दीवारों के कान हैं गुरू

– राकेश अचल

दीवारों के कान हैं गुरू
दीवारें भगवान हैं गुरु
बिल्कुल हम जैसी लगती हैं
दीवारें इनसान हैं गुरु

भीडभाड में अलग थलग सी
दीवारें पहचान हैं गुरु
आंगन में भी खडी हो गईं
दीवारें शैतान हैं गुरु

कभी कभी ऐसा लगता है
दीवारें वरदान हैं गुरु
घर का पर्दा हैं दीवारें
दीवारें नादान हैं गुरु

कौन गिराएगा दीवारें
दीवारें ही शान हैं गुरु
नजरबंद हैं दीवारों में