– अशोक सोनी निडर
मैं दुर्गा हूं कमजोर नहीं, मुझ पर रस्मों का जोर नहीं।
मेरे सपनों को बांध सके, ऐसी दुनिया में डोर नहीं।।
कोमल हूं कन्या पूजन में, चण्डी हूं दुष्टों से रण में।
जब ठान लिया तो मिला दिया, धरती को अम्बर से क्षण में।।
मेरे सपनों का देश अलग, मेरा खुद का परिवेश अलग।
सारी दुनिया की बात अलग, मेरे मन का संदेश अलग।।
कुछ भी सुनकर चुप रह जाऊं, ऐसा अब होगा और नहीं।
हर पल कोमल भी नहीं मगर, हर पल को बहुत कठोर नहीं।।
आंखों में सपना पलता है, दिल हिरण चौकड़ी भरता है।
कदमों में बिजली सी तेज़ी, मन में बेहद चंचलता है।।
मैं दौड़ जिसे छू नहीं सकूं, ऐसा तो कोई छोर नहीं।
मुश्किल की कोई भी आंधी, मुझको सकती झकझोर नहीं।।
अर्पण की घड़ी अगर आई, अपना सर्वस्व लुटा दूंगी।
धोखे से छलना चाहोगे भारी विध्वंस मचा दूंगी।।