– राष्ट्रकवि गुप्त जयंती की पूर्व संध्या पर कवि सम्मान समारोह आयोजित
– 20 कवि एवं कवियित्री को मिला राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त सम्मान
ग्वालियर, 03 अगस्त। एसोसिएशन ऑफ ग्वालियर यूथ सोसाइटी द्वारा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जयंती के अवसर पर 7 दिवसीय साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं रचनात्मक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसी श्रृंखला में राष्ट्रकवि जयंती की पूर्व संध्या पर शनिवार को स्थानीय दीनदयाल सिटी मॉल फूड कोर्ट थर्ड फ्लोर पर कविगण एवं कवियित्रियों का सम्मान समारोह आयोजित किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि संत कृपाल सिंह महाराज एवं विशिष्ट अतिथि पूर्व विधायक भांडेर धनश्याम पिरोनिया उपस्थित थे। अध्यक्षता संजय कट्ठल ने की। अतिथियों का स्वागत मुख्य संयोजक डॉ. शिखा कट्ठल ने एवं संचालन डॉ. राकेश अग्रवाल ने किया।
इस अवसर पर संत कृपाल सिंह महाराज ने कहा कि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त इस भारत वर्ष में अपनी कविताओं के माध्यम से जाने जाते थे। वे साहित्यकार के साथ-साथ राजनितिज्ञ भी थे, उन्हें बहुत अवसर मिले लेकिन उन्होंने केवल साहित्यिक ही चुना और आज उन्हें हम सब याद कर रहे हैं। उनकी कविता गुन गुना रहे हैं।
कार्यक्रम में शहर के कवि एवं कवियित्री को राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से नवाजा गया। जिसमें डॉ. मधुलिका सिंह शीरी, रविन्द्र रवि, रविन्द्र नाथ मिश्रा, दीप ज्योति गुप्ता, डीके सक्सेना दीप दर्शन, आशी प्रतिभा दुबे, अंजली चौरसिया, हेमंत विशाल, आकाश अर्चित, डॉ. ज्योत्स्ना सिंह राजावत, डॉ. प्रतिभा शर्मा, कवयित्री शिवानी पाल, डॉ. रीना भार्गव, पलक सिकरवार, आठ साल की बाल कवि इतिक्षा सिंह को सम्मानित किया गया। इस अवसर संस्था के संरक्षक सुरेश गुप्ता दादा, आयोजन समिति के डॉ. मनीष रस्तोगी, धीरज गोयल, विशाल जैन, अशोक जैन, मनोज कुचिया, राजेश त्रिपाठी उपस्थित रहे।
कवियों ने किया कविता पाठ
इस अवसर पर अपनी कविताओं के माध्यम से राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को याद किया। बानगी देखिए-
उम्मीद की आस पर थोडी सी श्वांस बचाकर रखना,
मिलन के उस पल में विश्वास बचाकर रखना,
निभाना जी भरकर रिश्ता तुम अपना सबसे,
बस मेरे लिए अपना अहसास बचाकर रखना।।
डॉ. ज्योत्स्ना सिंह राजावत
प्रेम जिनकी लेखनी का सार है
राष्ट्रहित जिनके हृदय का हार है
‘गुप्त’ जैसे भारती के पुत्र को
हम सभी का नमन बारंबार है
रवीन्द्र रवि
मन मेरा गुलाब सा महका
तन मयूर सा थिरका नाचा
गरज गरज घिर आए बादल सारी रात नीद भरमाई।
नजर मिली मेरी जब उनसे छुई मुई सी मैं शरमाई
जब भी घिरे गगन मे बादल तेरी याद बहुत तब आई।
डॉ. मधुलिका सिंह ‘शीरी’
तुम किन्हीं न मिले दर्द बढता रहा
याद मे तेरी गीतों को गढता रहा
हमने सीमाए लांघी नहीं प्यार की
अश्क बहते रहे उनको पढता रहा।
डॉ. रवीन्द्र नाथ मिश्र
ये चंचल मन कहे कविता
अनुभूति हो रही नव सृजन की
निश दिन शब्द श्रंगार करे रचना
अलंकृत है मन के भाव भी यहां
मन के द्वार खोल रही, हां कविता
आशी प्रतिभा
रिश्ते नाते झूठे सारे, सब दौलत के प्यासे हैं
उछल रहे हर तरफ यहां, पर बस शकुनि के पासे हैं
दीप ज्योति गुप्ता
कोमल कली कुसुम अब तुझको रण कौशल चुनना होगा
महिषासुर मर्दिनी, रक्त पिपासू, रण चण्डी बनना होगा
जाने कितने दैत्य मिलेंगे तुझे देव के चोले में
चुन-चुनकर इन दुष्टों का तुझको ही मर्दन करना होगा।
पलक सिकरवार
पर्वत-पर्वत कंकड-कंकड धूल बनाना है
सारे प्रतिकूलों को अब अनुकूल बनाना है
हंसते-हंसते निज पथ नित चलते जाना है
मुझको पथ के काटों को भी फूल बनाना है
विकास बघेल
आलस ही मेरा काम है
आलसी नहीं हूं, बस जीता हूं
काम करते देख सबको, चैन की नींद सोता हूं
आलसी नहीं हूं, बस जीता हूं।
शिवानी पाल
हे भारत के राम जगो, मैं तुम्हें जगाने आया हूं
सौ धर्मों का धर्म एक बलिदान बताने आया हूं
इतिक्षा सिंह