नवसंत्वसर पर विशेष : हिन्दू को सबसे पहले अपनी ही जड़ों में मजबूत करना होगा

– अशोक सोनी ‘निडर’


भारतीय मान्यता के अनुसार चैत्र प्रतिपदा से शक संवत 2079-2080 नववर्ष प्रारंभ हो रहा है, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति के गुलाम होकर हिन्दी और हिन्दू पर्वों को कितना महत्व व सम्मान दे रहे हैं ये विचारणीय विषय है।
हिन्दी-हिन्दी या हिन्दू-हिन्दू अलापने वाले धर्म के ठेकेदार चिंता तो करते हैं, लेकिन चिंतन नहीं करते। न तो हिन्दी पराधीन है और न ही उसे गैरों के रहमोकरम की आवश्यकता है, उसे तो अपने 60 करोड़ हिन्दी भाषी बेटे-बेटियों से इतना सा प्रण लेना है कि उनकी भाषा तिरस्कार की नहीं स्वाभिमान की हकदार है। और जिस दिन ये करोड़ों हाथ हिन्दी का तिलक करने उठेंगे तो संयुक्त राष्ट्र संघ तो क्या पूरे विश्व में हिन्दी की विजय पताका गूंजेगी। लेकिन चिंता की बात तो ये है कि संविधान में राज्यभाषा का दर्जा होने के बावजूद हिन्दी को अपनों के बीच हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह, हिन्दी पखवाड़े की अपमान जनक वेदनाओं से गुजरना पड़ता है। अतीत से वर्तमान तक शायद ही किसी मुल्क की अपनी मातृभाषा को इतने कड़े इम्तिहान से गुजरना पड़ा हो। हमने कभी नहीं सुना कि चीन में चीनी दिवस, इंग्लैंड में अंग्रेजी दिवस, जर्मनी में जर्मन दिवस मनाया गया हो पर हिन्दुस्तान में हर साल हिन्दी दिवस मनाया जाता है, शायद इसलिए कि कहीं हमारे हिन्दुस्तानी अंग्रेज हिन्दी को भूल न जाएं। गोरे अंग्रेजों की विदाई के 75 साल बाद भी इस देश में ऐसे काले अंग्रेजों की फौज बढ़ती जा रही है जो हर स्वदेशी समस्या का विदेशी समाधान ढूंढते हैं। हम हिन्दी की वकालत तो करते हैं, लेकिन अपने बच्चों को अंग्रेजी कॉन्वेंट में पढ़ाना गौरव की बात समझते हैं। किसी दूसरी भाषा का ज्ञान होना लज्जा की नहीं गर्व की बात है। विरोध अंग्रेजी का नहीं, अंग्रेजियत का है। आज हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम लोग हिन्दी की बात तो करते हैं पर हिन्दी में नहीं करते। आज हमें यह प्रण लेना है कि सार्वजनिक जीवन में यथासंभव हिन्दी का ही प्रयोग करेंगे और इस पर गर्व करेंगे। वैज्ञानिकता या भाषा विज्ञान की किसी भी कसौटी पर कसा जाए तो हिन्दी सौ फीसदी खरी उतरती है, जितने वर्ण हैं उतनी ध्वनियां हैं, जैसी लिखी जाती है, वैसी पढ़ी जाती है। हिन्दी को वैश्विक भाषा बनाकर पूरे विश्व में फैलाना निश्चय ही हर भारतीय के लिए गौरव की बात होगी, लेकिन हिन्दू को सबसे पहले अपनी ही जड़ों में मजबूत करना होगा।

सभी देशवासियों को हिन्दी नववर्ष की बहुत-बहुत बधाई।

लेखेक : राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार लखनऊ के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी/ उत्तराधिकारी संगठन भोपाल के राष्ट्रीय सचिव हैं।