सुप्रीम लोग, सुप्रीम बातें

@ राकेश अचल


म आदमी का इस बात से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट किसे सुप्रीम सुरक्षा देने के लिए कहे या न कहे| हमें भी इस मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन अच्छा लगता है की जब आप देश में पैसे देकर सरकार से जेड प्लस सुरक्षा हासिल कर सकते हैं| देश के अग्रणीय कारोबारी मुकेश अम्बानी को ऐसा करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट ने दिया है|अम्बानी खुद और अपने परिवार के लिए देश और देश के बाहर जेड प्लस सुरक्षा हासिल कर सकते हैं|खर्च उन्हें ही उठाना पड़ेगा|
सुप्रीम कोर्ट का ये निर्देश व्यापक संदर्भों में भी काम आये तो बात बने|सरकार अभी भी अम्बानी के अलावा देश के उन तमाम लोगों को मुफ्त में सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराती है, जिनसे की सुरक्षा का खर्च वसूल किया जाना चाहिए|लेकिन ये सरकार का विवेक होता है की वो किसे मुफ्त सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराये और किस्से पैसा वसूल करे? सांसद राहुल गांधी और उनके परिजनों को भी ऐसी ही सुरक्षा व्यवस्था मिली है, लेकिन इसमें जब चाहे कतर-ब्यौंत कर दी जाती है|शायद सरकार की नजर में अम्बानी के मुकाबले राहुल गांधी कम महत्वपूर्ण हैं|
मै तो कहता हूँ कि सुरक्षा व्यवस्था के लिए हर उस आदमी से पैसा वसूल किया जाना चाहिए जो की आयकरदाता है और पैसा देने में समर्थ है|आज देश में सुरक्षा व्यवस्था स्टेटस सिंबल बन चुकी है|यदि आपने आगे-पीछे सुरक्षा कर्मी बंदूकें तानकर नहीं चलते तो आपको नेता कौन मानेगा ? बहन मायावती से लेकर नेता जी मुलायम सिंह तक को ये शौक था|कांग्रेस के जमाने में शुरू हुआ ये रोग अब चरम पर है|हमारे शहर में एक स्वयंभू नेता हर समय एक सरकारी गनर लेकर घर से निकलते हैं|
बहुत बड़ी विसंगति है की इस देश में जो जितना असुरक्षित और सुरक्षा घेरे में उसे उतना महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है और जिसके इर्दगिर्द सुरक्षा घेरा नहीं है उसकी कोई हैसियत नहीं है|इस मामले में हमारी एक इंजन की सरकार हो या दो इंजिन की सरकार, बड़ी उदार है.सत्तापक्ष के साथ विपक्ष के लोगों को ही नहीं बल्कि जिस पर कृपालु हो उसे सुरक्षा घेरा उपलब्ध करा देती है|सरकार का ऐसा करने में क्या जाता है ?बोझ तो सरकारी खजाने पर पड़ता है, उस खजाने पर जिसे जनता की जेब से भरा जाता है|
उपलब्ध इतिहास बताता है कि जो जितने बड़े सुरक्षा घेरे में होती है उसे उतनी ही आसानी से नुक्सान पहुंचाया जा सकता है| भारत में ही नहीं दुनिया के दुसरे देशों में भी|पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या उनके अपने सुरक्षाकर्मियों ने की|राजीव गाँधी सुरक्षा घेरे में रहते हुए मारे गए| पड़ौसी पाकिस्तान में श्रीमती बेनजीर भुट्टो कि जान भी सुरक्षा घेरे में रहते हुए गयी .इन उदाहरणों का ये अर्थ बिलकुल नहीं है कि किसी को यदि सुरक्षा की जरूरत है तो न दी जाए|जरूर दी जाये किन्तु ये देखा जाये कि किसे सरकारी खर्च पर सुरक्षा दी जाये और किस्से इस इंतजाम का खर्च वसूल किया जाए|
देश में वीआईपी सुरक्षा पर कितना खर्च किया जाता है, ये देश कीसंसद में ही सरकार कि और से बताया जाता है| दो साल पहले लोकसभामें बताया गया था कि देश में 230 लोगों को सीआरपीएफ और सीआईएसएफ जैसे केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों द्वारा ‘जेड प्लस’, ‘जेड’ और ‘वाई’ श्रेणियों के तहत सुरक्षा प्रदान की जा रही है|ये संख्या घटती-बढ़ती रहती है|सुरक्षा प्राप्त लोगों की केंद्रीय सूची में शामिल व्यक्तियों के समक्ष जोखिम के बारे में केंद्रीय एजेंसियों के आकलन के आधार पर उन्हें सुरक्षा दी जाती है तथा इसकी समय-समय पर समीक्षा की जाती है| इस तरह की समीक्षा के आधार पर सुरक्षा कवर जारी रखने, वापस लेने या संशोधित करने का फैसला होता है|उत्तर में बताया गया था आमतौर पर इन लोगों की सुरक्षा पर होने वाले खर्च का वहन सरकार द्वारा किया जाता है| हालांकि उन्होंने इस बात का ब्यौरा नहीं दिया कि ऐसे लोगों की सुरक्षा पर कुल कितनी राशि व्यय होती है|
सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि देश में प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हर दिन 1.17 करोड़ खर्च होता है|मुझे याद आता है कि 2019-20 में एसपीजी का बजट 540.16 करोड़ रुपये था| उस समय प्रधानमंत्री मोदी के अलावा सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को भी एसपीजी सुरक्षा मिलती थी| यानी, हर एक की सुरक्षा पर सालभर में 135 करोड़ रुपये खर्च होते थे| 2021-22 में एसपीजी का बजट 429.05 करोड़ रुपये था|
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बार के बजट में ख़ास लोगों का काफी ध्‍यान रखा है| यह वीआईपी सुरक्षा के बजट में दिखाई दे रहा है| हर महकमा जो इस तरह की यूनिट से जुड़ा है, उसके बजट में इजाफा किया गया है. वित्त वर्ष 2023-24 को लेकर नजर डालें तो पता चलता है कि वीआईपी सुरक्षा से जुड़ी एजेंसियों में सबसे ज्‍यादा बजट में इजाफा प्रधानमंत्री की सुरक्षा से जुड़ी एसपीजी का हुआ है| इसके बाद में सीआरपीएफ का नंबर आता है, जो कई अहम लोगों को जेड प्लस और जेड केटेगरी की सुरक्षा देती है| जेड प्लस सुरक्षा में करीब पचास और जेड सुरक्षा में करीब चालीस जवान वीआईपी की सुरक्षा के लिए हमेशा तैनात रहते हैं|
अति विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा का किस्सा बड़ा रोचक है|कांग्रेस नेता राहुल गांधी को जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा मिली है| उनकी सुरक्षा पर सरकार करीब डेढ़ लाख रुपए रोजाना खर्च कर रही है, यानी महीने में करीब 50 लाख रुपये| हालांकि राहुल गांधी अकेले नेता नहीं हैं, जिन पर इतना खर्च हो रहा है|सीआरपीएफ कुल मिलाकर 129 लोगों को अलग अलग केटेगरी की सुरक्षा मुहैया करवाती है| सबसे ज्‍यादा जेड और जेड प्लस केटेगरी की सुरक्षा ये ही बल अहम लोगों को देता है|केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, फिलहाल सीआरपीएफ 21 लोगों को जेड प्लस श्रेणी की और 26 लोगों को जेड केटेगरी की सुरक्षा देती है|एक वरिष्‍ठ अधिकारी ने एनडीटीवी इंडिया को बताया, “सीआरपीएफ की फिलहाल 6 बटालियन वीआईपी सुरक्षा से जुड़ी है| यानी करीब 6000 जवान और इनका हर तरह का खर्च वीआईपी सुरक्षा की केटेगरी से आता है|
आपको जानकार हैरानी होगी कि वित्त मंत्रालय ने इस साल सीआरपीएफ का इस सत्र में 31,772 करोड़ रुपये का बजट पारित किया है. अगर अधिकारियों की मानें तो इसमें से 774 करोड़ से ज्‍यादा वीआईपी सुरक्षा के लिए दिया गया है. केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक़ सीआरपीएफ के बाद जिसके पास सबसे ज्‍यादा जेड श्रेणी के लोगों की सुरक्षा है वो है, सीआईएसएफ.
मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, फिलहाल सीआईएसएफ 144 लोगों को सुरक्षा देती है, जिसमें 9 लोग जेड प्लस श्रेणी के हैं और 11 लोग जेड श्रेणी के हैं. इसके बाद आईटीबीपी, एसएसबी और एनएसजी करीब 70 लोगों को जेड प्लस और जेड श्रेणी की सुरक्षा देती है. औसतन जेड प्लस पर 50 लाख और जेड पर 40 लाख रुपये महीने का खर्च आता है. इस साल के बजट में एसपीजी को 433 करोड़ रुपए स्‍वीकृत हुए हैं. पिछले साल एसपीजी का बजट 411 करोड़ था. यहां यह बताना भी अहम है की एसपीजी अब सिर्फ प्रधानमंत्री को ही सुरक्षा प्रधान करती है यानी प्रधानमंत्री को सुरक्षा देने पर सरकार 36 करोड़ रुपए महीना खर्च करती है. प्रधानमंत्री ‘हेड ऑफ स्टेट’ हैं और उन्हें हर तरह का खतरा भी है. ऐसे में 1.18 करोड़ रुपए हर रोज उनकी सुरक्षा से जुड़े मुद्दों के लिए खर्च होता है.
बहरहाल देश और देश के नेता सुरक्षित रहें ,ये बहुत जरूरी है.जरूरत उद्योगपतियों को भी सुरक्षित रखने की है. कलाकारों और साहित्यकारों को सुरक्षा की कोई ख़ास जरूरत नहीं होती .वैसे उनके लिए सबसे बड़ा खतरा सरकार ही होती है. आम आदमी के लिए तो कोई खतरा है ही नहीं|