– राकेश अचल
आखिर दिल्ली में बम फट ही गया, सलमान की कार में फटा ये ज्यादा काम की सूचना है। हर विस्फोट के पीछे कोई न कोई हत्यारी मानसिकता होती ही है। लेकिन सलमान कामयाब हो जाता है और हमारी सरकार नाकामयाब। दुर्भाग्य ये कि हम या आप सरकार पर उंगली नहीं उठा सकते, हां हमें सलमान के बहाने एक पूरी बिरादरी पर उंगली उठाने की आजादी है।
पहले से जहर आलूदा हवा पी रही दिल्ली में सोमवार की रात लालकिला के पास हुआ धमाका खौफनाक है। आज नहीं तो कल ये तय हो जाएगा कि ये फिदायीन वारदात थी, किंतु ये कभी तय नहीं होगा कि दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था में झोल के लिए कौन जिम्मेदार है। इतनी बड़ी वारदात के बाद केन्द्रीय गृहमंत्री से इस्तीफा मांगने वाले लोग बेहद भोले हैं। उन्हे नहीं पता कि इस वारदात के बाद एक दारोगा तक के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती।
असल सवाल ये है कि दिल्ली के जरिये पूरे देश को दहलाने की तारीख और वक्त कौन तय करता है? मन में सवाल आता है कि ये विस्फोट बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए होने वाले मतदान की पूर्व संध्या पर क्यों होता है? इस वारदात का मकसद केवल खौफ पैदा करना है या फिर बिहार विधानसभा चुनावों के लिए होने वाले मतदान को प्रभावित करना है?
आपको पता है कि इस बार बिहार विधानसभा चुनाव मेंं मंगलसूत्र लूटने का जिक्र नहीं हुआ। लव जिहाद का जिक्र नहीं हुआ। सिंदूर भी नहीं बिका, हां कनपटी, कट्टा जरूर इस्तेमाल किए गए और अब ये बम भी फूट ही गया। मैं नहीं कहता कि ये बम किसी राजनीतिक दल के फायदे के लिए फोड़ा गया होगा, किंतु मैं ये जरूर कह सकता हूं कि बम विस्फोट में सबसे पहले सलमान का नाम उजागर होने का लाभ कोई तो लेना चाहेगा।
मैं मानकर चलता हूं कि दिल्ली और सकल राष्ट्र मजबूत और सजग नेतृत्व के हाथों में है, फिर भी मेरे मन में ये सवाल बार बार आ रहा है कि देश में दिया तले अंधेरा क्यों है? ये विस्फोट दिल्ली में ही क्यों हुआ? पटना या कोलकाता में क्यों नहीं हुआ? हम यानि जनता केवल सवाल कर सकती है, जबाब तो सरकार को ही देना है। ऐसी वारदातों से देश के भीतर और देश के बाहर भी दहशत फैलती है। अनेक देशों ने अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी भी की है।
दिल्ली विस्फोट के तार कहां से कहां तक फैले हैं, किस किससे जुड़े हैं, इसका पता तो सरकार को ही लगाना है। सरकार कोशिश भी करती है, लेकिन हर बार कामयाब नहीं होती। पुलवामा, पहलगांम के बाद दिल्ली विस्फोट और हत्याओं के राज नहीं खुले। अगले महिने संसद में भी इन वारदातों पर बहस की मांग होगी, लेकिन इससे पहले 14 अगस्त को बाल दिवस के दिन बिहार अपना मत प्रकट करेगा। दिल्ली विस्फोट और पहलगाम नरसंहार के बाद बिहार में चुनाव के जरिये इन दोनों मुद्दों पर अपनी राय कायम करने का मौका हाथ लगा है। देखिये ये बारूद बिहार को प्रभावित कर पाती है या नहीं?
इस विस्फोट के लिए यदि सत्तारूढ़ दल और विपक्ष जिम्मेदार नहीं है तो कोई तो है, ये कोई कौन है, इसका पता देश को मिलना चाहिए। शीघ्र मिलना चाहिए, क्योंकि इस धमाके में भी निर्दोष ही मारे गए हैं, भले ही दिल्ली में मरने वालों से उनका मजहब नहीं पूछा गया। मेरी नजर में दोनों वारदातों का मकसद और चरित्र एक जैसा ही है।







