– राकेश अचल
भारत में रामराज भले न हो, लेकिन कानून का राज जरूर है और ये कानून ही है जो लोकतंत्र में जनादेश का जनाजा बेशर्मी के साथ निकालने की इजाजत देता है। इधर बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अंतिम दौर का मतदान संपन्न हुआ और उधर तमाम एक्जिट पोल वालों ने बिहार में एनडीए की सरकार बनवा दी। किसी को इतना सब्र नहीं हुआ कि मतगणना का इंतजार कर लेते।
मुझे एक्जिट पोल शुरू से अवैध भ्रूण परीक्षण जैसे लगते हैं। लेकिन देश में भ्रूण परीक्षण के लिए भी सख्त कानून हैं और अवैध भ्रूण परीक्षण के लिए भी। किंतु एक्जिट पोल के लिए जो कानून हैं उसमें अवैध कुछ है ही नहीं। आप जैसा चाहें, वैसा एक्जिट पोल दे सकते हैं। मेरी जानकारी के मुताबिक भारत में केन्द्रीय चुनाव आयोग ने हाल ही में कुछ प्रमुख गाइड लाइंस जारी की हैं जो एक्जिट पोल और चुनाव-प्रचार से जुड़े हैं। जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 126ए के तहत यह कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति द्वारा निर्धारित अवधि में एक्जिट पोल का संचालन, प्रकाशन या प्रसारण करना निषिद्ध है।
भारत में एक्जिट पोल पूरी तरह से कानूनी हैं, लेकिन उन्हें चुनाव आयोग द्वारा तय समय से पहले प्रकाशित या प्रसारित करना गैरकानूनी है। भारत में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126ए के तहत एक्जिट पोल पर नियम बने हैं। चुनाव आयोग हर चुनाव के समय एक ‘प्रतिबंध अवधि’ घोषित करता है। इस अवधि में एक्जिट पोल के नतीजे या अनुमान का प्रकाशन, प्रसारण या प्रचार करना प्रतिबंधित होता है।
कानूनन पहले चरण के मतदान की शुरुआत से लेकर अंतिम चरण के मतदान के समाप्त होने तक एक्जिट पोल प्रसारित नहीं किए जा सकते। यानी जब तक पूरे देश या राज्य में वोटिंग खत्म न हो जाए, तब तक किसी चैनल, अखबार या सोशल मीडिया पर एक्जि़ट पोल दिखाना या साझा करना गैरकानूनी है। धारा 126ए के तहत उल्लंघन करने पर कानूनी कार्रवाई (जुर्माना या कारावास) हो सकती है। कहते हैं कि चुनाव आयोग ऐसे मामलों पर सख्ती से नजर रखता है। किंतु मुझे याद नहीं आता कि इस कानून के तहत केंचुआ ने कभी कोई कार्रवाई की गई हो।
सवाल ये है कि एक्जिट पोल की जरूरत क्या है? क्या इनके बिना हमारा काम नहीं चल सकता? या फिर ये सब जनादेश से छेड़छाड़ की कोशिश पर पर्दा डालने के लिए कराया जाता है? एक्जिट पोल कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं है। इसके बजाय हमें उतावलापन छोड़कर मतगणना की धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करना चाहिए। एक्जिट पोल का अतीत बताता है कि ये हर बार एकजेक्ट साबित नहीं होते। लेकिन इनके आने के बाद मतदाता, प्रत्याशी और राजनीतिक दल जिस मानसिक अवसाद को झेलते हैं, उसकी कल्पना न केंचुआ करता है न हमारा कानून। एक्जिट पोल पर ये जिम्मेदारी आयद करने की जरूरत है कि यदि वे गलत साबित हुए तो उनके खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई की जाएगी। ये कार्रवाई तय किए जाने की जरूरत है। भारत में पिछले कुछ वर्षों से एक्जिट पोल एक औजार की तरह इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
जब से वोट चोरी के मामले उजागर हुए हैं तबसे एक्जिट पोल के जरिए पहले ही ऐसा माहौल बना दिया जाता है कि कोई भी अप्रत्याशित परिणामों पर उंगली उठा ही न सके। 2023 में मप्र, राजस्थान और छग में जमीनी हकीकत कुछ और थी और नतीजे कुछ और थे। जन प्रतिनिधित्व कानू 1951 अब बहुत पुराना हो गया है, इसमें व्यापक संशोधनों की जरूरत है। क्योंकि मौजूदा कानून चुनाव शुचिता को बनाए रखने में लगातार नाकाम साबित हो रहा है। बिहार में किसकी सरकार बनेगी इससे कोई बहुत बड़ा फर्क नहीं पड़ने वाला, किंतु यदि एक्जिट पोल सही साबित हुए तो तय हो जाएगा कि जनादेश कूटरचित है, निष्पक्ष नहीं।







