जहां यज्ञादि कर्म होते हैं वहां अन्न की उत्पत्ति अच्छी होती: शंकराचार्य जी

अमन आश्रम परा में चल रहा है श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन

भिण्ड, 08 अक्टूबर। अमन आश्रम परा में श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के अंतर्गत काशीधर्म पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज ने कहा कि अन्न से ही संपूर्ण प्राणी जीवित रहते हैं और अन्न कैसे पैदा होता है वर्षा से और वर्षा यज्ञ से होती है, ऐसा शास्त्रों में वर्णन मिलता है। शिष्यों को चाहिए कि वो पुरुषार्थ कर ज्ञान की प्राप्ति करे, जहां पर यज्ञादि कर्म होते हैं वहां अन्न की उत्पत्ति अच्छी होती है, इसलिए यज्ञ आदि कर्म करते रहना चाहिए। हमारे पूर्वजों ने अन्न की उत्पत्ति के लिए बड़े-बड़े बांध और तालाब के माध्यम से जल को संरक्षित किया।
शंकराचार्य जी ने कहा कि वेदों के विद्वान ब्राह्मण किसी को कठोर वचन आदि क्यों न कहता हो फिर भी ब्राह्मण पूज्यनीय है, मानव जीवन का परमलक्ष्य परमतत्व को प्राप्त कर आनंद में स्थित हो जाना। हरि व्यापक है और समानरूप में स्थित है, उन्हें कहीं अन्यत्र खोजने की आवश्यकता नहीं है, सभी को भगवान की प्राप्ति करने के लिए भागवत रस का पान करना चाहिए। ऊंच और नीच प्रकृति का नियम है, आत्मा नहीं बदलती कर्म बदलते रहते है। सत्व, रज और तम इन तीनों गुणों से ऊपर भागवत धर्म है।

आरती करते हुए श्रृद्धालुजन

महाराजश्री ने कहा कि हमारे ऋषि महर्षियों और पूर्वजों ने जो ज्ञान अर्जन है, ऐसे ज्ञान को सभी में प्रवाहित करने की आवश्यकता है, जो हमें पूर्वजों की परम्परा है उसका परित्याग कभी नहीं करना है। इस संसार में जितने भी प्राणी हैं उन सभी का निर्वाह इन्हीं पृथ्वी माता की अनुकंपा से हो रहा है ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ सभी सुखी रहें और सभी निरोगी रहें, भगवतधर्म केवल मनुष्यों के लिए नहीं, संपूर्ण जीवधारियों के लिए है। भगवान कहते हैं कि सभी प्राणी मुझे प्रिय हैं, उनमें भी जो संस्कार युक्त हैं वो मुझे प्रिय है तथा जो ब्राह्मण श्रुतियों को धारण करने वाले वेदज्ञ हैं, वो मुझे अधिक प्रिय हैं और उनमें भी जो विरक्त संत है वो मुझे अत्यंत प्रिय हैं। वेद व्यास जी ने संपूर्ण वेद शस्त्रों का सारतत्व श्रीमद् भागवत में रख दिया, जीवन धारण करने के लिए जिस वस्तु की आवश्यकता हमें है उन सभी की आवश्यक्ता सभी को है, इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वो दान करे अपने लिए तो सभी जीते हैं दूसरों के हित और कल्याण के लिए जो कार्य करते हैं वही जीवन को सही प्रकार से जी रहे हैं, ‘परहित सरिस धर्म नहि भाई’ शस्त्रों में दान की महिमा बताते हुए कहते हैं कि मनुष्य को सौ हाथों से धन का अर्जन करना चाहिए और हजारों हाथों से दान भी करना चाहिए सुपात्र व्यक्ति को ही दान करना चाहिए ईश्वर की प्रसन्नता के लिए दान कर्म करना चाहिए और ऐसा विचार होना चाहिए कि ईश्वर की संपत्ति दान के रूप में ईश्वर को ही अर्पण कर रहे हैं। ईश्वर सभी की आत्मा हैं, वो सभी में स्थित हैं।
स्वामी जी ने कहा कि चारों वर्ण और देवता विद्यादान में स्थित रहते हैं, गौ दान सर्वोत्कृष्ट दान है और गौ सभी भूत प्राणियों की माता है तथा संपूर्ण मंगल की दाता है। जितने में जीवन का रक्षण हो जाए उतने का ही संग्रह करना चाहिए और अन्य धन का प्रयोग देश/ राष्ट्र उन्नति में लगाना चाहिए। कार्यक्रम से पूर्व पदुका पूजन आचार्य वरुणेश चन्द्र दीक्षित ने सविधि संपन्न करवाया। जिसमें क्षेत्रांचल के गणमान्यों ने पूजन अर्चन कर महाराजश्री का आशीर्वाद प्राप्त किया।