो जाते हैं। केसों में अनावश्यक बिलंब होने से साक्ष्य एवं साक्षी भी प्रभावित होते हैं जिसका लाभ भी अधिकांशत: आरोपियों को ही मिलता है। न्याय की आसंदी पर विराजमान सम्मानित न्यायाधीश जो निश्चित रूप से ईश्वर के ही दूसरे रूप में देखे व पूजे जाते हैं। जनता भी न्याय पालिका पर ही सबसे ज्यादा भरोसा करती है। न्यायप्रिय न्यायाधीश महोदय यदि दृढ़ संकल्पित हों तो न्याय के दायरे में रहकर प्रकरण की गंभीरता के अनुरूप एक निश्चित समय सीमा में निराकरण कर सकते हैं। न्यायालय द्वारा निश्चित समय सीमा में किसी भी पक्ष द्वारा अपने हक में उपर्युक्त तथ्य प्रस्तुत न करने पर एक पक्षीय निर्णय देकर प्रकरण समाप्त करके न्यायालय का अमूल्य समय और फाइलों के लगते अंबार को बचाया जा सकता है। संविधान में एक वाक्य है कि चाहे सौ दोषी छूट जाएं लेकिन एक निर्दोष को सजा ना हो। लेकिन मामूली केसों में भी न्याय की आस में वर्षों तक सजा काटने वाले निर्दोषों की पीड़ा को सिर्फ और सिर्फ अनुभव किया जा सकता है। सबसे दु:खद पहलू ये है कि कानून के पहरेदार कहे जाने वाले हमारे काबिल वकील दोस्त चंद सिक्कों की खातिर अपनी अंतरात्मा का सौदा करके सच को झूठ और झूठ को सच बनाकर प्रकरण को लंबा खींचकर न्यायालय को गुमराह करके न्याय को प्रभावित करते हैं।
देश के समस्त सम्माननीय न्यायाधीशों से विनम्र प्रार्थना है कि स्व विवेक से निर्णय लेकर कम से कम समय में न्याय प्रदान कर जनता के विश्वास और न्यायालय की प्रतिष्ठा को गौरवान्वित करके मेरे मनोभावों को संबल और विश्वास प्रदान करें।
जयहिंद वंदे मातरम
निवेदक
अशोक सोनी निडर
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार, फूप, जिला भिण्ड (मप्र)