औरंगजेब का उद्देश्य शिवाजी महाराज के विचारों को मिटाना : मुदगल

भिण्ड, 03 अप्रैल। भारत तिब्बत सहयोग मंच के युवा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष अर्पित मुदगल ने हाल ही में औरंगजेब की कब्र को लेकर उठे विवाद पर अपनी राय व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि फिल्म देखकर जागने वाले हिन्दू किसी काम के नहीं हैं। यह बयान उन्होंने देश की संसद में वक्फ बिल पेश होने के दौरान दिया। उनका यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि इतिहास और सांस्कृतिक पहचान को केवल फिल्मों के माध्यम से समझना अपर्याप्त है।
युवा अध्यक्ष अर्पित मुदगल ने कहा कि वर्तमान में लोग वास्तविक मुद्दों से भटक गए हैं। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि लोग जंगलों, पानी और देश के विकास के अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों की बजाय औरंगजेब की कब्र पर चर्चा कर रहे हैं। यह उनके लिए एक बडा सवाल है कि क्यों आज के समय में ऐसे मुद्दे महत्वपूर्ण बन गए हैं, जबकि समाज में कई अन्य समस्याएं मौजूद हैं। उनका तर्क है कि इतिहास को जाति और धर्म के चश्मे से नहीं देखना चाहिए। मुदगल ने लोगों से आग्रह किया कि वे व्हाट्सएप पर आने वाले संदेशों पर निर्भर न रहें, बल्कि वास्तविक ज्ञान के लिए किताबें पढें। उनका मानना है कि इतिहास का अध्ययन विश्वसनीय स्त्रोतों से किया जाना चाहिए, न कि सोशल मीडिया पर फैलाए गए भ्रामक संदेशों से।
मुदगल ने यह भी कहा कि मुगल सम्राट औरंगजेब का उद्देश्य शिवाजी महाराज के विचारों को मिटाना था, लेकिन वह असफल रहा। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि शिवाजी महाराज की विरासत को कुचलने के प्रयासों के बावजूद, औरंगजेब अंतत: महाराष्ट्र में अपनी मृत्यु को प्राप्त हुआ। उन्होंने सुझाव दिया कि औरंगजेब की कब्र पर एक बोर्ड लगाया जाना चाहिए, जिस पर लिखा हो हमने इस राजा को मारा, ताकि लोग इतिहास को सही संदर्भ में समझ सकें। उनका यह बयान ऐतिहासिक घटनाओं को सांप्रदायिक विभाजन से दूर रखने का एक प्रयास है। उन्होंने फिल्म ‘छावा’ का उदाहरण देते हुए कहा कि क्या लोग केवल फिल्म देखकर ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के बारे में जान सकते हैं? उनका कहना था कि वास्तविकता यह है कि हमें अपने इतिहास को गहराई से समझने की आवश्यकता है, न कि केवल मनोरंजन के माध्यम से।
अंत में युवा नेता अर्पित मुदगल ने धार्मिक और जाति आधारित राजनीति की आलोचना करते हुए कहा कि भारत की प्रगति केवल धर्म पर निर्भर नहीं हो सकती। उन्होंने तुर्की का उदाहरण दिया, जो खुद को सुधारने में सफल रहा है। उनका संदेश स्पष्ट है, धर्म केवल व्यक्तिगत जीवन तक सीमित होना चाहिए, न कि राजनीतिक विमर्श का हिस्सा।