शहीदों का सम्मान

अशोक सोनी ‘निडर’


पढऩे से पहले धीरे से अपनी आंखें बंद करें, मुस्कुराएं और इस आजादी के वातावरण में एक गहरी सांस लें, महसूस करें इस आजादी को और पढऩा जारी रखें।

सुधा नारायण मूर्ति अपना अनुभव बांटते हुए लिखती हैं- हाल ही में मैं मास्को, रूस में थी। वहां पर एक दिन मैं पार्क में गई, उस दिन रविवार था। वहां गर्मी का मौसम था, परंतु उस दिन बूंदाबांदी और ठण्ड थी। मैं एक छतरी के नीचे खड़ी थी और उस जगह की सुंदरता का आनंद ले रही थी। तभी अचानक, मेरी नजर एक युवा जोड़े पर पड़ी। उनको देख के यह स्पष्ट लग रहा था कि उन्होंने अभी-अभी शादी की है। वह लडक़ी करीबन बीस साल की लग रही थी। वह अपने बहुत ही सुंदर घने बाल, अपनी चमकीली नीली आंखों और अपनी सुडोल और पतले शरीर की वजह से बहुत सुंदर दिख रही थी। लडक़ा भी दिखने में लगभग उसी की ही उम्र का लग रहा था और वह बहुत सुंदर सैन्य वर्दी में था। वह लडक़ी सुंदर सफेद साटन का गाउन पहने हुई थी, जिसे मोतियों और सुंदर लेस से सजाया गया था। शादी के गाउन के हेम को पकड़े हुए उसके पीछे दो युवा खड़े थे, ताकि वह गंदा न हो जाए। वह लडक़ा अपने सिर पर छाता लिए हुए था, ताकि वे भीग न जाएं। और लडक़ी एक गुलदस्ता पकड़े हुए थी और दोनों अपनी बाहों को जोड़े हुए खड़े थे। वह नजारा बहुत ही सुंदर था। मुझे उनको देखकर बहुत ही आश्चर्य हुआ कि वे शादी के तुरंत बाद इस बारिश में यहां इस पार्क में क्यों आए थे? वह चाहते तो एक खुशहाल जगह पर जा सकते थे, मैंने देखा कि वह स्मारक के पास उठे हुए मंच पर एक साथ चल रहे थे और उन्होंने गुलदस्ता रखा, मौन में अपना सिर झुकाया और धीरे-धीरे वापस चले गए।बहुत देर से मैं इस नजारे का आनंद उठा रही थी। परंतु मेरे मन में उसके साथ ही यह जानने की उत्सुकता थी कि क्या हो रहा है? मेरी नजर एक बुजुर्ग आदमी पर पड़ी, जो उस नवविवाहित जोड़े के साथ खड़े थे। उन बुजुर्ग आदमी की नजर मेरी साड़ी पर पड़ते ही, वह पूछ उठे, ‘क्या आप एक भारतीय हैं?’ मैंने बड़े प्यार से उत्तर दिया, ‘हां मैं एक भारतीय हूं।’ इस तरह हमारे बीच बहुत ही सौहार्दपूर्ण ढंग से बातचीत होने लगी। इस बीच, मैं कुछ प्रश्न पूछने का इंतजार कर रही थी, इसलिए मैंने पूछ ही लिया, ‘कृपया मुझे बताएं कि वह युवा जोड़ा अपनी शादी के दिन युद्ध स्मारक क्यों गया था?’ यह सुनकर वह बोले कि ‘यह रूस का रिवाज है और यहां पर शादी अक्सर शनिवार या रविवार को ही होती है’। आगे बताते हुए वह कहने लगे, ‘मौसम की परवाह किए बिना, यहां पर हर विवाह कार्यालय में रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने के बाद, विवाहित जोड़ों को आसपास के महत्वपूर्ण राष्ट्रीय स्मारकों का दौरा करना पड़ता है।’ ‘इस देश के हर लडक़े को सेना में कम से कम दो साल तक सेवा करनी होती है और उसे शादी के लिए अपनी सेवा वर्दी पहननी होती है।’ यह सब सुनकर बड़े ही आश्चर्य के साथ मैंने उनसे पूछा, ‘यहां ऐसा रिवाज क्यों है?’ यह सुनते ही वह बोल उठे कि, ‘यह कृतज्ञता का प्रतीक है। और हमारे पूर्वजों ने रूस द्वारा लड़े गए विभिन्न युद्धों में अपना जीवन दिया है। उनमें से कुछ जीते, तो कुछ हारे, लेकिन उनका बलिदान हमेशा देश के लिए था। इसीलिए हर नवविवाहित जोड़े को याद रखना चाहिए कि वे अपने पूर्वजों के बलिदान के कारण एक शांतिपूर्ण, स्वतंत्र रूस में रह रहे हैं। इसीलिए उन्हें उनका आशीर्वाद मांगना ही चाहिए।’ ‘हम बुजुर्ग यह मानते हैं कि देश के लिए प्यार, किसी भी शादी समारोहों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसीलिए हम इस परंपरा को जारी रखने पर जोर देते हैं, चाहे वह मॉस्को, सेंट पीटर्सबर्ग या रूस के किसी अन्य हिस्से में हो। इस वजह से शादी के दिन उन्हें निकटतम युद्ध स्मारक जाना होता है।’ वहां पर उन बुजुर्ग व्यक्ति से बातचीत करने के बाद मेरी अंतरात्मा में बार-बार एक ही बात चल रही थी कि हम यहां अपने बच्चों को क्या पढ़ाते हैं। क्या हम सभी के पास अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण दिन पर अपने शहीदों को जिन्होंने अपना जीवन देकर हमको आजादी का वातावरण दिया, उनको याद करने का शिष्टाचार है? शायद हम इस बात पर कभी विचार भी नहीं करते। इस सारे वाक्या के दौरान मेरी आंखें आंसुओं से भर गईं, मैं भी चाहती थी कि हम इस महान विचार और रीति-रिवाज में रूसियों से एक सबक सीख सकें। हम भी अपने उन शहीदों का सम्मान कर सकें जिन्होंने अपने देश के लिए और हमारे आज और कल के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। जब कोई नेक काम किया जाए तो उससे मिलने वाली खुशी औरों में बांटें। तब चेतना अबाध रूप से बढ़ेगी।

लेखक – राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार उप्र के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी/ उत्तराधिकारी संगठन मप्र के प्रदेश सचिव हैं।