कब और कहां नजर आएगी सिंदूरी स्पिरिट?

– राकेश अचल


प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने पिछले दिनों सदन में कहा था कि ये देश अब सिंदूरी स्पिरिट से चलेगा, लेकिन ये सिंदूरी स्पिरिट अभी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। मोदीजी और उनकी टीम के लिए सबसे बडी चुनौती देश में सिंदूरी स्पिरिट का संचार करने की है।
भारत देश हमेशा एक ही स्पिरिट से आगे बढा है और वो स्पिरिट थी भाईचारे की स्पिरिट। सर्व-धर्म समभाव की स्पिरिट। लेकिन 2014 के बाद मौजूदा सरकार ने नेहरू युग की इस स्पिरिट को तिलांजलि दे दी। देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू को योजनाबद्ध तरीके से खलनायक बनाने का अभियान चलाया किंतु कोई कामयाबी नहीं मिली। उल्टे नेहरू का भूत प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा के सामान्य कार्यकर्ता के सिर चढकर बोलने लगा। भाजपा और संघ ने मिलकर नेहरू की तस्वीर यानि छवि पर सिंदूर पोतने की कोशिश की लेकिन नेहरू की छवि धूमिल होने के बजाय और चमकदार हो गई।
मोदी जी सिंदूर स्पिरिट के साथ दुनिया के जिस देश में भी गए वहां उन्हें नेहरू जी मुस्कराते हुए मिले। मोदीजी को चाहे, अनचाहे नेहरु जी को न सिर्फ माल्यार्पण करना पडा बल्कि शीश भी झुकाना पडा। भाजपा का सिंदूर बेअसर निकला। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी मोदीजी द्वारा संसद में नेहरू को जी भरकर कोसा गया, किंतु नेहरू जी का कुछ नहीं बिगडा। जो नुक्सान हुआ वो भाजपा का हुआ। मुश्किल ये है कि भाजपा इस हकीकत को समझने के लिए तैयार नहीं है।
भाजपा के नेता दोनों हाथों में तलवारें हैं लेकिन वे चल नहीं रहीं। भाजपा शासन में नेहरू ही नेहरू छाए हुए हैं। नेहरू से बचने की कोशिश जितनी तेज हुई है उतने ही आवेग से नेहरू पलटकर आ रहे हैं। बीती रात एक दृष्टिहीन भक्त ने कहा कि ये नेहरू हमें चैन से नहीं जीने दे रहे, हम इनकी प्रतिमा तोड देंगे। मैंने उन्हें जब उन्हें नेहरू का प्रतिमा स्थल बताया तो वे पलायन कर गए।
बात सिंदूरी स्पिरिट की है। ये स्पिरिट कैसे पैदा होती है ये मोदी जी के अलावा और कोई नहीं जानता। ऑपरेशन सिंदूर के बाद घर-घर सिंदूर बांटने की योजना फ्लाप होने के बाद सिंदूरी स्पिरिट का जुमला तो उछाल दिया गया, लेकिन इसके लिए करना क्या पडेगा ये किसी को पता नहीं है, इसलिए फिलहाल घर-घर तिरंगा पहुंचाकर सिंदूरी स्पिरिट पैदा करने की कोशिश की जा रही है। कहते हैं कि एक बार सिंदूरी स्पिरिट पवनसुत हनुमान में पैदा हुई थी, सीता माता की मांग में सिंदूर देखकर। मां सीता से हनुमान ने मांग में सिंदूर लगाने की वजह पूछी थी। सीता जी ने बताया कि सिंदूर रामजी के नाम का है और इसे देखकर वे खुश होते हैं। बाद में रामजी को खुश करने के लिए पवनसुत ने अपनी देह पर सिंदूरी चोला चढा लिया था। मोदी जी की सिंदूरी स्पिरिट के पीछे शायद यही अवधारणा है।
हमारा मानना है कि देश आगे बढना चाहिए, फिर चाहे स्पिरिट सिंदूरी हो, बैगनी हो, हरी हो, लाल हो या पीली हो। किंतु मुश्किल ये है कि मोदी जी सिंदूरी रंग पर अटक गए हैं। वे सिंदूर को छोडना ही नहीं चाहते, प्राण जाएं पर वचन न जाई की तर्ज पर। मोदी का संकल्प है कि प्राण जाएं पर सिंदूर न जाई। हमें भी सिंदूर से, ऑपरेशन सिंदूर से कोई आपत्ति नहीं है। हम तो हर कदम पर मोदी जी के साथ हैं। पूरा देश उनके साथ है। विपक्ष ने भी ऑपरेशन सिंदूर पर मोदी जी का साथ दिया था, किंतु मोदी जी ही इस साथ को स्थायित्व प्रदान नहीं कर सके।
जिस सिंदूर के कारण देश एक हुआ था उसी सिंदूर के कारण एकता बिखरती दिखाई दे रही है। भाजपा और मोदी जी सत्ता की देवी को अखण्ड सौभाग्य देने के लिए उसकी मांग में टनों सिंदूर भर देना चाहते हैं। उनका ये प्रयोग सफल होता इससे पहले ही जगदीप धनकड साहब इस्तीफा देकर सुर्खियां बटोर ले गए। अब सुर्खियों में एसआईआर और राहुल गांधी हैं, डोनाल्ड ट्रंप हैं, लेकिन सिंदूर और सिंदूरी स्पिरिट को जगह नहीं मिल पा रही है।